अमीर -ग़रीब - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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अमीर -ग़रीब

                                          कबीरा बात गरीब की ,सच ना मानें कोये ,                                             धनवान की झूठ मे...

                                          कबीरा बात गरीब की ,सच ना मानें कोये ,
                                            धनवान की झूठ में ,हाँ जी हाँ जी होयें ।

कबीर जीवन के लिए बड़ा गहरा सूत्र हो सकते हैं। महावीर सम्राट के बेटे हैं ,कृष्ण भी सम्राट के ,राम भी सम्राट के,बुद्ध भी सम्राट के,वे सब महलों से आये हैं। अमीरों के बच्चों को सब सुख सुविधा थी ।किसी वस्तु की कोई कमी नहीं थी ,कबीर 1398 ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को लहर तारा तलाव काशी में एक फूल पर ब्रह्म महूरत में एक नवजात शिशु के रूप में प्रकट हुए स्नान करने के लिए गयें नीरू-नीमा नामक जुलाहा दम्पति को प्राप्त हुये ,क़ाज़ी धार्मिक पुस्तक क़ुरान के आधार पर नामांकन करनें लगें तो उस पुस्तक ( क़ुरआन ,कतेब ) के सर्वश्रेष्ठ अक्षर कबीर -कबीर -कबीर ……हो गये ,साहेब कबीर (कविदेंव) ने स्वयं बोल कर कहा कि मेरा नाम कबीर ही होगा ,महलों से उनका कोई भी नाता नहीं है ।कबीर अनूठे हैं।सब से निरालें हैं ।प्रत्येक मनुष्य के लिए उनके द्वारा आशा का द्वार खुलता है।

 क्योंकि कबीर से ज्यादा बुद्धि मान ,साधारण आदमी खोजना बहुत कठिन है। और अगर कबीर महाराज जी टोप पर पहुँच सकते हैं, उस समय छुआ-छूात का बहुत मत- भेद तो था कबीर निपट गंवार नहीं हैं, इसलिए गंवार के लिए भी आशा है,वे पढ़े लिखे हैं, इसलिए पढ़े लिखे होने से सत्य का कोई भी संबंध नहीं है। जाति-पांति का कुछ ठिकाना नहीं कबीर महाराज जी कमल के फूल से मिलें हिंदू दम्पत्ति अपनें घर ले कर आये बड़े सुन्दर देखनें में नटखट इसलिए जाति-पांति से परमात्मा का कुछ लेना-देना नहीं है।बड़ी सादगी से एक झोपड़ी में माता-पिता के साथ परिवार में रहें ।
कबीर जीवन भर गृहस्थ रहें ,जुलाहे का काम करके कपड़े बुनते रहे,और बेचते रहें घर छोड़ हिमालय नहीं गये। इसलिए साधारण परिवार के घर पर भी परमात्मा आ सकतें है, हिमालय जाना आवश्यक नहीं। कबीर ने कुछ भी न छोड़ा और सभी कुछ पा लिया। इसलिए छोड़ना पाने की शर्त नहीं हो सकती।और कबीर के जीवन में कई प्रकार की विशिष्टता रहीं है। इसलिए विशिष्टता अहंकार का आभूषण होगी ,आत्मा का सौंदर्य नहीं।

कबीर न धनी हैं, लेकिन ज्ञानी बहुत हैं, न समादृत हैं, लेकिन शिक्षित हैं, सुसंस्कृत हैं। कबीर जैसा व्यक्ति अगर परम ज्ञान को उपलब्ध हो गया, तो तुम्हें भी निराश होने की कोई भी जरूरत नहीं। इसलिए कबीर में बड़ी आशा है। विश्वास हैं ,सबसे ज़्यादा दिमाग़ रखतें हैं ।कवियों की तरह बहुत बुद्धि से परें की सोच मन की गहराइयों को छूतीं हैं, उन में विषेशता बहुत रहतीं कार्य में संलग्न रहतें कबीर गरीब हैं, और जान गये ,यह सत्य कि धन व्यर्थ है। और यह जान गये ,कि सब राग-रंग, सब वैभव-विलास, सब सौंदर्य मन की ही कल्पना है। कबीर के पास बड़ी गहरी समझ हमेशा रही ,बुद्ध के पास तो अनुभव ही था कबीर तो अपनी समझ के साथ लोगों को समझातें थे । गरीब का मुक्त होना अति कठिन है। कठिन इस लिहाज से कि उसे अनुभव की कमी बोध से पूरी करनी पड़ेगी ,उसे अनुभव की कमी ध्यान ,मनन ,चिन्तन शील से पूरी करनी पड़ेगी। अगर तुम्हारे पास भी सब हो, जैसा बुद्ध के पास था, तो तुम भी महल छोड़कर भाग जाओगे क्योंकि कुछ और पाने को बचा नहीं आशा टूटी, वासना गिरी, भविष्य में कुछ और है नहीं ,वहां महल सूना हो गया ।

