प्लीज़ भगवान से डरें - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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प्लीज़ भगवान से डरें

अपनों की मृत्यु दु:ख दायक लगती है । बाकी तो मौत को enjoy ही करता है ।इंसान ...मौत के स्वाद का ,चटखारे लेता हैं मनुष्य.….थोड़ा कड़वा लिखा है ,प...

अपनों की मृत्यु दु:ख दायक लगती है । बाकी तो मौत को enjoy ही करता है ।इंसान ...मौत के स्वाद का ,चटखारे लेता हैं मनुष्य.….थोड़ा कड़वा लिखा है ,पर मन से लिखा है,दिल रोता हैं, मन बिचिलत हो उठता हैं, कैसी बिडमना हैं,मौत से प्यार नहीं, मौत तो इंसानों का स्वाद है। बकरे का, गाय का,भेंस का,ऊँट का,सुअर का ,हिरण का,तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का, ताजा बकरे का, भुना  हुआ,छोटी मछली, बड़ी मछली का , हल्की आंच पर सिका हुआ ,न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं ,मौत के। क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद मनुष्य का ....स्वाद से कारोबार बन गई मौते।

मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स। नाम "पालन" और मक़सद "हत्या"स्लाटर हाउस ,तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली गली में खुलें नान वेज रेस्टॉरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।जो हमारी तरह बोल नही सकते।अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ? बेवस ,कोई छुड़ाने वाला नहीं ,अपने स्वार्थ के लिए 

कैसे मान लिया ,कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ? ख़ुद मजबूर अपनें बच्चों को मरता देख कर उनकी आँखों में आँसू बरसतें हैं । डाइनिंग टेबलपर हड्डियां नोचतें  बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ,किसी की आहें मत लेना ।किसी की आँख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए ।दुर्भाग्य हैं, दूसरी तरफ़ बच्चों में झुठे संस्कार डालते हैं ।माँ बाप ,अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इस से पहले एक शरीर में थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...? जिसे काटा गया होगा ? जो कराहा होगा ? जो तड़पा होगा बड़े दुःख की बात हैं ? मन से ओह निकलतीं हैं हे  परमात्मा इस काल के लोक में कैसा जुल्म हो रहा हैं ।

जिसकी आहें निकली होंगी ? जिसने बद्दुआ भी दी होगी ? कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे ,तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे .. …क्या मूक ,जानवर उस परम-पिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं  ? क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है …..धर्म की आड़ में ,उस परम-पिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद ,पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव ,बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हों ।कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हों …..? हे बन्दी छोड़ …हे बन्दी छोड़……हे बन्दी छोड़..

कभी सोचा ...? क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है ,उनका भोजन ? किसे ठग रहे हो ? भगवान को ? मंगलवार को नानवेज नही खातें ...आज शनिवार है, इसलिए नहीं ...नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता ....झूठ पर झूठ...झूठ पर झूठ ,झूठ पर झूठ …..अपनें बच्चों को अगर कोई ऐसे खाए तो हमें कैसा महसूस करेंगें ओर कैसा लगेंगा ? कर्म का फल मिल कर रहता है ,ये याद रखना ।ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी हैं ,सोचनें समझनें ,बोलनें की ,जानवरों में सोच ,तुम से भी ज़्यादा समझ,बहुत होती हैं ।दुर्भाग्य बस ,
बोल नहीं सकते ,ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं ( यानि ) अपने को भगवान समझ लिया ।

समय रहते परमात्मा से क्षमा मांग लीजिए ,और शुद्ध शाकाहारी बनकर पूर्ण संत से परमात्मा की सतभक्ति की विधि प्राप्त कर के सतभक्ति करना शुरू कर दीजिए ,अन्यथा कर्म का चक्र ऐसा चलेगा ,कुछ समझ नहीं आयेगा ,की हमारे साथ क्या हुआ है।क्या हो रहा हैं। यह तो वक़्त ही बतायेंगा  ,परिवर्तन का समय चल रहा है, कुदरत की मार से डरें, समय सभी का बदलता है ।समय बहुत बलवान हैं, 84  लाख योनीयों के बाद,करमों का फल सभी लोगों को भुगतना पड़ता हैं।अच्छे कर्म करें, मरना तो सब ने हैं ,अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाएं मालिक ,यानि भगवान के घर पे कर्मों का हिसाब किताब देना पड़ेगा ।
शेष कल—-: 

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