अदली आरती असल अजूनी,नाम बिना है काया सूनी । झूठी काया खाल लुहारा, इला पिंगुला सुषमन द्वारा । कृतघनी भूले नरलोई , जा घट निश्चय नाम न ह...

अदली आरती असल अजूनी,नाम बिना है काया सूनी । झूठी काया खाल लुहारा, इला पिंगुला सुषमन द्वारा ।
कृतघनी भूले नरलोई , जा घट निश्चय नाम न होई । सो नर कीट पतंग भवंगा , चौरासी में धर हैं अंगा ।
उद् भिज खानी भुगतै प्रानी ,समझें नाही शब्द सहदानी । हम है शब्द है शब्द हम माही ,हम से भिन्न और कुछ नाही ।
पाप पुण्य दो बीज बनाया , शब्द भेद किन्हें बिरला पाया । शब्द सर्व लोक में गाजै ,शब्द वज़ीर शब्द है राजै ।
शब्द स्थावर जंगम जोगी , दास गरीब शब्द रस भोगी । अदली आरती असल ज़माना ,जम जौरा मेटूँ तलबाना।
धर्मराय पर हमरी धाई ,नौबत नाम चढ़ो ले भाई । चित्र गुप्त के काग़ज़ किरूँ ,जुगन जुगन मेंटू तकसीरूं ।
अदली गयान अदल इक रासा,सुन कर हंस न पावै त्रासा । अज़राईल जोरा वर दाना , धर्म राय का है तलवाना ।
मेटूँ तलब करूँ तागीरा ,भेंटें दास गरीब कबीरा । अदली आरती असल पठाऊं ,जुगन जुगन का लेखा लयाऊं ।
जा दिन नाथे पिण्ड न प्राणा, नहीं पानी पवन जिमी असमाना । कच्छ मच्छ कुरमभ न काया ,चन्द सूर नहीं दीप बनाया ।
शेष महेश गणेश न ब्रह्मा,नारद शारद न विश्वकर्मा । सिद्ध चौरासी ना तेतीसों ,नौ औतार नहीं चौबीसो ।
पाँच तत्व नाही गुण तीना , नाद बिंद नाही घट सीना । चित्र गुप्त नहीं कृत्रिम बाज़ी ,धर्म राय नहीं पण्डित काजी ।
धुनधूकार अनन्त जुग बीते,जा दिन काग़ज़ कहो किन चीते । जा दिन थे हम तख़्त खवासा,तन के पाजी सेवक दासा ।
संख जुगन परलो प्रवाना ,संत पुरूष के संग रहाना। दास गरीब कबीर का चेरा ,सत लोक अमरापुर डेरा ।
ऐसी आरती पारख लीजै ,तन मन धन सब अर्पण कीजै । जाकै नौ लख कुनज दिवाले भारी ,गोवर्धन से अनन्त अपारी ।
अनन्त कोटि जाकै बाजे बाजै,अनहद नाद अमरपुर साजैं । सुन्न मण्डल सतलोक निधाना ,अगम दीप देखया अस्थाना ।
अगर दीप में ध्यान समोई ,झिलमिल झिलमिल झिलमिल होई । ताँते खोजों काया काशी, दास गरीब मिले अविनाशी ।
ऐसी आरती अपरम् पारा ,थाके ब्रह्मा वेद उचारा । अनन्त कोटि जाकै शम्भु ध्यानी ,ब्रह्मा सखं वेद पढ़ै बानी ।
इन्द्र अनन्त मेघ रस माला , शब्द अतीत बिरध नहीं बाला । चन्द सूर जाके अनन्त चिरागा, शब्द अतीत अजब रगं बागा।
सात समुन्दर जाकै अंजन नैना , शब्द अतीत अजब रगं बैना । अनन्त कोटि जाकै बाजा बाजें ,पूर्ण ब्रह्म अमरपुर साजै ।
तीस कोटी रामा औतारी ,सीता संग रहती नारी । तीन पदम् जाकै भगवाना , संपत नील कंहवा संग जाना ।
तीस कोटि सीता संग चेरी ,सप्त नील राधा दे फेरी । जाके अर्थ रूंम पर सकल पसारा , ऐसा पूर्ण ब्रह्म हमारा ।
दास गरीब कहैं नर लोई,यौह पद चिन्हें बिरला कोई । गरीब सत्वादी सब संत है ,आप आपने धाम ।
आजिज़ की अरदास है ,सब संतन प्रणाम ।
आजिज़ की अरदास है ,सब संतन प्रणाम ।
शेष कल—:
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