सुमिरन का महत्व - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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सुमिरन का महत्व

दुःख में सुमिरन सब करे , सुख में करे न कोए  जो सुख में सुमिरन करे ,तो दुख काहे को होए । अर्थ :- आपत्ति आने पर तो सब परमात्मा को याद करते है ...

दुःख में सुमिरन सब करे , सुख में करे न कोए 
जो सुख में सुमिरन करे ,तो दुख काहे को होए ।



अर्थ :- आपत्ति आने पर तो सब परमात्मा को याद करते है , परंतु सुख के समय मे याद नही करते। यदि सुख में परमात्मा का नाम स्मरण करते तो दुख नही होता है , लेकिन परमेश्वर हमारी दुःख सुख में हर परिस्थिति में सहायता करते है। क्योंकि ये हमारे पिता है ,जनक है ।

कबीर , सुख में सुमिरन किया नही, दुःख में करते याद ।
             कह कबीर ता दास की , कौन सुने फरियाद ।
अर्थ :-परमेश्वर जी ने कहा है कि जिस समय जीवन सुखी था, उस समय तो परमात्मा का नाम स्मरण किया नही , जिस समय पाप कर्मों के भोगने का दौर प्रारम्भ हुआ, दुख आया, तब लगे परमात्मा को याद करने। उस समय उस स्वार्थी की (फरियाद) परार्थना परमात्मा कैसे सुनेगा ? अर्थात फिर तो कष्ट भोगने के अतिरिक्त कोई विकल्प नही होगा।

                 मर गर्द में मिल गए ,वो रावण से रणधीर।
                 कंश केसी चाणूर से ,हिरणाकुश बलबीर।

अर्थ :- भक्ति न करके यदि आप शक्तिमान बनकर अपनी महिमा बनाना चाहते हो तो सुन लो कि रावण जैसे जो अपने अपने आपको मर्द अर्थात शूरवीर समझते थे , वे भी मिट्टी में मिल गए। और मथुरा के राजा कंश , उसका पाला हुआ राक्षस जो केशी ( घोड़े ) के रूप में बालक श्रीकृष्ण जी को मारने गया था, वह तथा कंश का पाला हुआ पहलवान चाणूर चमार जाति से था, वह कंश केसरी बनकर अपनी महिमा मानता था, ये सब श्री कृष्ण जी ने मार गिराए थे ।

एक हिरण्यकशीपु नाम का राक्षस राजा जो अपने आपको सर्व ओर से शक्तिमान मानता था, अपने पुत्र प्रहलाद भक्त को तंग करता था। वह परमेश्वर ने नरसिंह रूप धारण करके मारा था। भक्ति न करके अन्य बकवादो को आधार बनाकर मानव जीवन का नाश करा कर चले गए ।

फिर गरीबदास जी ने समझाया है कि -
तेरी क्या बुनियाद है , जीव जन्म धर लेत।
गरीबदास हरि नाम बिन , खाली परसी खेत।

अर्थ :- ये मनुष्य रूपी जो खेत आपको मिला है और इसमें बीज ठीक बोया नही तो ये आपका जीवन खाली खेत के तुल्य है। आपको कुछ प्राप्त नही होगा।

फिर परमेश्वर जी बताते है कि -
कबीर , हरि के नाम बिना ये राजा ऋषभ होए ।
माटि लदे कुम्हार को , फिर घास न निरे कोय ।

अर्थ :- कहते ये राजा आज आपको कितने अच्छे लगते है , कितने समर्थ लगते है , बड़े ठाठ से रहते है , लेक़िन भक्ति न करने वाले हरि के नाम बिना अर्थात परमात्मा के वो सतमन्त्र के बिना ये राजा भी गधा बने और माटी लदे गा कुम्हार के और कोई घास का चारा भी नही डालेगा। कुम्हार तो एक लठ मरेगा ,और भेज देगा जंगल मे चर के आएगा तो उसके कान पकड़ कर लाएगा। बड़ी दुर्गति होगी। ये सब बाते सत्संग में बताई जाती है, आपको कोई नही बताएगा। मृत्यु उपरांत इस मनुष्य शरीर की बहुत दुर्गति होती है। यदि अपने सतगुरु से दीक्षा ले रखी है। तो वह आपकी यह दुर्गति नही होने देता और सतगुरु एक समय एक ही होता है। इस पृथ्वी पर सद्‌गुरु जी महाराज ही वर्तमान में सच्चे सतगुरु है। जो कि सच्चा व प्रमाणित ज्ञान बताते है।  और अपने मनुष्य जीवन का कल्याण करवाये। जो कि Guru Kirpa से जीवन को सफल बना सकते है , मालिक की मर्ज़ी के बग़ैर पता भी नही हिल सकता। 

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