मेरे दादाजी, गायत्री के पाठ के साथ साथ वह बड़े बड़े कोनफ़्रांस , और सम्मेलनों में ज़ाया करते थे . जब जीत कर आते तो लोग उन्हें फूलो की माला ...
मेरे दादाजी,
गायत्री के पाठ के साथ साथ वह बड़े बड़े कोनफ़्रांस , और सम्मेलनों में ज़ाया करते थे . जब जीत कर आते तो लोग उन्हें फूलो की माला पहनाते , और ख़ुशी का इज़हार प्रकट किया करते थे . नये महोल में आकर मुझे नया उत्साह ( हौसला मिला . दिन व दिन मैं बहुत कुछ सीखने लगी . जब मैं 6 साल की थी तो मैंने नया नया स्कूल शुरू किया . स्कूल में भी बहुत मनोरंजन हुआ करते थे . रोज़ाना के दिनचर्या में बहुत व्यस्त रहने लगी . कभी कही शादी , कहीं मुण्डन संस्कार , कहीं पाठ , ओर साल भर के दिन त्योहार चलते रहते , वक्त का पता ही नहीं चला . कब मैं 18 साल की होगी . मेरे दो भाई ओर दो बहने हैं और मैं तीसरे नम्बर पर हूँ . मुझे मेरे दादा जी की अभी भी वो बात याद है , मेरे दादा जी मुझे यह कहा करते थे ।बेटा स्कूल की किताबों में वो ज्ञान नहीं है जो कि दूसरी (ज्ञान, नोलेज) की किताबें पढ़ने में है ।
यह मेरे लिए एक बहुत बड़ा मेसिज है . ओर Joined family में मैंने बहुत कुछ सिखा है । ओर मेरे नाना जी का मेरे लिए एक बहुत बड़ा मेसिज यह था कि Don’t waste your energy (मतलब कि कम बोलों) . तो मैं उनकी कही हुई बातों का अनुसरण किया करती थीं । मेरे पिता जी बहुत बड़े केपटन ओर सेल्समैन थे ।उनका मेरे लिए यह मेसिज था कि बड़ों की सेवा करना और उनका आदर सम्मान करना , मुझे यह सब संस्कार अपनी विरासत से मिले हैं ,जिनका मैं आज भी पालन करती हूँ ।और मैं अपनी मन की गहराइयों से उनका आदर करती हूँ ।
परिवार में रह कर इन्सान बहुत कुछ सिखता है ।उस समय बहुत अच्छा माहौल हुआ करता था ।लोगों मैं प्यार बहुत होता
था ।एक दूसरे की रसपैकट किया करते थे ।बड़ों की सेवा ,उन का आशीर्वाद का बहुत महत्व हुआ करता था ।उन के सिखाये
हुये पद चिन्हों पर हम आज तक चलते आ रहे हैं ।पूर्ण परमात्मा का आशीर्वाद हम सब पर बना हुआ है ।बड़े परिवार में रहने का अपना ही मज़ा है एकता की बड़ी मसाल अपने घर से ही शुरू
होती थी ।लोग बहुत ही मिलन सार हुआ करते थे किसी क़िस्म का कोई मत भेद नहीं था ।
बड़े बड़े घर हुआ करते थे । अपनी ज़मीनें अपना बिज़नस किसे क़िस्म की कोई कमी नही थी ।गली मुहल्ले की चहल ख़ुश नमा माहौल बना रहता था। ज़िन्दगी के लक्ष्य को पूर्ण करना बचपन से मुझे अच्छा लगाता था कुछ ना कुछ सिखने लिखने पड़ने का बड़ा शौक़ था सभी प्यार करते सब से छोटी थी ।
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