परमात्मा कबीर साहेब जी एक "जिंदा बाबा साधु" के रूप में श्री नानक जी को 'बेइ नदी' पर मिले थे। नानक जी के शरीर को नदी में छु...
एक सुआन दुइ सुआनी नाल ।भलके भउकह सदा बइआल ।कूड़ छुरा मुठा मुरदार ,धाणक रूप रहा करतार ।
मै पत की पंद न करणी की कार ,हउ बिगड़ै रूप रहा बिकराल ।तेरा एक नाम तारे संसार ,मै एहा आस एहो आधार ।
मुख निंदा आखा दिन रात ,पर घर जोही नीच सनात ।काम क्रोध तन वसह चंडाल ,धाणक रूप रहा करतार ।
फाही सुरत मलूकी वेस ,हउ ठगवाड़ा ठगी देस ।खरा सिआणा बहुता भार ,धाणक रूप रहा करतार ।
मै कीता न जाता हरामखोर ,हउ किआ मुह देसा दुसट चोर ।नानक नीच कहै बीचार ,धाणक रूप रहा करतार।
भावार्थ --:
एक मन रूपी कुत्ता तथा इसके साथ दो आशा-तष्णा रूपी कुतिया सदा अनावश्यक भौंकती रहतीं हैं यानि (उमंग उठती) रहती हैं। इनको मारने का छुरा अर्थात तरीका वह (सतनाम बिना) झूठा साधन था। मुझे धाणक (नीच जुलाहे जाति) रूप में आये परमात्मा ने वास्तविक साधना बताई
उस (पत) परमेश्वर की (पंद) साधना बिना न ही कोई अच्छी करनी (भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है ,उससे केवल तेरा एक नाम (सतनाम) ही पूरे संसार को पार कर सकता है। मुझे भी एक तेरे नाम की आश है, वही मेरा आधार है (11) पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की, मैं नीच और नीची असलीयत वाला हो गया था, पराया घर देखता था, क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं। मुझे धाणक रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया, ।2
जिसकी सुरत बहुत प्यारी है ,तथा सुंदर वेश है। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है ,धाणक पर है परमात्मा। इसलिए नानक जी ने प्यार में ठगवाड़ा कहा ,और साथ में कहा है ,कि वह धाणक बहुत समझदार है। (खरा सिआणा) दिखाई देता है ।कुछ परन्तु है (बहुताभार) बहुत महिमा वाला जो धाणक (जुलाहा) रूप में स्वयं परमात्मा आया है, ।3
(मैंने परमात्मा के साथ बहस की) मेरे जैसा नीच दुष्ट, हरामखोर कौन हो सकता है ,जो परमात्मा की कद्र नहीं जानी ? अपने को बहुत ही आधीन समझकर नानक कह रहे हैं ।की मुझ नानक की बात पर विचार करों, यह धाणक रूप में स्वयं परमात्मा ही है,4
( नानक जी और कबीर जी की संपूर्ण वार्तालाप )
(गुरु नानक जी की जन्म साखी और कबीर सागर ग्रंथ से विशेष प्रमाण )
मैंने धर्म नहीं बदला।
मैंने अपना कर्म बदल लिया है ।
मैंने पूजा नहीं बदली।
मैंने पूजा की विधि बदल दी है।
मैंने भगवान को नहीं बदला।
मैंने बस पूर्ण परमात्मा को पहचान लिया है।
मैंने परंपरा नहीं छोड़ी।
मैंने बस सब को एक समान देखने की परंपरा शुरू कर दी।
मैंने जाति नहीं बदली।
मैं समझ गई कि हम सब की जाति एक ही है ,मानव जाति।
मैंने मार्ग नहीं बदला ।
बस मोक्ष मार्ग पर चलना सीख रही हूं।
और यह सब संभव हुआ ,पूर्ण परमेश्वर स्वरूप सतगुरु देव संत कबीर जी महाराज जी की शरण में आने पर।
सत्य को ढूंढें, सत्य को चुने ,और सत्य मार्ग पर चलें।
