माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर। लोग अकसर जिंदगी भर हाथ में मोती की माला को घुमाते रहते हैं, पर उनके ...
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
लोग अकसर जिंदगी भर हाथ में मोती की माला को घुमाते रहते हैं, पर उनके मन का भाव नहीं बदलता, उसके मन की हलचल शांत नहीं होती। ऐसे व्यक्तियों को चाहिए कि वे माला के मनके फेरना छोड़ कर मन के मनकों को फेरें।
14 जून कबीर प्रकट दिवस के उपलक्ष्य में जरूर जानें कबीर साहेब का अद्वितीय अद्भुत ज्ञान जैसा कि हम सब जानते हैं ,कबीर जी को संत शिरोमणि की उपाधि दी जाती है। उनके दोहे बिना कोई भी सत्संग, कथा, पाठ पूर्ण नहीं समझे जाते हैं।जब कबीर साहेब ने जगत को सत्य ज्ञान बताया तब सभी धर्मगुरुओं, पंडितों, काजी,मौलवियों ,ने कबीर साहेब का विरोध किया, उनको धर्म विरोधी करार दिया। और अब सभी कबीर साहेब की महिमा का गुणगान करते हैं। कबीर साहेब का ज्ञान सबसे हटकर था। उन्होंने पंडितों, काजियों ,से ऐसे प्रश्न किये जो आज तक किसी ने नहीं किये। उनके प्रश्नों का किसी के पास भी जवाब नहीं था। फिर कबीर साहेब ही सबका जवाब प्रमाण सहित देते थे।
कबीर साहेब पंडितों से पूछते थे:
कौन ब्रह्मा का पिता है, कौन विष्णु की माँ।
शंकर का दादा कौन है, पंडित जी दे बता।
सभी धर्मगुरु यही कहते थे ,कि ये तीनों अजर अमर हैं ,इनके कोई माता पिता नहीं हैं। फिर कबीर साहेब बताते थे:-
कबीर साहेब पंडितों से पूछते थे:
कौन ब्रह्मा का पिता है, कौन विष्णु की माँ।
शंकर का दादा कौन है, पंडित जी दे बता।
सभी धर्मगुरु यही कहते थे ,कि ये तीनों अजर अमर हैं ,इनके कोई माता पिता नहीं हैं। फिर कबीर साहेब बताते थे:-
अब मैं तुमसे कहों चिताई, त्रयदेवन की उत्पत्ति भाई।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन, वे जम दारुण वंशन अंजन।
पहले किन्ही निरंजन राई, पीछे से माया उपजाई।
माया रूप देख अति शोभा, देव निरंजन तन मन लोभा।
धर्मराय किन्हा भोग विलासा, माया को रहि तब आशा।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये, ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।
तीन देव विस्तार चलाये, इनमें यह जग धोखा खाये।
तथा साथ में कहते थे ,कि आपके ग्रंथ श्रीमद्देवीभागवत व शिवपुराण में देख लो। कबीर साहेब पृष्ठ संख्या सहित बताते।इसी प्रकार मुस्लिम धर्मगुरुओं को समझाते थे:-
कंकर पत्थर जोड़ के, मस्जिद लियो बनाए।
उस पे चढ़ मुल्ला बंग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।
दिन में रोजा रखते है, रात हनत है गाय।
यह खून वह बंदगी, क्यों खुशी खुदाय।
एक मुल्ला मस्जिद में कुके, एक पुकारे बोका ।
इनमें कौन स्वर्ग को जाएगा, हमको लगा है धोखा।
जिस कारण से हिदू मुस्लिम धर्म के धर्मगुरुओं ने कबीर साहेब का बहुत विरोध किया। उस समय समाज अशिक्षित था। इसलिए सभी ने नकली धर्मगुरुओं की बात मानी तथा कबीर साहेब को अशिक्षित घोषित कर दिया। लेकिन कबीर परमेश्वर को मालूम था कि ये अभी मेरी बातों को नहीं मानेंगे। कबीर परमेश्वरने अपने शिष्य धर्मदास जी को बताया कि अभी मेरी बातें निराधार लगेंगी। लेकिन जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जायेगा तक मेरी बातें सब सिद्ध होगी। मैं तेहरवें पंथ में पुनः आऊंगा।और सब नकली पंथों को मिटाकर एक पंथ चलाऊंगा। ऊंच-नीच, जात-पात का भेद मिटाऊंगा।इसका प्रमाण कबीर साहेब में भी मिलता है:-
पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाये ।
माँ अष्टंगी पिता निरंजन, वे जम दारुण वंशन अंजन।
पहले किन्ही निरंजन राई, पीछे से माया उपजाई।
माया रूप देख अति शोभा, देव निरंजन तन मन लोभा।
धर्मराय किन्हा भोग विलासा, माया को रहि तब आशा।
तीन पुत्र अष्टंगी जाये, ब्रह्मा विष्णु शिव नाम धराये।
तीन देव विस्तार चलाये, इनमें यह जग धोखा खाये।
तथा साथ में कहते थे ,कि आपके ग्रंथ श्रीमद्देवीभागवत व शिवपुराण में देख लो। कबीर साहेब पृष्ठ संख्या सहित बताते।इसी प्रकार मुस्लिम धर्मगुरुओं को समझाते थे:-
कंकर पत्थर जोड़ के, मस्जिद लियो बनाए।
उस पे चढ़ मुल्ला बंग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।
दिन में रोजा रखते है, रात हनत है गाय।
यह खून वह बंदगी, क्यों खुशी खुदाय।
एक मुल्ला मस्जिद में कुके, एक पुकारे बोका ।
इनमें कौन स्वर्ग को जाएगा, हमको लगा है धोखा।
जिस कारण से हिदू मुस्लिम धर्म के धर्मगुरुओं ने कबीर साहेब का बहुत विरोध किया। उस समय समाज अशिक्षित था। इसलिए सभी ने नकली धर्मगुरुओं की बात मानी तथा कबीर साहेब को अशिक्षित घोषित कर दिया। लेकिन कबीर परमेश्वर को मालूम था कि ये अभी मेरी बातों को नहीं मानेंगे। कबीर परमेश्वरने अपने शिष्य धर्मदास जी को बताया कि अभी मेरी बातें निराधार लगेंगी। लेकिन जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जायेगा तक मेरी बातें सब सिद्ध होगी। मैं तेहरवें पंथ में पुनः आऊंगा।और सब नकली पंथों को मिटाकर एक पंथ चलाऊंगा। ऊंच-नीच, जात-पात का भेद मिटाऊंगा।इसका प्रमाण कबीर साहेब में भी मिलता है:-
पाँच हजार अरू पाँच सौ पाँच जब कलयुग बीत जाये ।
महापुरूष फरमान तब, जग तारन कूं आय।
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।
यथा सरितगण आप ही, मिलैं सिन्धु मैं धाये ।
सत्य सुकृत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।
जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि बार।
कपट-चातुरी तबहि लौं, स्वसम बेद निरधार।
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडिके, शरण कबीर गहंत।
एक अनेक हो गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।
घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय।
कलयुग में सब एक होई, बरतें सहज सुभाय।
कहाँ उग्र कहाँ शुद्र हो, हरै सबकी भव पीर (पीड़)
सो समान समदृष्टि है, समर्थ सत्य कबीर।
