शुक्रिया मालिक का- 6 - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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शुक्रिया मालिक का- 6

मैंने अलग अलग गाँव में काम किया . गाँव चाहेड़ू , महेड़ू , नारंग पुर , और फगवाड़ा वहाँ पर मेरे अच्छे काम को देख बहुत सराहा ओर 6 महीन...

मैंने अलग अलग गाँव में काम किया . गाँव चाहेड़ू , महेड़ू , नारंग पुर , और फगवाड़ा वहाँ पर मेरे अच्छे काम को देख बहुत सराहा ओर 6 महीने की बजाये मुझे एक साल के लिए काम पर रखा . और मैं काम पर साइकिल से ज़ाया करती थी. सफ़र बहुत लम्बा था . इस लंबे समय के दौरान मैं अपने मन में यही सिमरन करती थी . साँझ सुबेरे अधरों पे मेरे ,बस तुम्हरा ही ध्यान ,मालिक  बस तुम्हरा ही ध्यान समय भी बहुत जल्दी से गुजर जाता था।और वक्त का पता भी नहीं चलता था ।

गाँव की हरियाली महौल ब्यू का नजारा देखने लायक़ था और मेरा भगवान पर पूर्ण विश्वास था. यहाँ मैं काम करती थी बह अति सुंदर गुरू द्वारा हुआ करता था वहाँ गाँव की लेडी पंच आकर खूब बातें करती थी ।हँसी मज़ाक़ चलता एक दूसरे को कुछ सिखने सिखाने का मौक़ा मिल जाता था ,28 30 के क़रीब स्टूडेंट्स सिलाई कड़ाई  पैचवर्क यानि Embro सिखा करती थी ।
सर्विस करते करते मेरा रिश्ता पक्का हो गया जो रीति रिवाज करना बह सब पूर्ण किया ।
उस समय में बड़ों की बहुत रिस्पेक्ट किया करते थे . जो वह कहते थे ,हम उनकी आज्ञा का पालन करते थे . परिवार में हम में से किसी को भी नहीं पता था .यह रिश्ता मेरे नाना जी ने तय किया था,किसी को कोई खबर नहीं थी ।यह ख़ुशख़बरी जब उन्होंने घर आ कर बताई तो सब बहुत खुश हुए .और कहा की लड़का बाहर चला गया हे .जब घर वालों ने कहा फ़ोटो दिखाओ तो उस समय कोई फ़ोटो भी नहीं थी.।समय गुज़रता गया तीन चार साल यू ही निकल गये पता ही नहीं चला ।

शेष कल-







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