फकीर किसान के उपहार से बहुत खुश हुआ ,वह बहुत गरीब था काम धंधे का कोई साधन नहीं था ,किसान ने उसे गधा भेंट किया ।जिस से वह काम करने लगा ।फ़क़...
वह झुका कब्र के पास ,इसके पहले कि किसान कुछ कहे, उसने कुछ रूपये कब्र पर चढ़ाये।किसान को हंसी आई आयी, लेकिन तब तक भले आदमी की श्रद्धा को तोड़ना भी ठीक मालुम न पडा।उसे यह भी समझ में आ गया कि यह बड़ा उपयोगी व्यवसाय है।वह अब उसी कब्र के पास बैठकर रोता,यही उसका धंधा हो गया। लोग आते, गांव-गांव खबर फैल गयी कि किसी महान आत्मा की मृत्यु हो गयी ,गधे की कब्र किसी पहुँचे हुए फकीर की समाधि बन गयी। ऐसे वर्ष बीते, वह किसान बहुत धनी हो गया।
एक दिन जिस फ़क़ीर ने उसे यह गधा भेंट किया था, वह भी उस गांव के करीब से गुजरा ,उसे भी लोगों ने कहा, ऐ महान आत्मा की कब्र है ।यहां, दर्शन किये बिना मत चले जाना। वह गया ,देखा उसने इस किसान को बैठा ,उसने पूछा—: किस की कब्र है और तू यहाँ बैठा क्यों रो रहा है ? उस किसान ने कहा —:अब आप से क्या छिपाना ,जो गधा आप ने दिया था, उसी की कब्र है।जीते जी भी उसने बड़ा साथ दिया ,और मर कर और ज्यादा साथ दे रहा…..सुनते ही फकीर खिल खिलाकर हंसाने लगा। उस किसान ने पूछा आप हंसे क्यों ?
फकीर ने कहा —:तुम्हें पता है, जिस गांव में मैं रहता हूँ ,वहां भी एक पहुंचे हुये महात्मा की कब्र है। उसी से तो मेरा काम चलता है।किसान ने पूछा ,वह किस महात्मा की कब्र है, आपको मालूम है। उसने कहा —: हो सकता वह इसी गधे की मां की कब्र है।
धर्म के नाम पर अंधविश्वासों का बड़ा विस्तार है। धर्म के नाम पर थोथे, व्यर्थ ,के क्रिया,कांड़ो, यज्ञों, हवनों ,का बड़ा विस्तार है। फिर जो चल पड़ी बात, उसे हटाना मुश्किल हो जाता है। जो बात लोगों के मन में बैठ गयी, उसे मिटाना मुश्किल हो जाता है। इसे बिना मिटाये वास्तविक धर्म का जन्म नहीं हो सकता।ऐसे अब भी हो रहा हैं ।दुनियाँ भेड़ की चाल,एक दूसरे के देखा देखी अन्धी हो गई ।सिंचाई जान कर भी अनजान बनीं हुईं हैं सच मानने को तैयार नहीं ,मन को बहुत दु:ख होता हैं 😢कैसी दुनियाँ है । हे मालिक ,आप तो सब कुछ जानतें हैं सब कुछ करने में समर्थ हैं सब को अच्छी बुद्धि दे, अच्छी सोच दे ,तत्व ज्ञान की समझ होना अति आवश्यक है अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाने की कोशिश में हूँ यह सब गुरू कृपा से ही संभव हो सकता हैं ।
भावार्थ—: भगवान ही उन्हें सुबुद्धि प्रधान करे।संपूर्ण विश्व सत्य पर टिका हुआ हैं ।सत्य सर्वत्र संव्याप्त है। आपके अंतस से बोलता है ,परमात्मा की वो आवाज सुनो : तदनुसारसक्रिय बनो। चित्र नहीं, चरित्र अहम है। संत्रस्त होने में नहीं, 'स्व' को तृप्त करने में मन्ज़िल है। भगवान लोगों को सुबुद्धि दे ।ताक़ि सत्य को जान सकें उस से परिचित हो ,मालिक आप जी ने मुझ तुच्छ जीव आत्मा पर कृपादृष्टि बना कर मेरे दिल को सुकून मिला मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ ,ऋणी हूँ,सदैव आभारी रहूँगी अपनी कृपा बनायें रखना ।
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