कबीर जी की काल से वार्ता - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

Page Nav

HIDE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Breaking News:

latest

कबीर जी की काल से वार्ता

अब हम काल के लोक में रह रहे हैं। आत्मा के ऊपर स्थूल सूक्ष्म आदि आदि शरीर चढ़ाकर काल ने जीव बना दिये हैं। इस ने जीव को भ्रमित  किया है ।प...





अब हम काल के लोक में रह रहे हैं। आत्मा के ऊपर स्थूल सूक्ष्म आदि आदि शरीर चढ़ाकर काल ने जीव बना दिये हैं। इस ने जीव को भ्रमित  किया है ।पूर्ण परमात्मा जो आत्मा का जनक है भुला दिया है। स्वयं को परमात्मा सिद्ध किया है। यह परमात्मा के अंश जीवात्माको परेशान  करता है ,ताकि परमात्मा दुखी होकर यही मन रूप में प्रत्येक आत्मा के साथ रहता है। गलती करवाता है, दण्ड जीवात्मा आत्मा भोगती है। जैसे शराब,  अफ़ीम,सुलझा ,आदि -आदि नशे की लत लगवाना , (Rape) करवाना और अन्य पाप करवाना। यह मन की प्रेरणा से काल करवाता है ।जब आप गुरु जी  से दीक्षा लोगे, तब यह सीधा चलेगा क्योंकि जीवात्मा के साथ परमात्मा की शक्ति रहने लगती हैं । आत्माको तत्व ज्ञान से विवेक हो जाता है। परमात्मा की शक्ति के कारण आत्मा दृढ़ हो जाती हैं। काल ब्रह्म केवल  परमात्मा से डरता है ।

संत गरीब दास जी ने कहा है-: 
 काल डरै करतार से ,जय -जय -जय जगदीश। जौरा जोड़ी झाड़ता ,पग रज डारे शीश। 
काल जो पीसे पीसना ,जौरा है पनिहार।ये दो असल मज़दूर है। सतगुरु कबीर के दरबार ।

भावार्थ - : परमात्मा कबीर जी हमारी आत्मा को काल जाल से निकालने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। काल ब्रह्म फँसाने का प्रयत्न करता है। आगे के प्रकरण में प्रत्यक्ष प्रमाण है ।

सर्व प्रथम परमेश्वर ने सर्व ब्राह्मणडो तथा प्रणीयो की रचना की और आपने लोक में विराम करने लगे। उस के बाद हम सभी काल के ब्रह्माण्ड में रह कर अपना किया हुआ कर्म दण्ड भोगने लगे और बहुत दुखी रहने लगे । सुख व शांति की खोज में भटकने लगे ,और हमें अपने निज घर सतलोक की याद सताने लगी ,तथा वहाँ जाने के लिए भक्ति प्रारंभ की। किसी ने चारों वेदों को कंठस्थ किया ,

उन्हें चतुर्वेदी कहा जाने लगा। किसी ऋषि ने तीन वेदों को कण्ठसथ किया। उन को त्रिवेदी कहा जाने लगा। किसी ऋषि ने दो वेदों को कणठसथ किया ।उन्हें दिध वेदी कहा जाने लगा ,जिस से उनकी महिमा बन गई । कोई उम्र तप करने लगा और हवन, यज्ञ , ध्यान,समाधि ,आदि क्रियाएँ प्रारम्भ की लेकिन अपने निज घर सतलोक नहीं जा सके क्योंकि उपरोक्त कियाएं करने से अगले जन्मों में अच्छे समृद्ध जीवन को प्राप्त होकर जैसे राजा-महाराजा ,बड़ा बयापारी ,अधिकारी ,देव -महादेव ,स्वर्ग -महास्वर्ग आदि  वापिस लख चौरासी भोगने। बहुत परेशान रहने लगे ,और परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे कि हे दयालु हमें निज घर का रास्ता दिखाओ।
हम ह्रदय से आप की भक्ति करते हैं। आप हमें दर्शन क्यों नहीं दे रहे हो। यह वृतान्त कबीर साहेब ने धर्मदास जी को बताते हुए कहा कि हे धर्मदास। इन जीवों की पुकार सुनकर मैं सुनकर मैं अपने सतलोक से जोगजीत का रुप बनाकर काल लोक में आया। तब इक्कीसवें ब्रह्माण्ड में जहाँ काल का निज घर है , वहाँ पर तपत शिला पर जीवों को भूनकर सूक्ष्म शरीर से काल ब्रह्म के लिए खाध पदार्थ निकाला जा रहा था (जैसे वर्तमान में एक ऐसा यंत्र बनाया है जिस से मछलियों को डाल कर उन पर विशेष दबाव बनाकर तेल निकाला जाता है। मछलियाँ मरती नहीं ,परन्तु दर्द बहुत होता है। ।
 उन्होंने मुझे देख कर कहा कि हे पुरूष। आप कौन हो ।आप के दर्शन मात्र से ही हमें बड़ा सुख व शांति का आभास हो रहा है। तब मैंने बताया कि मैं पारब्रह्म परमेश्वर हूँ।आप सब जीव मेरे लोक से आकर काल ब्रह्म के लोक में फसं गये हो। यह काल रोज़ाना एक लाख मानव के सूक्ष्म शरीर से पदार्थ निकाल कर खाता है ।और सवा लाख रोज़ाना पैदा करता है ।हम अज्ञानता वंश इस काल के जाल में फँस कर रह गये ,इस ने सभी जीवों को बहुत प्रलोभन  दिखाये हमे भ्रमत किया यह अपनी मन मर्ज़ी करता है ।बाद में नाना -प्रकार की योनियो में ,दण्ड भोगने के लिए छोड़ देता है। तब वे जीवात्माएँ कहने लगी कि हे दयालु परमेश्वर, हमें इस काल की जेल से छुड़वाओ। मैंने बताया कि ये 21 ब्रह्मणड काल ब्रह्म ने तीन बार तप करके मेरे से प्राप्त किये हुये है। जो आप यहाँ सब वस्तुओं का प्रयोग कर रहे हो ये सभी काल की है। 
और आप सब अपनी इच्छा से आये हो। इस लिये अब आप के ऊपर काल ब्रह्म का बहुत ज़्यादा ऋण हो चुका है। और वह ऋण मेरे सच्चे नाम के जाप के बिना नहीं उतर सकता। जी हाँ यही सत्य है। नाम की भक्ति के बिना हम कभी काल के लोक से निकल नही सकते,मालिक की रजा में रहकर उन की आज्ञानुसार चले। ज्ञान के बाद यदि अहंकार आ जाये तो वह ज़हर है। परन्तु ज्ञान के बाद अगर नम्रता का जन्म होता है तो  यहीं ज्ञान अमृत के समान है ।
शेष कल —



No comments