बचपन की यादें- 2 - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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बचपन की यादें- 2

मेरी ममी ने गहरी सोच विचार कर के कहा ,नहीं में ऐसा नहीं करूँगी . जो भी जीव इस दुनिया में आता हे . वह अपनी क़िस्मत अपने साथ लेकर आता हे...




मेरी ममी ने गहरी सोच विचार कर के कहा ,नहीं में ऐसा नहीं करूँगी . जो भी जीव इस दुनिया में आता हे . वह अपनी क़िस्मत अपने साथ लेकर आता हे, आगे मालिक की मौज ,उसकी क्या इच्छा हैं जो होगा देखा जाएगा . फिर मेरी पड़नानी ने कहा ठीक हैं ,पुराने वजुर्ग बहुत अमीर हुआ करते थे . उनके पास शेरनी का सूखा दूध पानी में भिगोकर मुझे (गुड्ती ) दीं ,जैसा कि नये बचे को शहद चटाना , साथ में शुभकामनाए भी दीं ,धीरे -धीरे में बडने लगी ,सभी गली मुहल्ले वाले बहुत प्यार करते थे ,सबसे छोटी मैं ही थीं . उस समय खिलोने वगेरह नहीं हुआ करते थे .आँख मिचोनी , अड्डी टपा ,खेल कूद किया करते थे , नानी की कहानियाँ ओर लोरी सुना करते थे . उस समय यही सबसे अच्छा मनोरंजन था .यही बहुत क़ीमती पल हुआ करते थे . फिर ममी से मासी से बोलने ,सीखने लगी . वह रोज़ाना ही नित नेम किया करते थे . धीरे धीरे में भी सीखने लगी . मेरी पड़नानी भी मेरा बहुत ध्यान रखने लगी .जब में 4-5 साल की थी तब में उनकी सभी बातें समझने लगी . मुझे बचपन से ही लगन थी ,प्रभु के बारे जानने की लहर सदैव बनी रहती थी । 

हर पल  साँझ सवेरे ,अदरो में मेरे ,बस तुम्हरा ही ध्यान , गुरू जी बस तुम्हरा ही ध्यान ,( प्रभु कृपा ) सोई रहीं हूँ ,जागी रहीं हूँ 
बस तुम्हारा ही रहें ध्यान मालिक बस …..तुम्हारा ध्यान ।जिस परमात्मा ने पूर्ण यूनिवर्सल को बनाया इतना सजाया उस का कोई भेद नहीं पा सकता उस की मौंज वो ही जानता हैं ।सुबह का नित नैम ।
              
धोते चरण,गूरा दी शरण ,धोते हाथ रहे तेरा साथ , धोते कान रहे तेरा ध्यान, धोते नाक सिमरा स्वास स्वास ,

 धोते नैन मिले सुख चैन , धोता मथा, दलिदर लिथा , धोती नाभि, क़िस्मत जागी . धोते केश ,कटे  कलेश 

छीटा दिता नीर दा ,पाप जाये शरीर दा , छीटा दिता केसर दा नाम लमा परमेश्वर दा , 

सोणे दीया चोंकिया, पलंग लाई बिछा , दीन दयाल नों निहाल  कृपा निदान  ,सर्व शक्ति मान पर क़ुर्बान जा ,

पूर्ण सृष्टि की रचना ,करने वाले परम पिता परमेश्वर का ध्यान, सुमिरण, चिन्तन, मनन, करने से पापों  का नाश हो जाता है। वचपन से अपने बडो से सीखा है ,कुछ पूरब के संस्कारों  में  लिखा हुआ मिलता है , तो ही ध्यान लगता है। मालिक जी की कृपा से ही हो सकता वरणा ,इस दुनिया की भूल भुलेईयां में इंसान खो जाता है ।

सारांश: आकाश ओर पृथ्वी का नाभि के साथ यूनिवर्सल कोनेकशन हे . जैसा कि माँ का एक बच्चे  के साथ नाभि का कनेक्शन हे . संसार के सभी रिश्ते नाते से ऊँचा रिश्ता गुरु देव जी का हे . बचपन में हमें इन सब का ज्ञान नहीं था , अब रह रह कर सब पता चल रहा हे . मैं ख़ुश नसीब हूँ। अच्छे परिवार में जन्म हुआ। बहुत बड़े परिवार में बहुत कुछ सीखा 
Joined फ़ैमिली में खुश हाली
हंसी मज़ाक़ खूब हुआ करते थे ।बड़े बड़े घर अपनी ज़मीनें  खाने पीने की बड़ी मौज हुआ करती थी ।बचपन के दिनों की याद आती हैं खूब रौनक़ हँसी ,मज़ाक़ ,खेलना ,कूदना गली, आसपास के लोगों की बातें बड़ी मनोरंजक हुआ करतीं थीं ।
शेषकल-






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