भगवान का आदेश है ,जन-जन तक परमात्मा का ज्ञान पहुंचाना है ,बस कबीर साहेब के ज्ञान आधार पर चलती हूं ।इसी आस में बाकी बंदीछोड़ जानते हैं ।मालिक की रजा में रहने से आत्मा को सकून मिलता हैं ।यह तो 550 साल पहेले की बात है ।परमात्मा कबीर जी आज भी हमारे साथ-साथ है हम बहुत भाग्य शाली है उन के तत्व ज्ञान ने हमारी आँखें खोल दी मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ उन की शरण में हूँ ।
भावार्थ --:
एक मन रूपी कुत्ता तथा इसके साथ दो आशा-तष्णा रूपी कुतिया सदा अनावश्यक भौंकती रहतीं हैं यानि (उमंग उठती) रहती हैं। इनको मारने का छुरा अर्थात तरीका वह (सतनाम बिना) झूठा साधन था। मुझे धाणक (नीच जुलाहे जाति) रूप में आये परमात्मा ने वास्तविक साधना बताई
उस (पत) परमेश्वर की (पंद) साधना बिना न ही कोई अच्छी करनी (भक्ति की कमाई) बन रही थी। जिससे काल का भयंकर रूप जो अब महसूस हुआ है ,उससे केवल तेरा एक नाम (सतनाम) ही पूरे संसार को पार कर सकता है। मुझे भी एक तेरे नाम की आश है, वही मेरा आधार है (11) पहले अनजाने में बहुत निंदा भी की, मैं नीच और नीची असलीयत वाला हो गया था, पराया घर देखता था, क्योंकि काम क्रोध इस तन में चंडाल रहते हैं। मुझे धाणक रूपी भगवान ने आकर सतमार्ग बताया, ।2
जिसकी सुरत बहुत प्यारी है ,तथा सुंदर वेश है। जिसने काल को भी ठग लिया अर्थात् दिखाई देता है ,धाणक पर है परमात्मा। इसलिए नानक जी ने प्यार में ठगवाड़ा कहा ,और साथ में कहा है ,कि वह धाणक बहुत समझदार है। (खरा सिआणा) दिखाई देता है ।कुछ परन्तु है (बहुताभार) बहुत महिमा वाला जो धाणक (जुलाहा) रूप में स्वयं परमात्मा आया है, ।3
( नानक जी और कबीर जी की संपूर्ण वार्तालाप )
(गुरु नानक जी की जन्म साखी और कबीर सागर ग्रंथ से विशेष प्रमाण )
मैंने धर्म नहीं बदला।
मैंने अपना कर्म बदल लिया है ।
मैंने पूजा नहीं बदली।
मैंने पूजा की विधि बदल दी है।
मैंने भगवान को नहीं बदला।
मैंने बस पूर्ण परमात्मा को पहचान लिया है।
मैंने परंपरा नहीं छोड़ी।
मैंने बस सब को एक समान देखने की परंपरा शुरू कर दी।
मैंने जाति नहीं बदली।
मैं समझ गई कि हम सब की जाति एक ही है ,मानव जाति।
मैंने मार्ग नहीं बदला ।
बस मोक्ष मार्ग पर चलना सीख रही हूं।
और यह सब संभव हुआ ,पूर्ण परमेश्वर स्वरूप सतगुरु देव संत कबीर जी महाराज जी की शरण में आने पर।
सत्य को ढूंढें, सत्य को चुने ,और सत्य मार्ग पर चलें।
भगवान का आदेश है ,जन-जन तक परमात्मा का ज्ञान पहुंचाना है ,बस कबीर साहेब के ज्ञान आधार पर चलती हूं ।इसी आस में बाकी बंदीछोड़ जानते हैं ।मालिक की रजा में रहने से आत्मा को सकून मिलता हैं ।यह तो 550 साल पहेले की बात है ।परमात्मा कबीर जी आज भी हमारे साथ-साथ है हम बहुत भाग्य शाली है उन के तत्व ज्ञान ने हमारी आँखें खोल दी मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ उन की शरण में हूँ ।
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