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मुक्तिबोध

कबीर परमेश्वर जी को संत रविदास जी ने सुबह ही बता दिया था ,कि हे कबीर जी आज तो विरोधियों ने बनारस छोड़कर भगाने का कार्य कर दिया। आपके नाम से ...

कबीर परमेश्वर जी को संत रविदास जी ने सुबह ही बता दिया था ,कि हे कबीर जी आज तो विरोधियों ने बनारस छोड़कर भगाने का कार्य कर दिया। आपके नाम से पत्र भेज रखे हैं ,और ऐसा-ऐसा लिखा है। लगभग 18 लाख व्यक्ति साधु-संत लंगर खाने पहुँच चुके हैं। कबीर जी ने कहा ,कि मित्र आजा बैठ जा दरवाजा बंद करके सांगल लगा ले। आज-आज का दिन बिता कर रात्रि में अपने परिवार को लेकर भाग जाऊँगा। कहीं अन्य शहर-गाँव में निर्वाह कर लूंगा। जब उनको कुछ खाने को मिलेगा ही नहीं तो झल्लाकर गाली-गलौच करके चले जाएंगे। हम सांकल खोलेंगे ही नहीं, ( यानि दरवाज़ा ) यदि किवाड़ तोड़ेंगे तो हाथ जोड़ लूंगा, कि मेरा सामर्थ्य आप जी को भण्डारा कराने का नहीं है। गलती से पत्र डाले गए, मारो भावें छोड़ो। दोनों संतमाला लेकर भक्ति करने लगे। मुँह बोले माता-पिता तथा मृतक जीवित किए हुए लड़का तथा लड़की सुबह सैर को गए थे। इतने में दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी ने दरवाजा खटखटाया। संत रविदास जी ने कहा ,प्रभु ,लगता है कि अतिथि यहाँ पर भी पहुँच गए हैं।

कबीर जी ने कहा ,कि देख सुराख से बच्चे तो नहीं आ गए हैं। रविदास जी ने देखकर बताया कि नहीं, कोई और ही है। दो-तीन बार दरवाजा खटखटा कर राजा सिकंदर ने अपना परिचय देकर बताया कि, आपका दास सिकंदर आया है, आपके दर्शन करना चाहता है। परमेश्वर कबीर जी ने कहा राजन,आज दरवाजा नहीं खोलूंगा। मेरे नाम से झूठी चिट्ठियाँ भेज रखी हैं, लाखों संत-भक्त पहुँच चुके हैं। रात्रि होते ही मैं अपने परिवार को लेकर कहीं दूर चला जाऊँगा। सिकंदर लोधी ने कहा परवर दिगार ,आप मुझे नहीं बहका सकते, मैं आपको निकट से जान चुका हूँ। आप एक बार दरवाजा खोलो, मैं आपके दर्शन करके ही जलपान करूँगा।परमेश्वर की आज्ञा से रविदास जी ने दरवाजा खोला ,तो सिकंदर लोधी मुकट पहने-पहने ही चरणों में लेट गया ,और बताया कि आप अपने आपको छिपाकर बैठे हो, आपने कितना सुंदर भण्डारा लगा रखा है। आपका मित्र केशव आपके संदेश को पाकर सर्व सामान लेकर आया है।

आपके नाम का अखण्ड भण्डारा चल रहा है। सर्व अतिथि आपके दर्शना भिलाषी हैं। कह रहे हैं कि देखें तो कौन है कबीर सेठ जिसने ऐसे खुले हाथ से लंगर कराया है। मेरी भी प्रार्थना है कि आप एक बार भण्डारे में घूमकर सबको दर्शन देकर कृतार्थ करें। तब परमेश्वर कबीर जी उठे और कुटिया से बाहर आए तो आकाश से कबीर जी पर फूलों की वर्षा होने लगी तथा आकाश से आकर सिर पर सुन्दर मुकुट अपने आप पहना गया। तब हाथी पर बैठकर कबीर जी तथा रविदास जी व राजा चले तो सिकंदर लोधी परमेश्वर कबीर जी पर चंवर करने लगे ,और पहलवान से कहा ,कि हाथी को भण्डारे के साथ से लेकर चल। जो भी देखे और पूछे काशी वालों से कि कबीर सेठ कौन-सा है, उत्तर मिले कि जिसके सिर पर मोरपंख वाला मुकुट है, वह है कबीर सेठ ,जिस पर सिकंदर लोधी दिल्ली के बादशाह चंवर कर रहे हैं। सब एक स्वर में जय ,जय बोल रहे थे। जय हो कबीर सेठ की, जैसा लिखा था, वैसा ही भण्डारा कराया है। ऐसी व्यवस्था कहीं देखी न सुनी। भोजन खाने का स्थान बहुत लम्बा-चौड़ा था।उसमें घूमकर फिर वहाँ पर आए जहाँ पर केशव टैंट में बैठा था। हाथी से उतरकर कबीर जी तम्बू में पहुँचे ,तो अपने आप एक सुंदर पलंग आ गया, उसके ऊपर एक गद्दा बिछ गया, ऊपर गलीचे बिछ गए जिनकी झालरों में हीरे, पन्ने, लाल लगे थे। टैंट को ऊपर कर दिया गया जो दो तरफ से बंद था।