आदमी महत्त्वाकांक्षा में जीता है। महत्त्वाकांक्षा कल की और बड़ा होगा, और बड़ा होगा, और बड़ा होगा... दौड़ता रहता है। लेकिन आखिरी पड़ाव आ गया, अब कोई गति न रही छोड़ोगें नहीं तो क्या करोगे ? तो महल या तो आत्मघात बन जाता है या आत्मक्रांति।पर कबीर के पास कोई महल नहीं है।वह एक झोंपड़ी में रहतें माता-पिता के साथ काम में हाथ बटातें ।बुद्ध बड़े प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं। जो भी श्रेष्ठतम ज्ञान था उपलब्ध, उसमें दीक्षित किये गये थे। शास्त्रों के ज्ञाता हैं ।शब्द के धनी हैं ।बुद्धि बड़ी प्रखर तीव्र गति से कार्य करतें। बुद्ध सम्राट के बेटे थे। तो उन की सब तरह से सुशिक्षा हुई थी।

कबीर अपनी माँ -बाप के चहेते बेटे थे ,कबीर जैसे,जैसे बडें हुये बहुत मेहनत की ।पहले दिन से ही भाग्य में लिखा था। कि धन व्यर्थ है, तो तुम भी जान सकोगे। बुद्ध से आशा नहीं बंधती।बुद्ध की तुम पूजा कर सकते हो। फासला बड़ा हैं ,लेकिन बुद्ध-जैसा होना तुम्हें मुश्किल मालूम पड़ेगा। जन्मों-जन्मों की यात्रा लगेगी। लेकिन कबीर और तुम में फासला जरा भी नहीं है। कबीर जिस सड़क पर खड़े हैं-शायद वह तुमसे भी पीछे खड़े हैं ,और अगर कबीर तुमसे भी पीछे खड़े होकर पहुँच गये, तो तुम भी पहुँच सकते हो। कबीर जीवन के लिए बड़ा गहरा सूत्र हो सकते हैं। इसे तो पहले स्मरण में ले लें। इसलिए कबीर को मैं अनूठा कहता हूं।कबीर ने कभी हाथ से कागज और स्याही छुई नही।इसने परमात्मा के परम ज्ञान को पा लिया-बड़ें भरोसे के साथ।

तब इस दुनियाँ में अगर तुम वंचित हो तो अपने ही कारण वंचित हो, परिस्थिति को दोष मत देना। जब भी परिस्थिति को दोष देने का मन में भाव उठे, कबीर का ध्यान करना। कम से कम मां-बाप का तो तुम्हें पता है,थोड़ी-बहुत शिक्षा हुई है, हिसाब-किताब रख लेते हो। वेद, कुरान, गीता भी थोड़ी पढ़ी है। न सही बहुत बड़े पंडित, छोटे-मोटे पंडित तो तुम भी हो ही। तो जब भी मन होने लगे तब कबीर का ध्यान करना। कबीर तराजू के पलड़े को जगह पर ले आते हैं। बुद्ध से ज्यादा कारगर कबीर राजपथ हैं। एक-एक शब्द बहुमूल्य है ,लेकिन एक-एक शब्द सूक्ष्म है। कबीर की भाषा सब की भाषा है बेपढ़े-लिखे आदमी की भाषा है। अगर तुम कबीर को न समझ पाए, तो तुम कुछ भी न समझपाओगे। कबीर को समझ लिया, तो कुछ भी समझने की ज़रूरत नहीं। और कबीर को तुम जितना समझोगे, उतना ही तुम पाओगे । हम बहुत भाग्यशाली हैं ,600 वर्षों के बाद अब भगवान हमारें साथ हैं ।उन के मुखारबिंद से तत्व ज्ञान सुन कर मन को बहुत शांति मिलती हैं ,बचपन से आज तक ऐसा पवित्र निर्मल,अनमोल ज्ञान पहलें कभी नहीं सुना था ।परमेश्वर कबीर महाराज जी का तह दिल से मन की गहराइयों से शुक्रगुज़ार हूँ करतीं हूँ उन्होंने अपनीं शरण में लिया हैं ,युग परिवर्तन हो रहा हैं  सच्चें नाम की कमाई कर के सत लोंक  जानें की तैयारी करें अपनी जीवन यात्रा को सफल बनायें ।मालिक जी के आशीर्वाद से ।

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