एकता में बल-3 - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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एकता में बल-3

मेरी मासी की शादी बड़ी धूमधाम से हुईं . वह अपनी दोनो बहनो से बहुत सुन्दर थी . मेरे साथ उनका बहुत लगाव था . उस जमाने में औरते घर पर ही काम कि...



मेरी मासी की शादी बड़ी धूमधाम से हुईं . वह अपनी दोनो बहनो से बहुत सुन्दर थी . मेरे साथ उनका बहुत लगाव था . उस जमाने में औरते घर पर ही काम किया करती थीं . जेसे सुन्दर डिज़ाइनों वाली ख़ूबसूरत रंग़ , विरंगे दरियाँ , ग़लीचे , घर पर ही बनाया करती थी . कच्चे घरों को सजाने का आर्ट सभी के पास था . खाने के पकवान भी तरह तरह के स्वादिष्ट बनते थे . जब में छोटी थी तो मेरी पड़नानी की मृत्यो 107 साल की उम्र में ही हो गई । हमने उनसे बहुत कुछ सिखा ओर उनकी यादें आज भी दिलों , दिमाग़ में ताज़ा हे . यही ज़िन्दगी की सच्चाई हे . मैं ओर मेरी ममी दादा जी के घर (पंजाब )आ गये . सभी की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था . मेरे पिता जी के चार भाई ओर दो बहने थी .

 उनका भी अपना परिवार था लेकिन हम सब इकट्ठे रहते थे . घर भी बहुत बड़े थे ओर चहल पहल भी खूब थी . उस समय मैं 6-7 साल की थी . गाँव से शहर का महोल बहुत ही अलग था . ओर वहाँ का वातावरण भी बिल्कुल अलग था . यहाँ पर मेरे लिए सब कुछ नया ही था . यहाँ पर घर में रेडियो ,बिज़ली इत्यादि थी , सड़के भी पक्की थी ओर पक्के घर भी थे , मिट्टी के बर्तन भी नहीं थे . मुझे यह सब देख कर बहुत ख़ुशी हुईं . मेरे दादा जी का अपना बहुत बड़ा बिज़्नेस था . उनको अमेरिका , कनाडा , इंग्लैंड आदि कंट्रियो से ऑर्डर आया करते थे . घर के नज़दीक बाज़ार में फ़्री बहुत बड़ी लाइब्रेरी थी . वहाँ पर लोग आते अखबारे , किताबें पढ़तें ओर प्रत्येक रविवार गायत्री हवन हुआ करता .
 शेष कल-





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