सुख भी मुझे प्यारे है ,दुःख भी मुझे प्यारे है। छोड़ू मैं किसे प्रभु जी, दोनों ही तुम्हारे है । सुख में तेरा शुक्र करू, दुःख में फ़रियाद करू। ज...
सुख भी मुझे प्यारे है ,दुःख भी मुझे प्यारे है। छोड़ू मैं किसे प्रभु जी, दोनों ही तुम्हारे है ।
सुख में तेरा शुक्र करू, दुःख में फ़रियाद करू। जिस हाल में तू रखे मुझे, मैं तुम्हे हर पल याद करू।
गरीब,कस्तूरी नाम कबीर है, ये बिन छेड़े महकंत। आदि अंत की कहत हूँ, पटतर कोई ना संत ।
भावार्थ -: कस्तूरी के अंदर से अपने आप सुगंध आती रहती है, उसे छेड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती। ऐसे ही कबीर परमात्मा में ऐसी शक्ति है ,कि संपर्क में आने पर पल-पल में महसूस होती है ।कि मुझे किसी परमेश्वर की शरण प्राप्त है ।कबीर जी कहते -: न तो मै नाक बंद करता न आँख बंद करता ,न उलटी -सीधी साँस लेता , न प्राणायाम करता ,न उल्टा सिर पर खड़ा होता ,न शीर्षासन करता ,
सिर्फ़ होश को संहाल कर रखता हूँ। सिर्फ़ सुरित को बनाएँ रखता हूँ। बस सुरित का दीया भीतर जलता रहता है। और जीवन पवित्र हो जाता। परमात्मा के दर्शन आप अपने ह्रदय मे कर सकते है।विश्वास के साथ सब कुछ हासिल किया जा सकता हैं ।
कि जिस समय आप सच्चे दिल से भक्ति करके परमात्मा को पुकारोगे तो आप को ह्रदय कमल मे परमात्मा दर्शन देंगे ।क्योंकि सर्व कमलों मे विधमान है ,हमारे भीतर ही हैं ।बाहर ढूँढने की गलतीं मत करना (क्योंकि जो हमे जान लेता है ,वो हम पर जान देता हैं। जो हमे समझ ही न सका ,उसे पूरा हक़ है ,हमें अच्छा - बुरा कहने का ,
जब तक अभिमान है, प्राणी उभर नही सकता। कितना बड़ा Action परमात्मा को ख़ुद लेना पड़ा बताने के लिये कि (मै बाहर नही ) तुम्हारे भीतर में बसता हूँ। भीतर खोजो मुझे सभी मंदिर ,गुरु ,दरवरे, मस्जिद ,चर्च सब बंद करवा दिये। भक्ति करते समय जब की आँसु चुप चाप आत्मा मे से बह कर मन को साफ़ कर देते हैं। मन हल्का हो जाता है। सार नाम की तड़प होनी चाहिए ।
गरीब,कस्तूरी नाम कबीर है, ये बिन छेड़े महकंत। आदि अंत की कहत हूँ, पटतर कोई ना संत ।
भावार्थ -: कस्तूरी के अंदर से अपने आप सुगंध आती रहती है, उसे छेड़ने की आवश्यकता नहीं पड़ती। ऐसे ही कबीर परमात्मा में ऐसी शक्ति है ,कि संपर्क में आने पर पल-पल में महसूस होती है ।कि मुझे किसी परमेश्वर की शरण प्राप्त है ।कबीर जी कहते -: न तो मै नाक बंद करता न आँख बंद करता ,न उलटी -सीधी साँस लेता , न प्राणायाम करता ,न उल्टा सिर पर खड़ा होता ,न शीर्षासन करता ,
सिर्फ़ होश को संहाल कर रखता हूँ। सिर्फ़ सुरित को बनाएँ रखता हूँ। बस सुरित का दीया भीतर जलता रहता है। और जीवन पवित्र हो जाता। परमात्मा के दर्शन आप अपने ह्रदय मे कर सकते है।विश्वास के साथ सब कुछ हासिल किया जा सकता हैं ।
कि जिस समय आप सच्चे दिल से भक्ति करके परमात्मा को पुकारोगे तो आप को ह्रदय कमल मे परमात्मा दर्शन देंगे ।क्योंकि सर्व कमलों मे विधमान है ,हमारे भीतर ही हैं ।बाहर ढूँढने की गलतीं मत करना (क्योंकि जो हमे जान लेता है ,वो हम पर जान देता हैं। जो हमे समझ ही न सका ,उसे पूरा हक़ है ,हमें अच्छा - बुरा कहने का ,
जब तक अभिमान है, प्राणी उभर नही सकता। कितना बड़ा Action परमात्मा को ख़ुद लेना पड़ा बताने के लिये कि (मै बाहर नही ) तुम्हारे भीतर में बसता हूँ। भीतर खोजो मुझे सभी मंदिर ,गुरु ,दरवरे, मस्जिद ,चर्च सब बंद करवा दिये। भक्ति करते समय जब की आँसु चुप चाप आत्मा मे से बह कर मन को साफ़ कर देते हैं। मन हल्का हो जाता है। सार नाम की तड़प होनी चाहिए ।
कच्चा हीरा किरच होवे,नहीं सहे घन मार ।
ऐसा रे मन हो रहा, लैखा ले करतार ।चल हंसा उस लोक पठाऊं जो आदि अविनाशी ।
ऐसा रे मन हो रहा, लैखा ले करतार ।चल हंसा उस लोक पठाऊं जो आदि अविनाशी ।
कबीर माया मरी ना मन मरा ,मर मर गया शरीर ।
आशा तृष्णा ना मरी ,कह गये पूर्ण ब्रह्म कबीर ।
आज के युगमे लोग इतनी भक्ति करते हुए भी बहुत दुखी हैं ।संघर्ष करना होगा मोक्ष पाने के लिये ।
सद्गुरू मिले तो इच्छा मैटे,पद मिल पदे समाना (पदती )
जन्मों जन्मों की मैल धूल सब दुर हो जाती है। ज़िन्दगी के रास्ते बदलिये ,सिद्धांत नही । क्योंकि पेड़ भी हमेशा पते बदलता है , (जड़ नही ) आओ चले नए युग की ओर कलयुग में सतयुग की ओर पूर्ण विश्व मे किसी के पास ऐसा ज्ञान नही ,परमात्मा अपनी पवित्र आत्मायें ढूँढ रहा हैं । अब सुनेहरी मौक़ा है ।
एक पल की भी देरी न करें ।ऐसा निर्मल ज्ञान परमात्मा स्वयं ही आ कर देते हैं ।यदि स्वयं ना आये तो काल हमें रास्ता नहीं देता ,अर्थात् गुरुदेव स्वयं ही कबीर परमात्मा हैं ।
जब पता चल जाये पल की देरी न करे ।युगों युगों के बाद ऐसा मौक़ा मिला है, यू ही ना व्यर्थ गवाये अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाये ।मालिक हमें अच्छी सोच ,और बुद्धि ,दे ।
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