एक बार की बात है , बहुत ही पुण्य व्यक्ति अपने परिवार सहित तीर्थ के लिए निकला.. कई कोस दूर जाने के बाद, पूरे परिवार को प्यास लगने लगी ,ज्येष्...
यही घटना बार बार हो रही थी...और काफी समय बीत जाने के बाद जब वो नहीं आया ,तो साधू उसकी तरफ चल पड़ा...बार बार उसके इस पुण्य कार्य को देखकर साधू बोला —: हे पुण्य आत्मा ,तुम बार बार अपना बाल्टी भर कर दरिया से लाते हो और किसी प्यासे के लिए ख़ाली कर देते हो…..इससे तुम्हे क्या लाभ मिला...? पुण्य आत्मा ने बोला ,मुझे क्या मिला ? या क्या नहीं मिला ,इसके बारें में मैंने कभी नहीं सोचा नहीं…... पर मैंने अपना स्वार्थ छोड़कर अपना धर्म निभाया हैं ।साधू बोला — : ऐसे धर्म निभाने से क्या फ़ायदा ,जब तुम्हारे अपने बच्चे और परिवार ही जीवित ना बचे ? तुम अपना धर्म ऐसे भी निभा सकते थे ,जैसे मैंने निभाया ,पुण्य आत्मा ने पूछा — : कैसे महाराज ?साधू बोला — : मैंने तुम्हे दरिया से पानी लाकर देने के बजाय दरिया का रास्ता ही बता दिया...तुम्हे भी उन सभी प्यासों को दरिया का रास्ता बता देना चाहिए था...ताकि तुम्हारी भी प्यास मिट जायें ,और अन्य प्यासे लोगो की भी...फिर किसी को अपनी बाल्टी ख़ाली करने की जरुरत ही नहीं... इतना कहकर साधू अंतर्ध्यान हो गया.…..पुण्य आत्मा को सब कुछ समझ आ गया ,की अपना पुण्य ख़ाली कर दुसरो को देने के बजायें दुसरो को भी पुण्य अर्जित करने का रास्ता या विधि बताये……
भावार्थ — : ये तत्व ज्ञान है...अगर किसी के बारे में अच्छा सोचना है ,तो उसे उस परमात्मा से जोड़ दो ,ताकि उसे हमेशा के लिए लाभ मिलता रहें ।यह एक ऐसा तत्व ज्ञान हैं ।जो कि सद्गुरू की कृपा बिना किसी को नहीं मिल सकता,परम पिता परमेश्वर कबीर महाराज जी अपनी अच्छी आत्माओं को राज़ बता कर मानव अपना कल्याण कर शब्द रूपी नाम की कमाई कर के सत लोंक जानें के क़ाबिल हो कर अपनी नैया पार कर सकते हैं ।तत्व ज्ञान अद्भुत ज्ञान हैं, मैं सदैव ऐसे पवित्र ज्ञान पर क़ुर्बान जाऊँ ।मालिक जी की अपार कृपा हैं हमारें साथ हैं ,शुक्रगुज़ार हूँ, ऋणी हूँ परमात्मा की ।
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