हनुमान जी के गुरू कौन ?? - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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हनुमान जी के गुरू कौन ??

त्रेता युग में जब रावण ने सीता जी का हरण कर लिया तो उसकी खोज शुरू हुई। हनुमान जी ने सीता का पता लगाया, कि वह रावण की कैद में है। सीता ने हनु...

त्रेता युग में जब रावण ने सीता जी का हरण कर लिया तो उसकी खोज शुरू हुई। हनुमान जी ने सीता का पता लगाया, कि वह रावण की कैद में है। सीता ने हनुमान को एक कंगन दिया था,कि यह श्री राम को दिखा देना। जब वे सीता जी की खोज कर के लंका से वापिस आ रहे थे ,तो समुद्र को आकाश मार्ग से पार करके एक पर्वत के ऊपर उतरे। वहाँ पास ही एक बहुत सुंदर निर्मल जल का सरोवर था। सुबह-सुबह की बात है। जो कंगन सीता जी ने हनुमान को दिया था, हनुमान जी उसको एक पत्थर पर रख कर स्नान करने लगे। उसी समय एक बंदर आया और कंगन उठा कर भाग लिया। हनुमान जी की नज़र जैसे सर्प की मणि पर होती है ऐसे कंगन पर थी,हनुमान जी पीछे दौड़ा। बंदर भाग कर एक आश्रम में प्रवेश कर गया और उस कंगन को एक मटके में डाल दिया। वह बहुत बड़ा घड़ा था ,जब उस कुम्भ में हनुमान जी ने देखा तो ऐसे-ऐसे कंगनों से वह घड़ा लगभग भरा हुआ था।हनुमान जी ने कंगन उठा कर देखा तो सारे ही कंगन एक जैसे थे,भेद नहीं लग रहा था,असमंजस में पड़ गया।

सामने एक महापुरुष (ऋषि) आश्रम में बैठे हुए दिखाई दिए। उनके पास जाकर प्रार्थना की कि हे ,ऋषिवर मैं सीता माता की खोज करने गया था ,और सीता जी का पता लग गया है।एक कंगन माता ने मुझे दिया था,उसको रखकर स्नान करने लग गया।बंदर ने शरारत की और उठकर इस मटके में दाल दिया।वह ऋषि उस समय मुनिन्द्र नाम से आयें कबीर साहिब थे। मुनिन्द्र साहिब ने कहा कि आओ भक्त जी, दूध पीयो, बैठो विश्राम करो। हनुमान जी बोले कि काहे का दूध, मेरी तो सारी मेहनत विफल हो गयी। इस कुम्भ के अंदर एक ही जैसे सभी कंगन नज़र आ रहे हैं। मुझे पहचान नहीं हो रही, वह कंगन कौन सा है ? मुनिन्द्र जी बोले कि आपको पहचान हो भी नहीं सकती। यदि पहचान हो जाय तो आप इस काल के लोक में दुखी नहीं होते, यह कठिनाइयाँ नहीं आती।

मुनिन्द्र (कबीर साहिब) जी बोले की हनुमान जी आप कौन से राम की बात कर रहे हो ? कौन सीता ? मुझे यह तो बता। हनुमान जी बोले ,कि आप अजीब बात कर रहे हो। सारे के सारे वन तथा संसार में एक चर्चा हो रही है। आप को मालुम ही नहीं ? भगवन रामचन्द्र जी ने राजा दशरथ के घर पर जन्म लिया है। उनकी पत्नी का रावण ने अपहरण कर रखा है, आप को नहीं मालूम ? मुनिन्द्र जी कहते हैं कि कौन-कौन से नंबर के राम की मालूम करूँ ? हनुमानजी कहते हैं की राम का भी कोई नंबर होता है ? मुनिन्द्र साहिब ने कहा की ऐसे-ऐसे यह दशरथ के पुत्र रामचन्द्र 30 करोड़ हो चुके हैं ,और यह सभी जन्म और मृत्यु के अंदर हैं। यह पूर्ण परमेश्वर नहीं है। यह केवल तीन लोक के प्रभु हैं। इनके उपासक भी मुक्त नहीं हैं।हनुमान जी, सत कर मानना।

