सत्य - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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सत्य

प्रिय मित्रो... श्री हनुमान जी महाराज को नमन करते हुये, मंगल कामनाओं के साथ प्रस्तुत हैं । यह सत्य घटना, सन् 2009-10 की बात हैं :- जयपुर के ...

प्रिय मित्रो... श्री हनुमान जी महाराज को नमन करते हुये, मंगल कामनाओं के साथ प्रस्तुत हैं । यह सत्य घटना, सन् 2009-10 की बात हैं :- जयपुर के पास हनुमान जी का मंदिर है ,जहाँ हर साल मेला लगता है ।और मेले में जयपुर के आस- पास के देहातों से भी बहुत लोग आते जाते हैं बड़ी रौनक़ लगीं रहतीं हैं।

वहाँ मेले में हलवाई आदि की दुकानों पर बहुत लोगों की भीड़ लगी रहती हैं। बहुत ही शान्त,महत्वपूर्ण वातावरण देखने लायक़ होता हैं।एक लोभी हलवाई के पास एक साधु बाबा जी आये। उन्होंने हलवाई के हाथ में चवन्नी रखी और कहा :- पाव भर पेड़े दे दे। हलवाई — : महाराज चार आने में पाव भर पेड़े कितने के  मिलेंगे ? पाव भर पेड़े बारह आने के मिलेंगे, चार आने में नहीं।साधु — : हमारे राम के पास तो चवन्नी ही है। भगवान तुम्हारा भला करेगा, दे दे पाव भर पेड़े।

हलवाई  -महाराज मुफ्त का माल खाना चाहते हो ? बड़े आये हो.... पेड़े खाने का शौक लगा है ? साधु महाराज ने दो-तीन बार कहाँ किन्तु हलवाई न माना और उस चवन्नी को भी एक गड्डे में फेंक दिया। साधु महाराज बोले  पेड़े नहीं देते हो तो मत दो लेकिन चवन्नी तो वापस कर दो। हलवाई   चवन्नी पड़ी है ,गड्डे में ,जाओ, तुम भी गड्डे में जाओ। साधु ने सोचा  अब तो हद हो गयी ,फिर कहा तो क्या पेड़े भी नहीं दोगे और पैसे भी नहीं दोगे ?

नहीं दूँगा, तुम्हारे बाप का माल है क्या ? संभावित है इन्सान में जब ज़रूरत से ज़्यादा पैसा आ जाये ,तो ज़्यादातर लोगों में हंकार आ ही जाता है ।साधु तो यह सुनकर एक शिला पर जाकर बैठ गये।संकल्प में परिस्थितियों को बदलने की शक्ति होती है। बहुत ज़्यादा,जहाँ शुभ संकल्प होता है ,वहाँ कुदरत में चमत्कार भी घटने लगते हैं।रात्रि का समय होने लगा तो दुकानदार ने अपना गल्ला गिना। पाँच सौ नब्बे रूपये थे, उन्हें थैली में बाँधा और पाँच सौ पूरे करने की ताक में ग्राहकों को पटाने लगा यानि मनाने लगा कोई और आ जाये ।

पलक झपकते ही ,कहीं से चार तगड़े बंदर आ गये। एक बंदर ने उठायी पाँच सौ नब्बे वाली थैली ,और पेड़ पर चढ़ गया। दूसरे बंदर ने थाल झपट लिया। तीसरे बंदर ने कुछ पेड़े ले जाकर शिला पर बैठे हुए साधुओं की गोद में रख दिये ।और चौथा बंदर इधर से उधर कूदता हुआ शोर मचाने लगा।शोर की आवाज़ सुनकर और बन्दर आ गये।भीड़ देखने वाली थीं ।

यह देखकर दुकानदार के कंठ में प्राण आ गये। उसने कई उपाय किये कि बंदर पैसे की थैली गिरा दे।जलेबी-पकौड़े आदि का प्रलोभन दिखाया ,किन्तु वह बंदर भी साधारण बंदर नहीं था।उसने थैली नहीं छोड़ी तो नहीं छोड़ी।आखिर ,किसी ने कहा कि जिस साधु का अपमान किया था ।उसी के पैर पकड़ो।हलवाई गया और पैरों में गिरता हुआ बोला -महाराज गलती हो गई,गलती हो गई ,महाराज ,महाराज मुझे क्षमा याचना की संत तो बहुत दयालु होते हैं ।उन्हें तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कोई दे या न दे ।

साधु —गलती हो गयी है ,तो अपने बाप से माफी माँग ले।जो सबका माई-बाप है उस से माफी ले। मैं क्या जानूँ ? जिसने भेजा है ,बंदरों को उन्हीं से माफी माँग। हलवाई ने जो बचे हुए पेड़े थे ,वे लिए और गया हनुमान जी के मंदिर में। भोग लगाकर प्रार्थना करने लगा —: जै जै हनुमान गोसाईं.... मेरी रक्षा करो....मेरी रक्षा करो ……..मेरी रक्षा करो …..कुछ पेड़े प्रसाद करके बाँट दिये ,और पाव भर पेड़े ला कर उन साधु महाराज के चरणों में रखे।

साधु—-:  हमारी चवन्नी कहाँ है ? गड्डे में गिरी है। साधु -मुझे बोलता था कि गड्डे में गिर,अब तू ही गड्डे में गिर और चवन्नी लाकर मुझे दे।हलवाई ,ने गड्डे में से चवन्नी ढूँढ कर, धोकर चरणों में रखी।साधु ने हनुमान जी से प्रार्थना करते हुए कहाँ  प्रभो यह आपका ही बालक है। दया करो,देखते-देखते बंदर ने रूपयों की थैली हलवाई के सामने फैंकी ,लोगों ने पैसे इकट्ठे करके हलवाई को थमाये। बंदर कहाँ से आये, कहाँ गये ? यह पता न चल सका।इसे ही गुरू कृपा कहते हैं ।पल पल मालिक जी की याद बनीं रहें,मन में प्रभु सिमरन निरन्तर चलतें रहना चाहिए  सदैव प्रभु की याद के सिवायें कुछ भी नहीं चाहिये,यहीं सत्य हैं ।अपनी जीवन यात्रा को सफल करने के लिए मालिक जी के चरणों में समर्पित हो जायें ।

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