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि जिस समय कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा, तब एक महापुरूष विश्व को पार करने के लिए आएगा। हिन्दू, मुसलमान आदि-आदि जितने भी धर्म पंथ तब तक बनेंगे और जितने जीव संसार में हैं, वे उस महापुरूष से सत्यनाम लेकर सत्य नाम की शक्ति से मोक्ष प्राप्त करेंगे। वह महापुरूष जो सत्य कबीर पंथ चलाएगा, उस (तेरहवें) पंथ में सब पंथ स्वतः ऐसे तीव्र गति से समा जाएंगे ,जैसे भिन्न-भिन्न नदियाँ अपने आप निर्बाध दौड़कर समुद्र में गिर जाती हैं। ऐसे उस तेरहवें पंथ में सब पंथ शीघ्रता से मिलकर एक पंथ बन जाएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्याग कर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे।
हिन्दु तुर्क आदि सबै, जेते जीव जहान।
सत्य नाम की साख गही, पावैं पद निर्वान।
यथा सरितगण आप ही, मिलैं सिन्धु मैं धाये ।
सत्य सुकृत के मध्य तिमि, सब ही पंथ समाय।
जब लग पूर्ण होय नहीं, ठीक का तिथि बार।
कपट-चातुरी तबहि लौं, स्वसम बेद निरधार।
सबही नारी-नर शुद्ध तब, जब ठीक का दिन आवंत।
कपट चातुरी छोडिके, शरण कबीर गहंत।
एक अनेक हो गए, पुनः अनेक हों एक।
हंस चलै सतलोक सब, सत्यनाम की टेक।
घर घर बोध विचार हो, दुर्मति दूर बहाय।
कलयुग में सब एक होई, बरतें सहज सुभाय।
कहाँ उग्र कहाँ शुद्र हो, हरै सबकी भव पीर (पीड़)
सो समान समदृष्टि है, समर्थ सत्य कबीर।
परमेश्वर कबीर जी ने धर्मदास जी को बताया कि जिस समय कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा, तब एक महापुरूष विश्व को पार करने के लिए आएगा। हिन्दू, मुसलमान आदि-आदि जितने भी धर्म पंथ तब तक बनेंगे और जितने जीव संसार में हैं, वे उस महापुरूष से सत्यनाम लेकर सत्य नाम की शक्ति से मोक्ष प्राप्त करेंगे। वह महापुरूष जो सत्य कबीर पंथ चलाएगा, उस (तेरहवें) पंथ में सब पंथ स्वतः ऐसे तीव्र गति से समा जाएंगे ,जैसे भिन्न-भिन्न नदियाँ अपने आप निर्बाध दौड़कर समुद्र में गिर जाती हैं। ऐसे उस तेरहवें पंथ में सब पंथ शीघ्रता से मिलकर एक पंथ बन जाएगा। उस समय स्त्री-पुरूष उच्च विचारों तथा शुद्ध आचरण के होकर कपट, व्यर्थ की चतुराई त्याग कर मेरी (कबीर जी की) शरण ग्रहण करेंगे।
परमात्मा से लाभ लेने के लिए एक ‘‘मानव‘‘ धर्म से अनेक पंथ (धार्मिक समुदाय) बन गए हैं, वे सब पुनः एक हो जाएंगे। सब हंस (निर्विकार भक्त) आत्माएँ सत्य नाम की शक्ति से सतलोक चले जाएंगे। मेरे अध्यात्म ज्ञान की चर्चा घर-घर में होगी। जिस कारण से सब की दुर्मति समाप्त हो जाएगी। कलयुग में फिर एक होकर सहज बर्ताव करेंगे यानि शांतिपूर्वक जीवन जीएंगे। कहाँ उग्र अर्थात् चाहे डाकू, लुटेरा, कसाई हो, चाहे शुद्र, अन्य बुराई करने वाला नीच होगा। परमात्मा सत्य भक्ति करने वालों की भवपीर यानि सांसारिक कष्ट हरेगा ,दूर करेगा। और उस 13 वें (तेरहवें) पंथ का प्रवर्तक सबको समान दृष्टि से देखेगा अर्थात् ऊँच-नीच में भेदभाव नहीं करेगा। वह समर्थ सत्य कबीर ही होगा। ( मम् सन्त मुझे जान मेरा ही स्वरूपम् ) वह तेरहवां पंथ ‘‘यथार्थ सत कबीर‘‘ पंथ है। उसके प्रवर्तक स्वयं कबीर परमेश्वर जी हैं। वर्तमान में उसके संचालक जगतगुरु तत्वदर्शी संत कबीर जी महाराज है। अब ठीक का समय आ गया है ।कब परिवर्तन हो जाये ,उस की मौज है ,वह पूर्ण यूनिवर्सल के मालिक है ।
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