मालिक की दया से सत्य ज्ञान हो रहा हैं. इतने सालो अपनी ज़िन्दगी यू ही गुज़ार दी जो कुछ भी दुनिया में हो रहा है उस की मर्ज़ी के बग़ैर नहीं होत...
बिन सद्गुरु सेवा जोग न होई ,बिन सद्गुरू मेटे मुक्ति न होई । कबीर सतगुरू जो चाहे सो करही ,चौदह कोटी यम दूत डरही ।उत बहुत जम त्रास निबारे, चित्र गुप्त के काग़ज़ फाढे । गुरू भगता मम आत्म सोई और उस के ह्रदय में रहूँ समोई
कबीर जी कहते है बो मेरी असली आत्मा है ,वैसे ह्रदय रहूँ स्मोई ।
कबीर जी से यही प्रार्थना है ,अपने मन की गहराइयों से हर युग में परमात्मा का साथ रहा ,हम इस दुनियाँ की भूल भलैइया में खोये रहे ,अपनी मन मानी के कारण सच्चा मार्ग नहीं मिला . मैं बहुत भाग्यशाली हूँ ,क़िस्मत वाली हूँ मुझे तत्व ज्ञान मिला ,तत्व ज्ञान सद्गुरू की आपार कृपा हैं, मुझ दो कौड़ी जीब पर मालिक जी ने रज़ा की मैं उन की ऋणी हूँ ।
ऐसा निर्मल ज्ञान न कभी सुना न कभी पढ़ा ,कबीर , गुरूजी तुम ना बिसरो ,लाख लोग मिलीं जाही ,
हम से तुम कूं बहुत है ,तुम से हम को नाही ,कबीर तुम्हें बिसारे क्या बने ,मैं किस के शरण जाऊँ ,
कबीर औगुन किया तो बहुत किया,करत न मानीं हार ,भावे बन्दा बख्शते भावे गर्दन तारी ,कबीर औगन मेरे बाप जी ,
बख़्शो गरीब निवाज, जो मैं पुत् कपूत हो बहुर पिता को लाज ,कबीर मैं अपराधी जन्म का नख शिख भरे विकार ,
तुम दाता दुख भजना मेरी करो संभार कबीर अब,की जो सद्गुरू मिले,सब दुख आँखें रोई चरणों ऊपर शिर धरो ,कहूँ जो कहना ।
होई ,कबीर कबिरा साँई मिले के ,पुछेगे कुशलात आदि अनंत की सब कहूँ ।अपने दिल की बात कबीर,अंतरजामी एक तू ,आत्मा के आधार जो तुम छोड़ो हाथ , तो कौन उतारे पार , कबीर महाराज के चरणों में कोटी कोटी प्रणाम दुनिया के बन्धनों से मुक्त करने वाले हैं ,कौन कहता है ,तेरे दर तक पहुँच जायें ,वो सब से बड़ा ख़ुशनसीब होता हैं ।
भगतीं युक्त आत्मा पिछले क्रमों का फल है ,यह जीवन और कुछ नहीं वस्तु अकेला पन से एकांत की ओर एक यात्रा ही है ,ऐसी यात्रा जिस में रास्ता भी हम है ,राही भी हम है ,ओर मंज़िल भी हम है ,उस परमात्मा से जाकर मिल सके उस का चिंतन मनन आठों याम करती रहूँ ।
कबीर जी से यही प्रार्थना है ,अपने मन की गहराइयों से हर युग में परमात्मा का साथ रहा ,हम इस दुनियाँ की भूल भलैइया में खोये रहे ,अपनी मन मानी के कारण सच्चा मार्ग नहीं मिला . मैं बहुत भाग्यशाली हूँ ,क़िस्मत वाली हूँ मुझे तत्व ज्ञान मिला ,तत्व ज्ञान सद्गुरू की आपार कृपा हैं, मुझ दो कौड़ी जीब पर मालिक जी ने रज़ा की मैं उन की ऋणी हूँ ।
ऐसा निर्मल ज्ञान न कभी सुना न कभी पढ़ा ,कबीर , गुरूजी तुम ना बिसरो ,लाख लोग मिलीं जाही ,
हम से तुम कूं बहुत है ,तुम से हम को नाही ,कबीर तुम्हें बिसारे क्या बने ,मैं किस के शरण जाऊँ ,
कबीर औगुन किया तो बहुत किया,करत न मानीं हार ,भावे बन्दा बख्शते भावे गर्दन तारी ,कबीर औगन मेरे बाप जी ,
बख़्शो गरीब निवाज, जो मैं पुत् कपूत हो बहुर पिता को लाज ,कबीर मैं अपराधी जन्म का नख शिख भरे विकार ,
तुम दाता दुख भजना मेरी करो संभार कबीर अब,की जो सद्गुरू मिले,सब दुख आँखें रोई चरणों ऊपर शिर धरो ,कहूँ जो कहना ।
होई ,कबीर कबिरा साँई मिले के ,पुछेगे कुशलात आदि अनंत की सब कहूँ ।अपने दिल की बात कबीर,अंतरजामी एक तू ,आत्मा के आधार जो तुम छोड़ो हाथ , तो कौन उतारे पार , कबीर महाराज के चरणों में कोटी कोटी प्रणाम दुनिया के बन्धनों से मुक्त करने वाले हैं ,कौन कहता है ,तेरे दर तक पहुँच जायें ,वो सब से बड़ा ख़ुशनसीब होता हैं ।
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