गुरुदेव जी का अंग - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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गुरुदेव जी का अंग

गरीब,साहिब से सतगुरु भये, सतगुरु से भये साध । ये तीनों अंग एक है, गति कछु अगम अगाध । गरीब, साहिब से सद्गुरू भये , सतगुरु से भये संत । धर -धर...



गरीब,साहिब से सतगुरु भये, सतगुरु से भये साध ।

ये तीनों अंग एक है, गति कछु अगम अगाध ।

गरीब, साहिब से सद्गुरू भये , सतगुरु से भये संत ।

धर -धर भेष विशाल अंग , खेले आदी और अन्त ।

गरीब , ऐसा सद्गुरू सेइये , बेग उतारे पार ।

चौरासी भ्रम मेटही , आवा गवन निवार ।

गरीब, अन्धे गूँगे गुरू घने , लंगड़े लोभी लाख ।

साहिब सै पर्चे नाही काव बनावे साख ।

गरीब, ऐसा सद्गुरू सेईये ,शब्द समाना होये।

भौ सागर में डूबते ,पार लंघावै सोय ।

गरीब, ऐसा सद्गुरू सेइये ,सोह सिंधु मिलाप ।

तुरियाँ मध्य आसन करै , मेटें तीनयों ताप ।

गरीब ,तुरियाँ पर पुरियाँ महल , पार ब्रह्म का देश ।

ऐसा सतगुरु सेइये , शब्द विगयाना नेस ।

गरीब ,तुरियाँ पर पुरियाँ महल ,पार ब्रह्म का धाम ।

ऐसा सद्गुरू सेईये ,हंस करे निहकाम ।

गरीब ,तुरियाँ पर पुरियाँ महल , पार ब्रह्म का लोक ।

ऐसा सतगुरु सेईये , हंस  पठावैं मोख ।

गरीब, तुरियाँ पर पुरियाँ महल ,पार ब्रह्म का द्वीप ।

ऐसा सद्गुरू सेईये , राखें सगं समीप ।

गरीब ,गगन मंडल गादी जहाँ ,पार ब्रह्म असथान ।

सुन्न शिखर के  महल में हंस करें विश्राम ।

गरीब सतगुरू पूर्ण ब्रह्म है सतगुरू आप अलेख ।

सतगुरु रमता राम है , यामें मीन न मेख

गरीब ,सद्गुरू आदि अनादि है , सतगुरु मध्य हैं मूल ।

सदगुरू कुं सिजदा करूँ ,एक पलक नहीं भूल ।

गरीब ,पटट्न घाट लखाइयाँ ,अगम भूमि का भेद ।

ऐसा सतगुरु हम मिलया ,अष्ट कमल दल छेद ।

गरीब पट्टन घाट लखाईयां अगम भूमि का भेव ।

ऐसा सतगुरु हम मिलया ,अष्ट कमल दल सेव ।

ज्ञान ,प्रपटटन की पीठ में ,सतगुरु ले गया मोही ।

सिर साटे सौदा हुआ , अगली पिछली खोही।

गरीब प्रपटटन की पीठ में ,सतगुरु ले गया साथ ।

जहां हीरे मानिक बिके , पारस लग्या हाथ ।

गरीब प्रपटटन की पीठ में ,हैं सतगुरु की हाट ।

जहां हीरे मानिक विकै , सौदागर स्यो साट ।

गरीब , प्रपटटन की पीठ में सौदा है निज सार ।

हम कुं सतगुरु ले गया , औघट घाट उतार ।

गरीब प्रपटटन की पीठ में प्रेम प्याले खूब ।

जहां हम सतगुरू ले गया ,मतवाला महबूब ।

गरीब ,प्रपटटन पीठ में , मतवाले मस्तान ।

हम कुं ,सतगुरू ले गया ,अमरापुर असथान ।

गरीब ,बंक नाल के अंतरे , त्रिवेणी के तीर ।

मान सरोवर हंस  है , बानी कोकिल कीर ।

गरीब बंकनाल के अंतरे , त्रिवेणी के तीर ।

जहां हम सतगुरु ले गया , चुवे अमीरस षीर।

गरीब , बंक नाल के अंतरे, तीर त्रिवेणी के तीर

जहां हम सतगुर ले गया,बन्दी छोड़ कबीर।

गरीब ,भँवर गुफा में बैठ कर ,अमी महारस जोख ।

ऐसा सतगुरु मिल गया , सौदा रोकम रोक ।

गरीब , भवंर गुफा में बैठ कर , अमी महारस तोल ।

ऐसा सतगुरु मिल गया बज्र पौल दई खोल ।

गरीब ,भवंर गुफा में बैठ कर अमी महारस जोख

ऐसा सतगुरु मिल गया ,ले गया हम प्रलोक ।

गरीब पिंड ब्रह्मांड सै अगम है न्यारी सिन्धु समाध ।

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