एक गाँव का व्यक्ति पहली बार श्री नानक देव जी के पास गया। उसने देखा कि संत जी मायूस अवस्था में एकांत में बैठे थे।(स्मरण कर रहे थे) उस आदमी ने...
ना जाने काल की कर डारे, किस विधि ढ़ल जा पासा वे।
जिन्हाते सिर ते मौत खुड़कदी, उन्हानूं केहड़ा हांसा वे।
भावार्थ —: संत नानक जी ने कहा ,कि हे भाई ,इस मृत्युलोक में सब नाशवान हैं। पता नहीं किसकी जाने की बारी कब आ जाए ? इसलिए जिनके सिर पर मौत गर्ज रही हो, उस व्यक्ति को नाचना-गाना, हँसी-मजाक कैसे अच्छा लगेगा ? मूर्ख या नशे वाला व्यक्ति इस गंदे लोक में खुशी मनाता है। जैसे एक व्यक्ति की पत्नी को विवाह के दस वर्ष पश्चात् पुत्र प्राप्त हुआ।उसके उत्पन्न होने की खुशी में लड्डू बनाए, बैंड-बाजे बजाए, उधमस उतार दिया। अगले वर्षजन्म दिन को ही मृत्यु हो गई। कहाँ तो जन्मदिन की खुशी की तैयारी थी, कहाँ रोआ-पीटी शुरू हो गई। घर नरक बन गया। अब मना लो खुशी।वह व्यक्ति यह सच्चाई सुनकर काँप गया ,और बोला कि हे प्रभु ,आपकी बातें सत्य हैं, परंतु क्या आप कभी खुशी नहीं मनाते ? श्री नानक जी ने उत्तर दिया कि खुशी मनाता हूँ।साध मिले साडे शादी हूंदी, बिछुड़दा दिल गीरी वे।
अखदे नानक सुनो जिहाना मुश्किल हाल फकीरी वे।
भावार्थ —: जब मेरे शिष्य सत्संग सुनने आते हैं ,तो साध संगत को देखकर मेरे को खुशी होती है ,कि सब भक्ति पर लगे हैं। कोई विचलित नहीं हुआ है। जब ये सत्संग के पश्चात जाते हैं ,तो मायूसी छा जाती है ।कि कहीं कोई सिर फिरा इनको भ्रमित करके परमात्मा से दूर न कर दे। श्री नानक जी ने कहा कि ज्ञान हीन संतों ने फकीरी यानि भक्ति को कठिन बना दिया है। वे पूर्ण मोक्ष मार्ग जानते नहीं, भ्रमित करने को गुरू बने हैं ।जो मीठी-मीठी बातें बनाकर मेरे भक्तों को काल के जाल में ले जाते हैं। इसलिए जब तक वे पुनः सत्संग में सब नहीं आते तो मुझे चिंता बनी रहती है। सब आ जाते हैं तो खुशी होती है, परंतु हम नाचते-गाते नहीं, दिल में महसूस करते हैं। मौत को कभी नहीं भूलते।कबीर जी ने कहा है —:
मौत बिसारी मूर्खा, अचरज किया कौन।
तन मिट्टी में मिल जाएगा, ज्यों आटे में लौन।
अन्य उदाहरण —: एक सेठ एक दिन एक संत के आश्रम में गया। संत की कृपा से उसको अच्छा लाभ हो गया। वह सेठ सेब-संतरों, केलों का बड़ा थैला भरकर गया। संत जी ने एक टोकरे में डाल दिए जिसमें फल प्रसाद रखते थे। सेठ दो दिन बाद गया तो टोकरा फलों से भरा था। कुछ प्रसाद संत ने भक्तों को बाँट दिया। कुछ भक्त फल प्रसाद लाए, वह टोकरे में डाल दिया। सेठ ने संत से कहा कि महाराज आप फल क्यों नहीं खाते ? संत जी बोले कि मेरे को मौत दिखाई देती है। इसलिए खाया नहीं जाता। सेठ ने पूछा, महाराज कब जा रहे हो संसार से ?
संत जी बोले, आज से चालीस वर्ष पश्चात् मेरी मृत्यु होगी। सेठ बोले, हे महाराज यूं तो सबने मरना है, फिर क्यों डरना ? यह भी कोई बात हुई। इस तरह तो आम आदमी भी नहीं डरता। आप क्या बात कर रहे हो ? सेठ जी दूसरे-तीसरे दिन आए ,और इसी तरह की बात करे। उस नगरी का राजा भी उस संत जी का भक्त था। संत जी ने राजा से कहा,कि आपकी नगरी में किरोड़ीमल सेठ है। चंदन की लकड़ी की दुकान है। उसको फाँसी की सजा सुना दो ,और एक महीने बाद चांदनी चैदस को फाँसी का दिन रख दो। जेल में सेठ की कोठरी (कक्ष) में फलों की टोकरी भरी रहें तथा दूध का लोटा एक सेर (किलोग्राम) का भरा रहे। खाने को खीर, हलवा, पूरी वड़ीया सब्जी देना। राजा ने आज्ञा का पालन किया। जेल में सेठ जी को बीस दिन बंद हुए हो गए। निर्बल हो गया। संत जेल में गया। प्रत्येक बंदी से मिला। सेठ जी को देखकर संत ने पूछा, कहाँ के रहने वाले हो ? क्या नाम है ? सेठ बोला, हे महाराज आपने पहचाना नहीं, मैं किरोड़ीमल हूँ ,चंदन की दुकान वाला। संत जी बोले, अरे किरोड़ीमल ,तुम दुर्बल कैसे हो गए ? कुछ खाते-पीते नहीं। अरे फलों की टोकरी भी भरी है, दूध का लोटा भरा है। थाली में हलवा, खीर रखी है। सेठ जी बोले, हे महाराज,मौत की सजा सुना रखी है। कसम खाकर कहता हूँ ,कि मैं निर्दोष हूँ। बचा लो महाराज। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं।
संत जी बोले, भाई मरना तो सबने है। फिर क्या डरना। खा-पीकर मौज कर। सेठजी ने सलाखों में से हाथ निकाल कर चरण पकड़ लिए। बोला, बचा लो महाराज ,कुछ ना खाया-पीया जाता, चांदनी चैदस दीखै सै। संत ने कहा, सेठ किरोड़ीमल ,जैसे आज तेरे को चांदनी चैदस को मृत्यु निश्चित दिखाई दे रही है, इसी प्रकार साधु-संतों को अपनी चांदनीचैदस दिखाई देती है, चाहे चालीस वर्ष बाद हो।आप अध्यात्म ज्ञान हीन प्राणी मस्ती मारते हो ,और अचानक मौत ले जाती है। कुछ नहीं कर पाते। ऐसे ही मुझे अपनी मृत्यु का दिन दिखाई देता है ,जो चालीस वर्ष बाद आना है। इस कारण से खाना-पीना ठीक-ठीक ही लिया जाता है। मस्ती मन में कभी नहीं आती।परमात्मा की याद बनी रहती है। आपकी ज्ञान की आँखों पर अज्ञान की पट्टी बँधी है ।जो सत्संग में खोली जाती है ,जिससे जीने की राह मिल जाती है। मोक्ष प्राप्त होता है। संत ने राजा से कहकर सेठ को बरी करवा दिया। सेठ ने नाम लेकर भक्ति करना शुरू कर दी ,ताक़ि जीवन का कल्याण हो जायें। पृथ्वी पर आने का कोई ना कोई मक़सद अवश्य होता हैं करमों का हिसाब किताब निपटाने के लिए शब्द रूपी नाम की कमाई कर के अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाये ।
No comments
Post a Comment