सुन ले जोग विजोग हंसा,शब्द महल कुं सिद्ध करो ।योग गुरूज्ञान विज्ञान बानी,जीवंत ही जंग में मरो । उजल हिरमबर सवेत भौंरा, अक्षै वृक्ष ...

सुन ले जोग विजोग हंसा,शब्द महल कुं सिद्ध करो ।योग गुरूज्ञान विज्ञान बानी,जीवंत ही जंग में मरो ।
उजल हिरमबर सवेत भौंरा, अक्षै वृक्ष सत बाग है । जीतों काल बीसाल सोहं ,तर तीव्र बैराग है ।
मनसा नारी कर पनीहारी ,ख़ाखी मन जहां मालिया । कुभंक काया बाग लगाया ,फूले है फूल बिसालिया ।
कचछ मच्छ कूरंभ धौलं, शेष सहंस फुन गावही । नारद मुनि से रटें निशदिन, ब्रह्मा पार न पावहीं ,
शम्भु जोग बिजोग साधया , अंचल अडिग समाध है ।अबिगत की गति नाहिं जानी ,लीला अगम अगाध है ।
सनकादिक और सिध्द चौरासी , ध्यान धरत हैं तास का ।चौबीसौं अवतार जपत है ,परम हंस प्रकाश का ।
सहंस अठासी और तैतीसौ,सूरज चन्द चिराग़ है । धर अम्बर धरनी धर रटते , अबिगत अंचल बिहाग है ।
सुर नर मुनिजन सिद्ध और साधिक ,पार ब्रह्म कूं रटंत है । घर घर मंगलाचार चौरी , ज्ञान जोग जहाँ बटत है ।
चित्र गुप्त धर्म राय गाबै, आदि माया ओंकार है । कोटी सरस्वती लाप करत है,ऐसा पारब्रह्म दरबार है ।
काम धेनु कल्पवृक्ष जाकै,इन्द्र अनन्त सुर भरत है । पार्वती कर ज़ोर लक्ष्मी, सावित्री शोभा करत है ।
गंधर्व ज्ञानी और मुनि ध्यानी, पाँचों तत्व खवास है । त्रिगुण तीन बहुरंग बाज़ी ,कोई जन बिरले दास है ।
ध्रुव प्रह्लाद अगाध अंग हैं, जनक बिदेही ज़ोर है । चले विमान निदान बीतया, धर्म राज की बन्ध तौर है ।
गोरख दत्त जुगादि जोगी ,नाम जलनधर लीजिये। भरथरी गोपी चन्दा सीझे ,ऐसी दीक्षा दीजिय ।
सुल्तानी बाजिद फ़रीदा,पीपा परचे पाइया। देवल फेरता गोप गोसांई, नामा की छान छिवाइया।
छान छिवाई गऊ जिवाई ,गनिका चढ़ी विमान में । सदना बकरे कुं मत मारो ,पहुँचे आन निदान में ।
अजामेल से अधम उधारे ,पतित पावन बिरद तास है । केशों आन भया बनजारा,षट् दल कीनी हास है ।
धना भगत का खेत निपाया , माधो दई सिकलात । पणडा पावं बुझाया सद्गुरू , जगन्नाथ की वात है ।
भक्ति हेतु केशों बनजारा , संग रैदास कमाल थे । हे हर हे हर होती आई,गुन छई और पाल थे ।
गैबी ख़्याल बिसाल सतगुरु,अंचल दिगम्बर थीर है । भक्ति हेत आन काया धर आये ,अबिगत सतकबीर है ।
नानक दादू अगम अगाधू , तेरी जहाज़ खेवट सही । सुख सागर के हंस आये , भक्ति हिरमबर उर धरी ।
कोटी भानु प्रकाश पूर्ण,रूम रूम की लार हैं । अंचल अभंगी है सत्संगी ,अबिगत का दीदार है ।
धन सतगुरु उपदेश देवा ,चौरासी भ्रम मेटही । तेज पुनजं आन देह धर कर ,इस विधि हम कुं भेंट ही ।
शब्द निबास आकाश वाणी,योह सतगुरु का रूप है । चन्द सूरज ना पवन ना पानी ,ना जहां छाया धूप है ।
रहता रमता ,राम साहिब,अवगत अलह अलेख है । भूले पंथ बिटमब वादी , कुल का ख़ाविद एक है ।
रूमं रूंम में जाप जंप ले ,अष्ट कमल दल मेल है । सुरति निरति कुं कमल पठवो,जहां दीपक बिन तेल है ।
हर दम खोज हनोज हाजर, त्रिवेणी के तीर हैं । दास गरीब तबीब सद्गुरू, बन्दी छोड़ कबीर है ।
परमात्मा की सृष्टि का क्या कहना ,बड़े प्यार से रचना की है। हमारी इतनी सोच कहाँ ,उस की महिमा का गुनगान कर सके ।एक एक ज़रा सहरानीय है। शुरुआत और अन्त कहाँ तक है ,कोई नहीं जानता ,सिवाय पिता परमेश्वर के उस की इच्छा के विरुद्ध अज्ञानता के कारण काल के जाल में फँस गये ।उस की मर्ज़ी के बग़ैर एक पता भी नहीं हिल सकता ।वह दीन ,दयालु ,करूणानिधि ,दया के सागर हैं ,पतितों का उधार करने वाले हैं ।इस गंदे काल लोक में हम सब को तारने के लिए आये हैं । अपनी अच्छी आत्मायें लेने के लिये ,नाम रूपी ज्ञान घन इकट्ठा कर ले ,ज़िन्दगी के सफ़र में काम आयेगा ।
सौ परसेंट यही सच्चाई है ।ज़िन्दगी के जीनें का सही मार्ग चुनें ।
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