कबीर, तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल। सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला काल। गरीब, एक पापी एक पुन्यी आया, एक है सूम दलेल रे। बिना भजन कोई...
गरीब, एक पापी एक पुन्यी आया, एक है सूम दलेल रे। बिना भजन कोई काम नहीं आवै, सब है जम की जेल रे।
वह नहीं चाहता कि कोई प्राणी इस पिंजरे रूपी कैद से बाहर निकल जाए। वह यह भी नहीं चाहता कि जीव आत्मा को अपने निज घर सतलोक का पता चले। इसलिए वह अपनी त्रिगुणी माया से हर जीव को भ्रमित किए हुए है। फिर मानव को ये उपरोक्त चाहत कहाँ से उत्पन्न हुई है ? यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है। यहाँ हम सबने मरना है, सब दुःखी व अशांत हैं। जिस स्थिति को हम यहाँ प्राप्त करना चाहते हैं ।ऐसी स्थिति में हम अपने निज घर सतलोक में रहते थे। काल ब्रह्म के लोक में स्व इच्छा से आकर फंस गए ,और अपने निज घर का रास्ता भूल गयें । कबीर साहेब कहते हैं कि — :
इच्छा रूपी खेलन आया, तातैं सुख सागर नहीं पाया सागर नहीं पाया। इस काल ब्रह्म के लोक में शांति व सुख का नामों निशान भी नहीं है। त्रिगुणी माया से उत्पन्न काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, राग-द्वेष, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, मान-बड़ाई ,रूपी अवगुण हर जीव को परेशान किए हुए हैं।यहां एक जीव दूसरे जीव को मार कर खा जाता है, शोषण करता है, ईज्जत लूट लेता है, धन लूट लेता है, शांति छीन लेता है। यहां पर चारों तरफ आग लगी है। यदि आप शांति से रहना चाहोगे तो दूसरे आपको शांति से रहने नहीं देंगे। आपके न चाहते हुए भी चोर चोरी कर ले जाता है, डाकू डाका डाल ले जाता है, दुर्घटना घट जाती है ।
किसान की फसल खराब हो जाती है, व्यापारी का व्यापार ठप्प हो जाता है, राजा का राज छीन लिया जाता है, स्वस्थ शरीर में बीमारी लग जाती है ।अर्थात् यहाँ पर कोई भी वस्तु सुरक्षित नहीं। राजाओं के राज, ईज्जतदार की ईज्जत, धनवान का धन, ताकतवर की ताकत और यहाँ तक की हम सभी के शरीर भी अचानक छीन लिए जाते हैं। माता-पिता के सामने जवान बेटा-बेटी मर जाते हैं । दूध पीते बच्चों को रोते-बिलखते छोड़ कर मात-पिता मर जाते हैं, जवान बहनें विधवा हो जाती हैं ,और पहाड़ जैसे दुःखों को भोगनें को मजबूर होते हैं। विचार ,करें कि क्या यह स्थान रहने के लायक है ? लेकिन हम मजबूरी वश यहाँ रह रहें हैं । क्योंकि इस काल के पिंजरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता ।
,और हमें दूसरों को दुःखी करने की व दुःख सहने की आदत सी बन गई हैं ,यदि आप जी को इस लोक में होनें वाले दुःखों से बचाव करना है ।तो यहाँ के प्रभु काल से परम शक्ति युक्त परमेश्वर (परमअक्षर ब्रह्म) की शरण लेनी पड़ेगी। ताकि नाम की कमाई कर सकें ,600 साल पहले कबीर महाराज जी आयें थे ,खूब ज्ञान का प्रचार किया ,साधारण बन कर जुलाहे का कार्य किया ।
भगवान होते हुए एक कूटियाँ में रहें बहुत उपकार किये ।मूर्ख लोगों ने क़दर नहीं की उस समय लोंक इतना पढ़ें लिखें नहीं थे ,जो पढ़ें लिखें थे बह घंमडी थे मालिक जी ने बहुत निर्मल ,तत्व ज्ञान ,सत्य ज्ञान,दिया लोग अपनीं मनमानी करतें थे कबीर सह शरीर सत लोंक चलें गये थे ,भगवान चारों युगों में आँतें हैं अब भी बहुत सुनेहरी समय हैं ,मालिक कबीर महाराज जी आयें हुये हैं युग परिवर्तन करनें के लिए नये सूर्य का उदय हो चुका हैं ।हम बहुत भाग्यशाली हैं ,बिचली पीढ़ी के लोगों का कल्याण होगा ।अपनीं पवित्र आत्माओं को सत लोंक लें जाने के लिए द्वारा जन्म मरण नहीं होगा ।अपनी जीवन यात्रा को सफल बनायें मनुष्य जन्म बार बार नहीं मिलता ।अब मौक़ा हैं गवायें नहीं ।
शेष कल —- : https://www.myjiwanyatra.com/
No comments
Post a Comment