हनुमान जी बहुत महसूस करतें है कि यह महात्मा बहुत अजीबो गरीब बात कर रहा है। हनुमान जी बोले कि क्या यह श्री रामचन्द्र जी तीस करोड़ बार आ चुके हैं ? मुनिन्द्र (कबीर) जी ने कहा - हाँ पुत्र, यह श्री राम अपना जीवन पूरा करके जब समाप्त हो जायेगा ।उस के बाद फिर नई आत्मा ऐसे ही जन्म लेती रहती हैं और आती रहती हैं। ऐसे ही तेरे जैसे हनुमान जाने कितने हो लिए। यह तो इस ब्रह्म (काल भगवान) ने एक फिल्म बना रखी है। उस में पात्र आते रहते हैं। और इसी का प्रमाण यह कुम्भ दे रहा है। इसमें जितने भी कंगन हैं यह आप ही जैसे हनुमान आते हैं और वह बंदर इसमें कंगन डालता है। इस कुम्भ के अंदर मेरी कृपा से एक शक्ति है कि जो भी वस्तु इसमें डाली जाती है यह वैसी ही एक और बना देता है।ऐसे ही इस रूप का दूसरा कंगन तैयार कर देता है।आप इस में से कंगन ले जाइए और दिखाईये अपने राम जी को, ज्यों का त्यों मिलेगा। फिर कहा कि हनुमान जी सत भक्ति करो। यह भक्ति तुम्हारी परिपूर्ण नहीं है। यह काल जाल से आपको मुक्त नहीं होने देगी।हनुमान जी बोले कि अब मेरे पास इतना समय नहीं है ।कि आपके साथ वार्ता करूँ, परन्तु मुझे आपकी बातें अच्छी नहीं लग रही हैं। कंगन उठा कर चले गए।
भगवान रामचन्द्र जी रावण का वध करके सीता को वापिस ले आयें कुछ दिनों के बाद हनुमान जी अयोध्या त्यागकर एक पहाड़ पर भजन कर रहे थे। यही दयालु परमेश्वर अपनी हंस आत्मा के पास गए तथा कहा की राम-राम भक्त जी ,हनुमान जी ने ऋषि की तरफ देखा ,फिर हनुमान जी बोले कि मुझे ऐसा लग रहा है कि आपको कहीं पर देखा हो।तब मुनिन्द्र साहिब बोले कि - हाँ, हनुमान। पहली बार तो तूने मुझे वहाँ पर देखा जब आप सीता की खोज करके वापिस आ रहे थे ।और कंगन को किसी बंदर ने मटके में दाल दिया था ,और दूसरी बार वहाँ पर देखा था जब श्री रामचन्द्र जी का समुद्र पर पुल नहीं बन रहा था। उस समय मैंने अपनी कृपा से पुल बनवाया था।मैं वही मुनिन्द्र ऋषि हूँ, हनुमान जी को याद आया। कहा की - आओ ऋषि जी, बैठो। क्योंकि हनुमान जी बहुत प्रभु प्रेमी और अतिथि सत्कार करने वाले महापुरुष थे। कहा की अब पहचान लिया,मुनिन्द्र जी फिर प्रार्थना करते हैं ,कि हनुमान जी जो आप साधना कर रहे हो, यह पूर्ण नहीं है।यह तुम्हें पार नहीं होने देगी। यह सर्व काल जाल है। सारी "सृष्टि रचना" सुनाई। हनुमान जी बहुत प्रभावित होते हैं। फिर भी कहा कि मैं तो इन प्रभु से आगे किसी को नहीं मान सकता।हम ने तो आज तक यही सुना है ,कि यह तीन लोक के नाथ विष्णु हैं ,और उन्हीं का स्वरुप रामचन्द्रजी आये हैं। अगर मैं आपके सतलोक को अपनी आँखों देखूं तो मान सकता हूँ।

कबीर साहिब ने हनुमान जी को दिव्य दृष्टि दी और स्वयं आकाश में उड़कर सतलोक पहुँच गए।पृथ्वी पर बैठे हनुमान जी को सब वहाँ सतलोक का दृश्य दिखाया। साथ में यह तीन लोक के भगवानों के स्थान दिखाए और वह काल दिखाया जहाँ पर एक लाख जीवों का प्रतिदिन आहार करता है।उसी को ब्रह्म, क्षर पुरुष तथा ज्योति स्वरूपी निरंजन कहते हैं। तब हनुमान जी ने कहा कि - प्रभु, नीचे आओ। क्षमा करना दास ने आपके साथ अभद्र व्यवहार भी किया होगा। दास को शरण में लो। हनुमान जी को प्रथम नाम दिया, फिर सत्यनाम दिया ,और मुक्ति का अधिकारी बनाया।इस काल लोंक का त्याग कर सत्यलोक चलें गयें ।अपनी जीवन यात्रा को सफल किया ,यूनिवर्सल के मालिक कबीर महाराज जी ने कृपा की ।जन्म मरन से मुक्त होकर सतलोक चलें गयें।

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