अनमोल रिश्ता - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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अनमोल रिश्ता

जब तक बाप जिंदा रहता है, बेटी मायके में हक़ से आती है। और घर में भी ज़िद कर लेती है ,और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है ,कि मेरे बाप का घर है...

जब तक बाप जिंदा रहता है, बेटी मायके में हक़ से आती है। और घर में भी ज़िद कर लेती है ,और कोई कुछ कहे तो डट के बोल देती है ,कि मेरे बाप का घर है। पर जैसे ही बाप  की मृत्यु होती हैं और बेटी आती है ,तो वो इतनी चीत्कार करके रोती है कि, सारे रिश्तेदार समझ जाते है ,कि बेटी आ गई है। और वो बेटी उस दिन अपनी हिम्मत हार जाती है, क्योंकि उस दिन उसका बाप ही नहीं उस की वो हिम्मत भी मर जाती हैं।

आपने भी महसूस किया होगा ,कि बाप की मौत के बाद बेटी कभी अपने भाई- भाभी के घर वो जिद नहीं करती जो अपने पापा के वक्त करती थी, जो मिला खा लिया, जो दिया पहन लिया क्योंकि जब तक उसका बाप था ।तब तक सब कुछ उसका था ,यह बात वो अच्छी तरह से जानती है।

आगे लिखने की हिम्मत नहीं है, बस इतना ही कहना चाहती हूं ।कि बाप के लिए बेटी उसकी जिंदगी होती है, पर वो कभी बोलता नहीं, और बेटी के लिए बाप दुनिया की सबसे बड़ी हिम्मत और घमंड होता है, पर बेटी भी यह बात कभी किसी को बोलती नहीं है। बाप बेटी का प्रेम समुद्र से भी गहरा हैं ।

बेटी तो बेटी  हैं जो सत्य है वह "टिकेगा" और जो असत्य है वह "मिटेगा"। ज़िन्दगी में कोई हमारा बुरा करे वो उसका "कर्म" है, लेकिन हम किसी का बुरा ना करें वह हमारा "धर्म" है। जो व्यक्ति बुरे  हालातों से गुजर कर सफल होता है, वह किसी का बुरा नहीं करता। जिस इंसान के अंदर सच्ची मानवता हो, उसकी सोच हमेशा यही होगी कि जो दुख मुझे मिला है ।वह किसी को ना मिले, और जो सुख मुझे मिला है वह सबको मिले। किसी भी इंसान को एकांत में भी गुनाह करने से बचना चाहिए क्योंकि इसका सबसे बड़ा गवाह स्वयं ईश्वर होते हैं। 

इसलिये दुनिया में कुछ नेक काम ऐसे भी करने चाहिए, जिनका ईश्वर के सिवाय कोई दूसरा गवाह ना हो। इंसान जब उस अवस्था में पहुंच जाता है, जहां वह दूसरों को प्रभावित करने के लिए नहीं जीता, बस  वही से उसकी स्वतंत्रता का आरंभ होता है। "सम्मान" के लिए संघर्ष अवश्य करें ।लेकिन अधर्म का साथ ना दें ।पूरा विश्व सत्य पर टिका हुआ है गुरू कृपा से ।

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