कविता - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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कविता

ज्ञान हीन प्रचार करें, ज्ञान कथे दिन रात । जो सर्व को खाने वाला ,कहें उसी की बात । सब कहें भगवान कृपालु हैं ,कृपा करें दयालु। जिसकी सब पूजा ...

ज्ञान हीन प्रचार करें, ज्ञान कथे दिन रात ।

जो सर्व को खाने वाला ,कहें उसी की बात ।

सब कहें भगवान कृपालु हैं ,कृपा करें दयालु।

जिसकी सब पूजा करें,वह स्वयं कहें मैं काल ।

मारें खावें सबको ,वह कैसा है कृपाल ।

कुत्ते ,गधे ,सुअर ,बनावे है ,फिर भी दीनदयाल ।

बाइबिल ,वेद ,कुरआन ,है जैसे चाँद प्रकाश ।
सूरज ज्ञान कबीर का ,करें तिमर का नाश।

बन्दी छोड़ सच्ची कहे ,करो विवेक विचार।

ब्रम्हा ,विष्णु ,शिव ,है तीनो लोक प्रधान ।

अष्टांगि इनकी माता है ,और पिता काल भगवान।
एक लाख को काल नित ,खावे सीना तान।


ब्रम्हा ,बनावे विष्णु ,पाले ,शिव कर दे कल्याण।

अर्जुन डर कर पूछता है ,यह हैं कौन रूप भगवान।

कहें निरंजन मैं काल हुँ ,सबको आया खान।

ब्रम्हा इसी का नाम हैं ,वेद करे गुणगान।

मरण चौराशी यह ,इसका है संविधान ।

चार राम की भक्ति में ,लगा रहा संसार ।

 पांचवे राम का ज्ञान नही ,जो पार उतारणहार ।
पहला राम ब्रम्हा,विष्णु,शिव ,तीनो गुण है ।

दूसरा प्रकृति का जाल (यानि ) दुर्गा ,माया।

लाख जीव नित् भक्षण करें,राम तीसरा काल ।

अक्षर पुरुष है राम ,चौथा जैसे चंद्रमा जान।

पाँचवा राम सत कबीर है ,जैसे उदय हुआ भान ।

सारी दुनियाँ भ्रमित हैं ,देखा देखी ।

एक दूसरे की नक़ल करनें में हैं माहिर ।
शेष कल—: 

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