कबीर जी का ज्ञान - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

Page Nav

HIDE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Breaking News:

latest

कबीर जी का ज्ञान

अंतिम सांस गिन रहे जटायु ने कहा कि "मुझे पता था। कि मैं रावण से नही जीत सकता ,लेकिन फिर भी मैं लड़ा ।यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढिया...






अंतिम सांस गिन रहे जटायु ने कहा कि "मुझे पता था। कि मैं रावण से नही जीत सकता ,लेकिन फिर भी मैं लड़ा ।यदि मैं नही लड़ता तो आने वाली पीढियां मुझे कायर कहतीं। जब रावण ने जटायु के दोनों पंख काट डाले. तो मृत्यु आई और जैसे ही मृत्यु आयी. तो गिद्धराज जटायु ने मृत्यु को ललकार कहा। खबरदार ,ऐ मृत्यु  ,आगे बढ़ने की कोशिश मत करना। मैं तुझ को स्वीकार तो करूँगा. लेकिन तू  मुझे तब तक नहीं छू सकती. जब तक मैं माता सीता जी की सुधि प्रभु श्रीराम को नहीं सुना देता। मौत उन्हें छू नहीं पा रही है ,काँप रही है खड़ी हो कर। मौत तब तक खड़ी रही, काँपती रही. यही इच्छा मृत्यु का वरदान जटायु को मिला।

किन्तु महाभारत के भीष्म_पितामह छह महीने तक बाणों की शय्या पर लेट कर के मृत्यु की प्रतीक्षा करते रहे ।आँखों में आँसू हैं ।वे पश्चाताप से रो रहे हैं ।भगवान मन ही मनमुस्कुरा रहे हैं , कितना अलौकिक है ,यह दृश्य रामायण मे जटायु भगवान की गोद रूपी शय्या पर लेटे हैं। प्रभु श्रीराम रो रहे हैं ,और जटायु हँस रहे हैं ।

वहाँ महाभारत में भीष्म पितामह रो रहे  हैं और भगवान श्रीकृष्ण हँस रहे हैं। भिन्नता प्रतीत हो रही है कि नहीं ?
अंत समय में जटायु को प्रभु श्रीराम की गोद की शय्या मिलीं , लेकिन भीष्म पितामह को मरते समय बाण की शय्या मिली ,जटायु अपने कर्म के बल पर अंत समय में भगवान की गोद रूपी शय्या में प्राण त्याग रहे हैं  प्रभु श्रीराम की शरण में. और बाणों पर लेटे लेटे भीष्म पितामह रो रहे हैं  ऐसा अंतर क्यों  ?

ऐसा अंतर इसलिए है ,कि भरे दरबार में भीष्म पितामह ने द्रौपदी की इज्जत को लुटते हुए देखा था. विरोध नहीं कर पाये और मौन रह गए थे ।दुःशासन को ललकार  देते. दुर्योधन को ललकार देते. तो उनका साहस न होता, लेकिन द्रौपदी रोती रही. बिलखती  रही. चीखती रही. चिल्लाती रही. लेकिन भीष्म पितामह सिर झुकाये बैठे रहे. नारी की रक्षा नहीं कर पाये ।

उसका परिणाम  यह निकला  ,कि इच्छा  मृत्यु का वरदान पाने पर भी बाणों की शय्या मिली और जटायु  ने नारी का सम्मान किया. अपने प्राणों की आहुति दे दी. तो मरते समय भगवान श्रीराम की गोद की शय्या मिली। जो दूसरों के साथ गलत होते देखकर भी आंखें मूंद लेते हैं। उनकी गति भीष्म जैसी होती है। जो अपना परिणाम जानते हुए भी औरों के लिए संघर्ष करते है, उसका माहात्म्य जटायु जैसा कीर्तिवान होता है।
भावार्थ—: अतः सदैव गलत का विरोध जरूर करना चाहिए , ( सत्य ) परेशान जरूर होता है, पर पराजित नहीं ।
हम अपनी मन मर्ज़ी करते है, मालिक की नही मानते तो दुखो के पहाड़ को निमन्त्रण दे देते है।
असंख्य ब्रह्माणडों मे  जितने भी प्राणी है ।यह सब सत्य पुरूष जी सम्पूर्ण आत्मायें है। जो सतलोक मे  रहते है , बह अपनी अल्प - बुद्धि  के कारण काल  ब्रह्म के साथ यहाँ आ गये। काल ने इन्सानों को ऐसा भ्रमित कर दिया कि हम असलियत को भूल गये। जिटायु तो पक्षी था उस की इतनी बड़ी सोच हम सभी तो इन्सान है । बुराई देख कर मौन ना रहे सत्य का साथ दे 
ज्ञान  के आधार से आँखें खुली रहे। मालिक मेरा मार्गदर्शन करे। हम सब को सदबुदि दे। हम सही रास्ते  पर चल सके। सप्म्पूर्ण  विश्व में आप का राज्य होगा,ओर है। हम सौभाग्य शाली है आप जी के दर्शन ,देखने का सुअवसर प्राप्त होगा। पूर्ण यूनिवर्सल मे आप जी के नाम की चर्चा होगी ,सभी महान आत्माएँ आप का गुणगान करेगी ,बहुत जल्द अब वह समय आ गया हैं मालिक जी के दर्शन कर पायेंगे समय की इन्तज़ार में हूँ 
आपकी अपनी आत्मा ।भगवान की बनाई अदालत हैं सत्य शान्त होता हैं असत्य शोर मचाता हैं ढोंग का जीवन नहीं ढंग का जीवन जीयों ,अपने करमों को सुधारीयें ।—: शेष कल 

No comments