तीन दोस्त भंडारे में "प्रसाद" ग्रहण कर रहे थे, कि उनमें से एक बोला:—काश हम भी ऐसे भंडारे का आयोजन कर पाते.. दूसरा बोला:—हां यार .....
दूसरा बोला:—हां यार ....सैलरी आने से पहले जाने के रास्ते बनाकर आती है ...
तीसरा बोला:—खर्चे इतने सारे होते हैं ,तो कहाँ से करें भंडारा ...पास बैठे एक महात्मा जी भी भंडारे का आनंद ले रहे थे.....
वो उन दोस्तों की बाते सुन रहे थे...महात्मा उन तीनों से बोले:—
बेटा, भंडारा करने के लिए "धन" नहीं बल्कि केवल "अच्छे मन" की जरूरत होती है ....वो तीनों आश्चर्य चकित होकर महात्मा की ओर देखने लगे ....महात्मा ने सभी की उत्सुकता को देखकर हंसते हुए कहा:—बच्चो,बिस्कुट का एक पैकेट लो और उन्हें चीटियों के स्थान पर बारीक बारीक तोड़ कर उनके खाने के लिए रख दो, देखना अनेकों चीटियां उन्हें खुश होकर खाएंगी ।हो गया भंडारा ..
गेहूं ,बाजरा, (अनाज) के दाने लाओ उसे बिखेर दो चिडिया कबूतर आकर खाऐंगे ...हो गया भंडारा ...थोड़ा टाइट गूंथा हुआ आटा घर से लाओ और किसी तालाब में हाथ से गोली बना कर मछलियों को डालो हो गया भंडारा....तो आप कब कर रहे हैं भंडारा, मित्रो, ईश्वर ने सभी के लिए अन्न का प्रबंध किया है, ये जो तुम और मैं यहां बैठकर पूड़ी सब्जी का आनंद ले रहे हैं ,ना ..
इस अन्न पर ईश्वर ने हमारा नाम लिखा हुआ है...तुम भी जीव जन्तुओं के लिए उनके नाम के भोजन का प्रबंध करने के लिए जो भी करोगे ,वो भी उस ऊपर वाले की इच्छाओं से ही होगा ....यही तो है भंडारा ...जाने कौन कहां से आ रहा है ,या कोई कहीं जा रहा है ।किसी को पता भी नहीं होता ,कि किसको कहाँ से क्या मिलेगा ...सब उसी की माया है .....ऐसे अच्छे दान पुण्य के काम करते रहिए, अपार प्रसन्नता मिलती रहेगी।मालिक ने जब सृष्टि रची तो सभी जीव जन्तुयों की व्यवस्था बना रखी है ।सब कुछ कर्मेो के आधार फल भोगना पड़ता है ।भगवान की इच्छा से ही सब कुछ होता हैं ।प्रत्येक के मन में मालिक प्रेरणा डाल देता है ।ऐसे अच्छी भावना किसी किसी के मन में डाल देते हैं ।भगवान,तब जाकर मन मे अच्छे बिचार आने लगतें हैं ,समझ लो भगवान की बिशेष कृपा हो गई ।भगवान को ख़ुश रखने के लिये भंडारों का आयोजन करते रहना चाहिए ।इसी में मालिक खुश होकर अच्छी सोच देकर कार्य करवा लेते हैं महबूब से माँगने की बजायें, देने का संकल्प करें ।मनुष्य के बस में कुछ भी नहीं होता ,सब क्रमों का खेल है ।भगवान किसे निमित्त बनाता हैं ,जो कार्य करवाना होता हैं भगवान करवा लेता हैं ,आप के अन्दर ऐसी ( मैदनी ) होनी चाहिए ,यानि बिचार धारा जो प्रत्येक जीव जंतुओं में पाई जाती हैं ।कहते हैं ना ,जिन्हें पाई मैदनी ,सोई करदा सार ,घट घट मालिक दिला दा ,सोई सच्चा प्रवर दिगार ।यानि यूनिवर्सल का मालिक ,जी की कृपा,सदैव बनी रहे ।अच्छी सोच बनायें ,समय परिवर्तन शील हैं ।अब होकर रहेंगा अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाये की कोशिश करें ।अपने जीवन के मूल्य को पहचानें ।दुनियाँ में किस लिये आयें हैं ।
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