सद्गुरू प्रसाद - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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सद्गुरू प्रसाद

                        संतों की एक सभा चल रही थी. किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगा जल भरकर वहां रखवा दिया ,ताकि संतजन जब प्यास लगे तो गंगा ज...

                       
संतों की एक सभा चल रही थी. किसी ने एक दिन एक घड़े में गंगा जल भरकर वहां रखवा दिया ,ताकि संतजन जब प्यास लगे तो गंगा जल पी सकें. संतों की उस सभा के बाहर एक व्यक्ति खड़ा था. उसने गंगा जल से भरे घड़े को देखा तो उस के मन में तरह तरह के विचार आने लगें ।वह सोचने लगा :—अहो भाग्य ,यह घड़ा कितना भाग्यशाली है ।एक तो इसमें किसी तालाब पोखर का नहीं बल्कि गंगा जल भरा गया ,और दूसरे यह अब सन्तों के काम आयेगा ,संतों का स्पर्श मिलेगा, उनकी सेवा का अवसर मिलेगा ,ऐसी किस्मत किसी किसी की ही होती है।

घड़े ने उस के मन के भाव पढ़ लिए ,और घड़ा बोल पड़ा ,बंधु मैं तो मिट्टी के रूप में शून्य पड़ा था ,किसी काम का नहीं था ,कभी नहीं लगता था कि भगवान् ने हमारे साथ न्याय किया है ।फिर एक दिन एक कुम्हार आया । उसने फावड़ा मार मार कर हम को खोदा ,और गधे पर लाद कर अपने घर ले गया वहां ले जाकर हम को उसने रौंदा ,फिर पानी डालकर गूंथा ,चाक पर चढ़ा कर तेजी से घुमाया, फिर गीला काटा ,फिर थापी मार मार कर बराबर किया ।बात यहीं नहीं रूकी ,उसके बाद आंवे के आग में झोंक दिया जलने के लिए । इतने कष्ट सहकर बाहर निकला गया तो गधे पर लाद कर उसने मुझे बाजार में भेज दिया, वहां भी लोग ठोक ठोक कर देख रहे थे ।कि ठीक है कि नहीं आवाज़ से पता चल जाता हैं ? ठोकने पीटने के बाद मेरी कीमत लगायी भी तो क्या बस 50,से 100 ,150 रुपये साइज़ के मुताबिक़ क़ीमत लगाई जाती हैं ।मैं तो पल पल यही सोचता रहा ,कि हे ईश्वर सारे अन्याय मेरे ही साथ करना था ।

रोज एक नया कष्ट, एक नई पीड़ा देते हो ,मेरे साथ बस अन्याय ही अन्याय होना लिखा है ।भगवान ने कृपा करने की भी योजना बनाई है ,यह बात थोड़े ही मालूम पड़ती थी ।किसी सज्जन ने मुझे खरीद लिया ,और जब मुझ में गंगाजल भरकर सन्तों की सभा में भेज दिया गया था ,तब मुझे आभास हुआ कि कुम्हार का वह फावड़ा चलाना भी भगवान् की कृपा थी ।
उसका वह गूंथना भी भगवान् की कृपा थी ।आग में जलाना भी भगवान् की कृपा थी ।और बाजार में लोगों के द्वारा ठोके जाना भी भगवान की कृपा ही थीं।अब मालूम पड़ा कि यह तो सब भगवान् की कृपा ही कृपा थी।

परिस्थितियां हमें तोड़ देती हैं ,विचलित कर देती हैं ,इतनी विचलित की भगवान के अस्तित्व पर भी प्रश्न उठने लगते हैं ।नादानी में कितना कुछ भगवान को बोल देते हैं ।हम लोगों में कितनी अज्ञानता होती हैं ,यों तो हम सब इतनी सोचने की शक्ति नहीं होती ,ईश्वर की लीला समझने की, भविष्य में क्या होने वाला है ,उसे देखने की ।इसी नादानी में हम ईश्वर द्वारा कृपा करने से पूर्व की जा रही तैयारी को समझ नहीं पाते ,बस कोसना शुरू कर देते हैं । कि सारे पूजा पाठ, सारे जतन कर रहे हैं ,फिर भी ईश्वर हैं कि प्रसन्न होने और अपनी कृपा बरसाने का नाम ही नहीं ले रहे.पर हृदय से और शांत मन से सोचने का प्रयास कीजिए, क्या सचमुच ऐसा है ,या फिर हम ईश्वर के विधान को समझ ही नहीं पा रहे ?

आप अपनी गाड़ी किसी ऐसे व्यक्ति को चलाने को नहीं देते जिसे अच्छे से ड्राइविंग न आती हो। तो फिर ईश्वर अपनी कृपा उस व्यक्ति को कैसे सौंप सकते हैं ,जो अभी मन से पूरा पक्का न हुआ हो ।कोई साधारण प्रसाद थोड़े ही है ये, मन से संतत्व का भाव लाना होगा ।ईश्वर द्वारा ली जा रही परीक्षा ,की घड़ी में भी हम सत्य और न्याय के पथ से विचलित नहीं होते तो ईश्वर की अनुकंपा होती जरूर है ।किसी के साथ देर तो किसी के साथ सवेर से ।

यह सब पूर्वजन्मों के कर्मों से भी तय होता है ।कि ईश्वर की कृपादृष्टि में समय कितना लगना है। घड़े की तरह परीक्षा की अवधि में जो सत्यपथ पर टिका रहता है ,वह अपना जीवन सफल कर लेता है। तो क्या करना चाहिए ? धैर्य कैसे रखना चाहिए ? इंसान है ,तो उसका टूटना स्वाभाविक है ।पर नहीं टूटे इसके लिए क्या करें।? संतोष ,धैर्य ,का मार्ग ही विकल्प है ।जो प्राप्त है ,वह भी पर्याप्त है ,जब यह सोचना शुरू कर देंगे तो आत्मिक आनंद मिलने लगेंगा ,संसार का सबसे बड़ा सुखी वह है, जो मन के मौज में रहता है ।आप यह क्यों नहीं सोचते कि ईश्वर ने आपको जितना दिया है ।संसार में अनगिनत लोग हैं उन्हें तो उतना भी नहीं मिला है, बस उसे क्यों देखते हो जिस के पास आपसे ज्यादा प्राप्त है। ज़िन्दगी में यह सब कुछ क्रमों के अनुसार मिलता हैं ।तत्व ज्ञान सुन कर मन  को बहुत ख़ुशी मिलती हैं ।नाम की कमाई से मन को शांति मिलती हैं ।और सकून महसूस कर सकते हैं ।यहीं सत्य हैं ,हर पल शुक्रगुज़ार करना चाहिए ,जो भी ईश्वर की रचना के अनुसार करमों का फल मिलता हैं 


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