लस्सी का कुल्हड़ - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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लस्सी का कुल्हड़

पूना में एक चर्चित दुकान बहुत मशहूर हैं ,वहाँ पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त- आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे हुए ...

पूना में एक चर्चित दुकान बहुत मशहूर हैं ,वहाँ पर लस्सी का ऑर्डर देकर हम सब दोस्त- आराम से बैठकर एक दूसरे की खिंचाई और हंसी-मजाक में लगे हुए थे ।कि वहाँ पर एक औरत लगभग 70-75 साल की बुजुर्ग स्त्री पैसे मांगते हुए हमारे सामने हाथ फैलाकर खड़ी हो गई ।उनकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे की झुर्रियों , भूख से मुरझाई हुई थी। नेत्र भीतर को धंसे हुए किन्तु सजल थे।उनको देखकर मन में न जाने क्या आया ,कि मैने जेब में सिक्के निकालने के लिए डाला हुआ हाथ वापस खींचते हुए उनसे पूछ लिया ।
दादी लस्सी पियोगी ? मेरी इस बात पर दादी कम अचंभित हुईं ,और मेरे मित्र अधिक हैरान हुए ,क्योंकि अगर मैं उनको पैसे देता तो बस 5 या 10 रुपए ही देता।लेकिन लस्सी तो 40 रुपए की एक है। इसलिए लस्सी पिलाने से मेरे गरीब हो जाने की और उस बूढ़ी दादी के द्वारा मुझे ठग कर अमीर हो जाने की संभावना बहुत अधिक बढ़ गई थी।दादी ने सकुचाते हुए हामी भरी,और उसके पास अपने पैसे थे ,जो मांग कर जमा किये हुये 6-7 रुपए थे,वो अपने कांपते हाथों से मेरी ओर बढ़ाए। मुझे कुछ समझ नहीं आया ,तो मैने उनसे पूछा,ये किस लिए ?

इनको मिलाकर मेरी लस्सी के पैसे चुका देना बाबू जी। भावुक तो मैं उनको देखकर ही हो गया था। रही बची कसर उनकी इस बात ने पूरी कर दी। एका एक मेरी आंखें छलछला आईं , आँसू टपकने लगे ,और बरवस ही जी भर आया ,मैंने दुकान वाले से एक गिलास लस्सी ओर बढ़ाने को कहा। उन्होनें अपने पैसे वापस मुट्ठी मे बंद कर लिए और पास ही जमीन पर बैठ गई ।

अब मुझे अपनी लाचारी का अनुभव हुआ ,क्योंकि मैं वहां पर मौजूद दुकानदार, अपने दोस्तों और कई अन्य ग्राहकों की वजह से उनको कुर्सी पर बैठने के लिए नहीं कह सका। डर था ,कि कहीं कोई टोक ना दे। कहीं किसी को एक भीख मांगने वाली बूढ़ी महिला के उनके बराबर में बिठाए जाने पर कोई आपत्ति न हो जाये। लेकिन वो कुर्सी जिस पर मैं बैठा था, मुझे काट रही थी ,अन्दर ही अन्दर मैं विवश था ,सब क्या कहेंगे ।
लस्सी कुल्लड़ों में भरकर हम सब मित्रों और बूढ़ी दादी के हाथों मे आते ही मैं अपना कुल्लड़ पकड़ कर दादी के पास ही जमीन पर बैठ गया ,क्योंकि ऐसा करने के लिए तो मैं स्वतंत्र था...इससे किसी को आपत्ति नहीं हो सकती थी...हां,मेरे दोस्तों ने मुझे एक पल के लिये घूरा। लेकिन वो कुछ कहते ,उससे पहले ही दुकान के मालिक ने आगे बढ़कर दादी को उठाकर कुर्सी पर बैठा दिया और मेरी ओर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर कहा ,आप भी ऊपर बैठ जायें ।…..साहब ,मेरे यहां ग्राहक तो बहुत आते हैं, …..किन्तु इंसान तो कभी-कभार ही आता है ।

दुकानदार के आग्रह करने पर,…. मैं और बूढ़ी दादी दोनों कुर्सी पर बैठ गये हालांकि दादी थोड़ी घबराई हुई थी ,मगर मेरे मन में एक असीम संतोष था..….होना भी चाहिए । जब कि हम कुछ अच्छा करते हैं ,तो मन को बहुत ख़ुशी मिलती हैं ।मनुष्य,जीव-जन्तु को उसी परमात्मा ने बनाया हैं । ऊँच नीच का भेद भाव नहीं होना चाहिए, सबको एक बराबर समझना चाहिए. इस संसार में कोई बड़ा छोटा नहीं है ,अगर हैं तो वह इंसान की सोच है ,बड़ी और छोटी, सोच को बदलें. ये मत सोचें कि क्या कहँगे लोग।विचारों का आदान-प्रदान अच्छा होना चाहिए ।ताकि भगवान जी का आशीर्वाद मिलता रहें ।अपनी जीवन यात्रा को सफल बनायें यूनिवर्सल को बनाने वाला भगवान हैं हरियाणा में हरि आयें हूये हैं ,हमें पल पल देख रहे हैं ।अपने अच्छे क्रमों को सदैव बनाएँ रखना ,युग बदल रहा हैं ,यह आप के पास अति सुंदर गोल्डन चाँस हैं ।

                                               तुलसी इस संसार में,सबसे मिलिए धाय।
                                               ना जाने किस वेश में,नारायण मिल जाए।

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