जो सब का हो - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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जो सब का हो

ये दुनियां किसने बनाई, और किस के मंदिर में भगवान रहते हैं ।हिन्दुओं के अलग मन्दिर है।मुसलमानों के अलग मस्जिद है। जैनों के अलग मन्दिर है। ईसा...

ये दुनियां किसने बनाई, और किस के मंदिर में भगवान रहते हैं ।हिन्दुओं के अलग मन्दिर है।मुसलमानों के अलग मस्जिद है। जैनों के अलग मन्दिर है। ईसाईयों के अलग चर्च है।और इन सभी की अलग-अलग पूजा एवं अलग-अलग प्रार्थनाएँ होती है। लेकिन आज तक धरती पर मनुष्यों ने एक भी ऐसा मन्दिर नहीं बनाया जो सब का हो।और जो मन्दिर सब का नहीं, वह परमात्मा का कैसे हो सकता है। तुम्हारा हिन्दू होना, मुसलमान होना, सिख होना, ईसाई होना, जैन इत्यादि होना, यह सब तो सिर्फ मन का भ्रम है।
 

सही मायने में हम सभी इंसान एक है। नफरतों की दीवारों को तोड़कर एक रहो ,और स्वतंत्र रहो। स्वतंत्र व्यक्ति ना हिन्दू होता है। ना मुसलमान होता है। ना सीख होता है। ना ईसाई होता है। स्वतंत्र व्यक्ति तो सिर्फ मनुष्य होता हैं। लकीरें खींचोगे तो नफरतें पैदा होगी।फिर लकीरों को जरा यहाँ वहाँ किसी ने पार किया तो बंदूकें चल सकती है। युद्ध हो सकता है ,अब यहीं हो रहा ।

जब तक जमीन के नक्शे पर लकीरें रहेंगी, तब तक मानवता, कभी शांति से नहीं जी सकती, सारे विभाजन मिथ्या है। एक भीड़, एक राष्ट्र, एक धर्म, एक जाति का नहीं, पूरे अस्तित्व का हिस्सा बनों। अखंड दुनियां बनाओं।जो कभी टूटे ना मनुष्य होना ही पर्याप्त है। हिंदू, मुसलमान, ईसाई, होना यह सब भेद भाव, विभाजन, हिंसा, युद्ध, रक्तपात ,की जड़ें हैं। वैर ही नर्क है।अशांति ,नफ़रत को छोड़ दों ,मालिक ने बड़े प्यार से बनाया सज़ाया हैं ।इस पृथ्वी को रहने वाले जीव ,जातियों ,मनुष्यों को वर्ना पृथ्वी पर स्वर्ग ही स्वर्ग होता ,यहीं सत्य हैं ।बाकी कहीं कोई नर्क नहीं है।शत्रुता में जीना नर्क है। बहुत बड़ा माया जाल हैं ।तुम जितनी शत्रुता अपने चारों तरफ बनाते हो, उतना ही तुम्हारा नर्क बड़ा हो जाता है। सभी को पता हैं, हम कुछ समय के लिए दुनियाँ में आयें हैं ,मौत ने भी आना हैं ।सब कुछ छोड़ कर चलें जाना हैं ,तो कैसा गिला -शिकवा कैसी ईर्षा,द्वेष,यह सब क्या हैं।बड़े दुःख की बात हैं ।कैसी बिडमबना कैसा माहौल हैं ।

और यदि तुम अपने चारों में और मित्रता बनाए ,रखते हो तो उतना ही स्वर्ग बड़ा हो जाता है।स्वर्ग मित्रों के बीच जीने का नाम है।विश्वास,और ( नर्क ) शत्रुओं के बीच जीने का नाम है। और ये सब तुम पर निर्भर करता है। तुम खुद ही निर्माता हो तुम्हारा प्रेम ही पृथ्वी को स्वर्ग में बदल सकता है। केवल प्रेम ही पृथ्वी को बचाने में समर्थ है। मित्रता, सहयोग ,और प्रेम ,को फैलाओ। इस पृथ्वी पर सभी लोग मेहमान की तरह आते हैं ।और समय पूरा हो जाने के बाद इस धरतीं से चले जाते हैं। इस पृथ्वी को, इस दुनियां को मिलकर कुछ अधिक सुंदर बनाओ, प्यार तो कूट कूट कर भरा हैं ,सृष्टिकर्ता ने मनुष्य में समझ बहुत अधिक हैं फ़र भी लड़ाई झगड़ा क्यों ,देखों  जानबरों में समझ बहुत होती हैं लेकिन वह बोल नहीं सकते ,वह प्यार इतना करतें हैं सब कुछ क़ुर्बान करने पर तत्पर हैं । इंनसानियत  को ज़िन्दा रखें प्यार से भरी हुई हैं ,धरती पर अधिक प्रेम, पूर्ण, मित्रता से भरी हुई, अधिक सौन्दर्य से भरी हुई, अधिक उत्सव, आनंद, खुशहाली से भरी हुई, अधिक सुगन्ध युक्त बनाओ ।हवा, का झोंका तरह तरह की सुगन्ध फैलादे ।उन सभी मेहमानों के लिए जो हमारे साथ हैं ,और बाद में भी इस धरती पर आने वाले है।अच्छे कर्म करें ,सब का सहयोग,दान ,भंनडारा,लोगों की भलाई करतें रहना चाहिए आने वालें नये युग के लिये परिवर्तन शील रहें ।जो कुछ हो रहा हैं ,सब  विधि का विधान हैं ।जो होना हैं होकर रहेगा,पूर्ण यूनिवर्सल प्रेम से भर जायें ,अपने करमों को सुधार लें ,अपनी जीवन यात्रा को सफल बनायें शुभकामनाओं सहित ।
  शेष कल —:

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