मेरे दादा जी बहुत उच्च विचारो के थे. वे हमें किसी के घर का खाना नहीं खाने देते थे . वे हक़ हलाल की कम...
मेरे दादा जी बहुत उच्च विचारो के थे. वे हमें किसी के घर का खाना नहीं खाने देते थे . वे हक़ हलाल की कमाई खाना पसंद करते थे। उनका कहना था कि जैसा अन्न वैसा मन. परिश्रम से कमाया हुआ धन मन को संतुष्टि ,अच्छे विचार और सत बुद्धि देता है. इस लिए वह हमें अपने घर का ही खाना खाने को कहते थे . इस बात को हम आज भी अपनाते है . मैं अपने दादा जी की हर एक बात मानती थीं . मेरे दादा जी मेरी पढ़ाई से बहुत खुश थे .जब मैं पास होती थी तो मुझे इनाम भी मिलता था . पढ़ाई के साथ साथ मैंने बहुत सारे कोर्स भी किये
ज़ेसे ITI ,N.C.C राइफ़ल चलाना, हेल्थफ़ोर्स्टर ,पैंटिंग इत्यादि. और मैंने सोशल वर्क भी किया ज़ैसे -आम ,आँवला ,निंबू का आचार बनाया करती थीं . और अलग अलग तरीक़ों से गाजर ओर आँवले का मुरब्बा भी बनाती थीं .गाजर, गोभी , मटर, शलगम, लसुन ,अदरक, हींग ,गुड़ , सरसों,साबुत लाल मिर्च ,राई ओर सिरके का मिक्स आचार बहुत स्वादिष्ट बनता है. इस आचार को आप 3-6 महीनो तक रख सकते हो.
इन सब चीजों के साथ साथ सिलाईं ,कढ़ाई, कपड़े रंगना ,सर्फ़ ,साबुन बनाना ,बेडशीट पर पैचकटवर्ग कोर्स लोगों को करवाती थीं. गाँव में बहुत बड़ा मेला लगता था जिस में हर एक गाँव के लोग आते ओर इन सब चीजों को तैयार कर के, एक कोमपिटिशन हुआ करता था और इन सब चीजों को वहाँ बेचा जाता था . जिसका सबसे अच्छा होता था उसको ईनाम मिलता था. मुझे यह सब काम करने से बहुत ख़ुशी मिलतीं थी . दूसरों को ख़ुश रखना और देखना मेरा पैशन था .मैं गाँव मे गोर-मैंट जाव करती थी वहाँ के लोग बहुत सीधे साधे थे बड़ी सादगी हुआ करती थीं। खेतों में सब ताजी सब्ज़ियों ताज़ा गुडं ,गन्ने ,मूली ,गाजर ,इत्यादि ताज़ा खाने का अपना ही स्वाद है गाँव की ताजी ,हवा ,खेतों का लह लहाना,सोंदी सोंदी ख़ुशबू बहुत अच्छी लगती थी ।
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