खाना खाने के पश्चात् सब दर्शनार्थ वहाँ आने लगे, तब परमेश्वर कबीर जी ने उन परमात्मा के लिए घर त्यागकर आश्रमों में रहने वालों तथा अन्य गृहस्थी व्यक्ति व ब्राह्मणों को आपस में (केशव तथा कबीर जी ने) आध्यात्मिक प्रश्न-उत्तर करके सत्यज्ञान समझाया। 8 पहर (24 घण्टे) तक सत्संग करके उनका अज्ञान दूर किया। कई लाख साधुओं ने दीक्षा ली और अपना कल्याण कराया। विरोधियों ने तो परमेश्वर का बुरा करना चाहा था, परंतु परमात्मा को इकट्ठे करे-कराए भक्त मिल गए अपना ज्ञान सुनाने के लिए। उन भक्तों को सतलोक से आया हुआ उत्तम भोजन कराया ,जिसके खाने से अच्छे विचार उत्पन्न हुए। उन्होंने परमेश्वर का तत्त्वज्ञान समझा, दीक्षा ली तथा कबीर जी ने उनको वर्षों का खर्चा भी दक्षिणा रूप में दे दिया। सब भण्डारा पूरा करके सर्व सामान समेट कर बैलों पर रखकर जो सेवादार आए थे, वे चल पड़े।

तब सिकंदर लोधी, शेखत की, कबीर जी, केशव जी तथा राजा के कई अंग रक्षक भी खड़े थे ।अंग रक्षक ने आवाज लगाई कि बैल धरती से छः इन्च ऊपर चल रहे हैं। पृथ्वी पर पैर नहीं रख रहे। यह लीला देखकर सब हैरान थे। फिर कुछ देर बाद देखा तो आसपास तथा दूर तक न बैल दिखाई दिए और न बनजारे सेवक। सिकंदर लोधी ने पूछा हे कबीर जी ,बनजारे और बैल कहाँ गए? परमेश्वर कबीर जी ने उत्तर दिया कि जिस परमात्मा के लोक से आए थे, उसी लोक में चले गए। उसी समय केशव वाला स्वरूप देखते-देखते कबीर जी के शरीर में समा गया। सिकंदर राजा ने कहा हे अल्लाहु अकबर ,मैं तो पहले ही कह रहा था कि यह सब आप कर रहे 
हो, अपने आपको छिपाए हुए हो। शेख तकी तो जल-भुन रहा था। कहने लगा कि ऐसे भण्डारे तो हम अनेकों कर दें। यह तो महौछा-सा किया है ( यानि ना शुक्रराना ) करना लोगों  का क्या ,कहना कुछ ना कुछ बोलते रहतें हैं ।उन का कोई मतलब नहीं होता ।वह धर्म अनुष्ठान जो किसी पुरोहित द्वारा पित्तर दोष मिटाने के लिए थोपा गया हो। उसमें व्यक्ति बताए गए नग (Items) मन मारकर सस्ती कीमत के लाकर पूरे करता है, हाथ सिकोड़कर लंगर लगाता है। जग जौनार कहते हैं जिसके घर कई वर्षों उपरांत संतान उत्पन्न होती है तो दिल खोलकर खर्च करता है, भण्डारा करता है ,तो खुले हाथों से। संत गरीबदास जी ने उस भण्डारे के विषय में जिसकी जैसी विचार धारा थी, वह बताई । कहते हैं ना ,जिस की जैसी सोच वह उतना ही कहेंगा अपनें बिचारो को ऊँचा बनायें ,शुक्रगुज़ार करना सीखिए ।

गरीब,—:  कोई कहे जग जौनार करी है, कोई कहे महौछा।
                    बड़े बड़ाई कार्या करें, गाली काढ़ै औछा ।

भावार्थ है ,कि जो भले पुरूष थे, वे तो बड़ाई कर रहे थे ,कि जग जौनार करी है। जो विरोधी थे, ईर्ष्यावश कह रहे थे ,कि क्या खाक भण्डारा किया है, यह तो महौछा-सा किया है। जब शेख तकी ने ये वचन कहे तो गूंगा तथा बहरा हो गया, शेष जीवन पशु की तरह जीया। अन्य के लिए उदाहरण बना ,कि अपनी ताकत का दुरूपयोग करना अपराध होता है, उसका भयंकर फल भोगना पड़ता है। केशव आन भया बनजारा षट्दल किन्ही हाँस है। परमेश्वर कबीर जी स्वयं आकर (आन) केशव बनजारा बने। षट्दल कहते हैं गिरी-पुरी, नागा-नाथ, वैष्णों, सन्यासी, शैव आदि छः पंथों के व्यक्तियों को जिन्होंने हँसी-मजाक करके चिट्ठी डाली थी। परमात्मा ने यह सिद्ध किया है ,कि भक्त सच्चे दिल से मेरे पर विश्वास करके चलता है तो मैं उसकी ऐसे सहायता करता हूँ ।किसी बसतु की कोई कमी महसूस नहीं होती ।मालिक के दरबार खुले भंडारे लगतें हैं ।यह सब प्रभु जी की अपार कृपा का प्रसाद  सब को मिलता रहें ,क़ुर्बान जाऊँ ।
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