चिंतन अभ्यास - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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चिंतन अभ्यास

एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सत्संग का आनंद प्राप्त कर सके. चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड...

एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सत्संग का आनंद प्राप्त कर सके. चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा. उसके कपड़े कीचड़ से लथ पथ हो गए। वह वापस घर आया. द्वारा कपड़े बदल कर वापस सत्संग  की तरफ रवाना हुआ ,फिर ठीक उसी रास्ते के पास ठोकर खा कर गिर पड़ा। फिर घर वापस आया आकर कपड़े बदले. 

फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया. जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक आदमी लेम्प हाथ में लिए खड़ा है ।और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है. इस तरह वो आदमी उसे  सत्संग घर के दरवाज़े तक ले आया. पहले वाले आदमी ने  उससे कहा आप भी अंदर आकर सत्संग सुन लें. लेकिन वो आदमी लेम्प  हाथ में थामे खड़ा रहा ,और सत्संग घर में दाखिल नही हुआ. 

दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है ...?  दूसरे वाले आदमी ने  जवाब दिया "इसलिए ....... क्योंकि मैं काल हूँ। ये सुनकर पहले वाले आदमी की  हैरत का ठिकाना न रहा। काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था ,जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था।

जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा सत्संग घर  की तरफ रवाना हुए ,तो भगवान ने आपके सारे ......पाप क्षमा कर दिए. जब मैंने आपको दूसरी बार गिराया ,और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले ,और फिर दुबारा जाने लगे ,तो ........भगवान ने आपके पूरे परिवार के गुनाह क्षमा कर दिए। मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया ,और आप फिर कपड़े बदल कर  चले गये।तो कहीं ऐसा न हो वह मालिक आपके सारे .......गांव के लोगों के पाप क्षमा कर दे. इसलिए ......मैं यहाँ तक आपको खुद पहुंचाने आया हूँ।

अब हम देखे कि उस आदमी ने  दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी ,और तीसरी बार फिर  पहुँच गया ।और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाये या हमें कोई काम आ जाये तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं। भजन जाप छोड़ देते हैं। क्यों....??? क्योंकि हम जीव अपने भगवान से ज्यादा दुनिया की चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं। यह सब मिथ्या है ,ऐसा नहीं होना चाहिये ।यह तो दुनिया वालों की सोच पर निर्भर करता है।पहले किस को महत्व देना चाहिए ।यदि सत्य की सही पहचान हो जाये ,तो मनुष्य कभी गलती नहीं करता चाहे कुछ भी हो जाये ।भगवान पर अटूट, विश्वास, आस्था ,प्यार होना बहुत ज़रूरी है। दुनियावी बातों को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। विषेश कर परमात्मा के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है ।अपने दिल में भगवान के लिए बहुत प्यार हैं। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगी का नियम टूटने नहीं देना चाहता था। इसीलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया था ।और मालिक की बंदगी में रूकावट डाल रहा था, बाधा पहुँचा रहा था ।यह जो समय चल रहा है घोर-कलयुग का अब मालिक की जीत अवश्य होगी ।अभी बह वक़्त चल रहा हैं  (अब ठीक का समय है )

इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन-सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे हमें हार नहीं माननी चाहिए , हमें अपने मन से डट कर मुक़ाबला करना चाहिए, एक ना एक दिन हमारा मन भजन सिमरन में ज़रूर लगेगा और हमें अंदरूनी रस भी मिलेगा।  वह मालिक आप ही हमारे काम सिद्ध और सफल करेगा। इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए जी......अब की बार निश्चित सत्य की जीत होगी ।मालिक पर भरोसा रखे।

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