ख़ुशी सीमित नहीं हैं , असीमित है - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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ख़ुशी सीमित नहीं हैं , असीमित है

काल की भूल-भुलईयाँ में फँसे व्यक्ति को समझाना :- रास्ते में वर्षा होने लगी। शीतल वायु बहने लगी। अब्राहिम ने एक झौंपड़ी देखी जो एक किसान की थ...

काल की भूल-भुलईयाँ में फँसे व्यक्ति को समझाना :- रास्ते में वर्षा होने लगी। शीतल वायु बहने लगी। अब्राहिम ने एक झौंपड़ी देखी जो एक किसान की थी। उसके पास दो बीघा जमीन बिना सिंचाई की थी। एक बूढ़ी गाय जो चार-पाँच बार प्रसव कर चुकी थी। एक काणी स्त्री थी। शीतल वायु के कारण उत्पन्न ठण्ड से बचने के लिए अब्राहिम अधम सुल्तान उस झौंपड़ी के पीछे लेट गया। रात्रि में दोनों पति-पत्नी बातें कर रहे थे ,कि वर्षा अच्छी हो गई है। गाय का चारा पर्याप्त हो जाएगा। अपने खाने के लिए भी अच्छी फसल पकेगी।अपने ऐसे ठाठ हो जाएंगे, ऐसे तो बलख बुखारे के बादशाह के भी नहीं हैं। अब्राहिम अधम सुल्तान यह सब वार्ता सुनकर उनकी बुद्धि पर पत्थर गिरे ,जानकर उनको भविष्य के दुःखों से अवगत कराने के उद्देश्य से सूर्योदय तक वहीं पर ठहरा रहा। सुबह उठकर उनकी झौंपड़ी के द्वार पर खड़ा होकर प्रणाम किया। दोनों पति-पत्नी झौंपड़ी से बाहर आए। अब्राहिम उनको भक्ति करने तथा माया से मुख मोड़ने का ज्ञान देने लगा।

कहा,कि आपके पास तो एक गाय है, एक स्त्री है ,दो बीघा जमीन है। आप इसी से चिपके बैठे हो। इसे बलख के बादशाह से भी अधिक ठाठ मान रहे हो। यह तो कुछ दिनों का मेला है। तुमको गुरू जी से उपदेश दिला देता हूँ ।तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा। मैं ही अब्राहिम अधम हूँ। मैं उस राज्य को छोड़ कर परमात्मा की प्राप्ति के लिए चला हूँ। उन्होंने कहा कि हमें तो लगता नहीं कि आप बलख शहर के राजा हो। यदि ऐसा है तो तेरे जैसा मूर्ख व्यक्ति इस पृथ्वी पर नहीं है। आपकी शिक्षा की हमें आवश्यकता नहीं है। सुल्तान ने कहा कि —:

गरीब, रांडी (स्त्री) ढांडी (गाय) ना तजैं, ये नर कहिये काग।
बलख बुखारा त्याग दिया, थी कोई पिछली लाग।

इसके पश्चात् अब्राहिम अधम पृथ्वी का सुल्तान तो नहीं रहा, परंतु भक्ति का सुल्तान बन गया। भक्त राजा बन गया। इसलिए उसको सुल्तान या प्यार में सुल्तानी नाम से प्रसिद्धि मिली। आगे की कथा में इसको केवल सुल्तान नाम से ही लिखा-कहा जाएगा। जैसे धर्मदास जी को धनी धर्मदास कहा जाने लगा था। वे भक्ति के धनी थे। वैसे संसारिक धन की भी कोई कमी नहीं थी। सुल्तान को परमेश्वर मिले ,और प्रथम मंत्र दिया और कहा कि —:

बाद में तेरे को सतनाम, फिर सार शब्द दूंगा। कबीर सागर के अध्याय ‘‘सुल्तान बोध‘‘ में पृष्ठ 62 पर प्रमाण है ।
प्रथम पान प्रवाना लेई । पीछे सार शब्द तोई देई। 
तब सतगुरू ने अलख लखाया। करी परतीत परम पद पाया।
सहज चौका कर दीन्हा पाना (नाम) काल का बंधन तोड़ बगाना।
विचार करें —: उस समय अब्राहिम के पास न तो आरती चौंका करने को धन था, न अन्य सुविधा थी। यह वास्तविक कबीर जी की दीक्षा की विधि है। जो आरती चौका, उसमें लाखों या हजारों का सामान, नारियल आदि का कोई प्रावधान नहीं है। वह तो बाद में कोई पाठ कराना चाहे तो कराए अन्यथा दीक्षा विधि केवल मंत्रित जल तथा मीठे पदार्थ (मीश्री-चीनी, गुड़, बूरा, शक्कर) से दी जा सकती है। सत्य नाम तथा सार शब्द में पान (पेयपदार्थ) नहीं दिया जाता। केवल दीक्षा मंत्र बताए-समझाए जाते हैं।

संत गरीबदास जी (गाँव-छुड़ानी, जिला-झज्जर, हरियाणा प्रान्त) को परमेश्वर कबीर जी मिले थे। उनको दिव्य दृष्टि प्रदान की थी। उसी के आधार से संत गरीबदास जी ने बताया है कि —:

गरीब, हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया ।
  जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी माहें कबीर हुआ।
   गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार। 
   सतगुरू पुरूष कबीर हैं, कुल के सर्जन हार ।
हमारे धन्य भाग ,भगवान कबीर महाराज जी ने आध्यात्मिक दृष्टि से सहीं मार्ग बतलाया 600 सालों-के बाद अब अनमोंल पवित्र ज्ञान का रास्ता मिला तत्व ज्ञान लाइफ़ में पहली बार सुना मालिक जी के मुखारबिंद से सुना ,उस समय लोग इतनें पढ़ें लिखे नहीं थे ।लेकिन आज तो बहुत पढ़ें लिखें  हैं ,अब तो तत्व ज्ञान मन की गहराइयों को छूता हैं ।यह सब प्रभु कृपा से फल मिलता हैं ।
नाम की कमाई कर के मालिक जी की कृपा से अपनीं जीवन यात्रा को सफल बनायें , ख़ुशी हमे कही बाहर से पर्याप्त नहीं होगी,यह तो हमारे अंदर ही हैं , इसे जाने और पहचाने, आप चाहे जहां भी घूम आयें,अगर आपके मन को ख़ुशी नहीं तो उसका कोई फ़ायदा नहीं है ।आप घर बैठे ही सारी ख़ुशिया पा सकते है ,क्योंकि हर ख़ुशी आप के अंदर ही हैं ।

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