प्रस्तुत है ,वो कहानी जो मेरे अंतर्मन को छू गई। शहर के एक अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बग़ीचे में तेज़ धूप और गर्मी की परवाह किये...
शहर के एक अन्तरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बग़ीचे में तेज़ धूप और गर्मी की परवाह किये बिना, बड़ी लग्न से पेड़ - पौधों की काट छाँट में लगा रहता था ।कि तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज़ सुनाई दी, रामदास तुझे प्रधान ने तुरंत बुला रही हैं।
रामदास को आख़िरी के पाँच मिनट काफ़ी तेज़ी महसूस हुई ,और उसे लगा कि कोई महत्त्वपूर्ण बात हुई है ।जिसकी वज़ह से प्रधान ने उसे तुरंत ही बुलाया है।शीघ्रता से उठा, अपने हाथों को धोकर साफ़ किया और चल दिया, तीव्र गति से कार्यालय की ओर।उसे कार्यालय की दूरी मीलों की लग रही थी ,जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही थी।उसकी हृदय गति बढ़ गई थी।सोच रहा था ,कि उससे क्या ग़लत हो गया जो आज उसको महोदया ने तुरंत ही अपने कार्यालय में आने को कहा।वह एक ईमानदार कर्मचारी था ,और अपने कार्य को पूरी निष्ठा से पूर्ण करता था। पता नहीं क्या ग़लती हो गयी। वह इसी चिंता के साथ कार्यालय पहुँचा......मैडम, क्या मैं अंदर आ जाऊँ ? आपने मुझे बुलाया था।
हाँ ,आओ और यह देखो महोदया की आवाज़ में कड़की थी ।अपने हाथ से इशारा किया पेपर पर पढ़ो इसे प्रधान ने आदेश दिया।मैडम मैं तो इंग्लिश पढ़ना नहीं जानता मैडम , रामदास ने घबरा कर उत्तर दिया। मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ ,मैडम यदि कोई गलती हो गयी हो तो ,मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूँ ,क्योंकि आपने मेरी बिटिया को इस विद्यालय में निःशुल्क पढ़ने की इज़ाज़त दी। मुझे कृपया एक और मौक़ा दें ,मेरी कोई ग़लती हुई है। तो सुधारने का मैं आप का सदैव ऋणी रहूँगा ,रामदास बिना रुके घबरा कर बोलता चला जा रहा था।उसे प्रधान ने टोका तुम बिना वज़ह अनुमान लगा रहे हो।थोड़ा इंतज़ार करो, मैं तुम्हारी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका को बुलाती हूँ।वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा-अध्यापिका प्रधान के कार्यालय में पहुँची जैसे वो पल लम्बे लगने रामदास के लिए। सोच रहा था ,कि क्या उसकी बिटिया से कोई ग़लती हो गयी, कहीं मैडम उसे विद्यालय से निकाल तो नहीं रहीं। उसकी चिंता और बढ़ गयी थी।
कक्षा-अध्यापिका के पहुँचते ही प्रधान महोदया ने कहा, हमने तुम्हारी बिटिया की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी।अब ये मैडम इस पेपर में जो लिखा है ,उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हें सुनाएँगी, ग़ौर से सुनो।कक्षा-अध्यापिका ने पेपर को पढ़ना शुरू करने से पहले बताया, आज मातृ दिवस था ।और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में एक लेख लिखने को कहा था ।तुम्हारी बिटिया ने जो लिखा उसे सुनो।उसके बाद अध्यापक ने पेपर पढ़ना शुरू किया।
मैं ,एक गाँव में रहती थी, एक ऐसा गाँव जहाँ शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितनी ही माँयें दम तोड़ देती हैं ।बच्चों के जन्म के समय, मेरी माँ भी उनमें से एक थीं। उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं कि चल बसीं। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति हैं ।मेरे परिवार के जिन्होंने मुझे गोद में लिया।पर सच कहूँ ,तो मेरे परिवार के वे अकेले व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाक़ी की नज़र में तो मैं अपनी माँ को खा गई थी। मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। मेरे दादा - दादी चाहते थे ,कि मेरे पिता जी दुबारा विवाह करके एक पोते को इस दुनिया में लायें ।ताकि उनका वंश आगे चल सके। परंतु मेरे पिता जी ने उनकी एक न सुनी ,और दुबारा विवाह करने से मना कर दिया। इस वज़ह से मेरे दादा - दादीजी ने उनको अपने से अलग कर दिया ।और पिता जी सब कुछ, ज़मीन, खेती बाड़ी, घर सुविधा आदि छोड़ कर मुझे साथ लेकर शहर चले आये ,और इसी विद्यालय में माली का कार्य करने लगे। मुझे बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी ज़रूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है।आज मुझे समझ आता है ,कि वे क्यों हर उस चीज़ को जो मुझे पसंद थी ,ये कह कर खाने से मना कर देते हैं कि वह उन्हें पसंद नहीं है, क्योंकि वह आख़िरी टुकड़ा होती थी। आज मुझे बड़ा होने पर उनके इस त्याग के महत्त्व पता चला।मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख - सुविधाओं का ध्यान रखा ।और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया ।जो मुझे यहाँ निःशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था।
यदि माँ, प्यार और देखभाल करने का नाम है ,तो मेरी माँ मेरे पिता जी हैं। यदि दया भाव, माँ को परिभाषित करता है तो मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ हैं। यदि त्याग, माँ को परिभाषित करता है ,तो मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं। यदि संक्षेप में कहूँ कि प्यार, देखभाल, दयाभाव ,और त्याग ,माँ की पहचान है ।तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं ।और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ हैं।आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामनाएँ दूँगी और कहूँगी कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक हैं। बहुत गर्व से कहूँगी कि ये जो हमारे विद्यालय के परिश्रमी माली हैं, मेरे पिता जी हैं।मैं जानती हूँ ,कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊँगी। क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था ।और मैंने पिता पर लिखा,पर यह बहुत ही छोटी सी क़ीमत होगी उस सबकी जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया ,धन्यवाद। आख़िरी शब्द पढ़ते - पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था ।और प्रधान के कार्यालय में शांति छा गयी थी।इस शांति में केवल रामदास के सिसकने की आवाज़ सुनाई दी ।सलूट करतीं हूँ ,भावनाओं को,और त्याग को ,अच्छे कर्म करके मेरा लालन पालन किया,माँ-बाप का ऋण बच्चें कभी नहीं उतार सकतें भगवान जी ने अपनी आत्मायें को सँभालने की सुन्दर व्यवस्था बनाई हैं ।अपनी जीवन यात्रा को अच्छे कार्य में लगाने का प्रयास करें और सफल बनायें ।
No comments
Post a Comment