द्रोपद सुता कुं दीन हें लीर ,जाके अनन्त बढ़ाये चीर । रूकमनी कर पकड़ा मुस्काई , अनन्त कहा मोकुं समझाई । दुशासन कुं ...

द्रोपद सुता कुं दीन हें लीर ,जाके अनन्त बढ़ाये चीर ।
रूकमनी कर पकड़ा मुस्काई , अनन्त कहा मोकुं समझाई ।
दुशासन कुं दो्पदी पकड़ी ,मेरी भक्ति सकल में सिखरी ।
जो मेरी भक्ति पछौडी होई ,हमरा नाम ने लेवे कोई ।
तन देही से पासा डारी ,पहुँचे सुक्षम रूप मुरारी ।
खैचत खैचत खैच कसीशा , सिर पर बैठे हैं जगदीशा ।
संखो चीर पिताम्बर झीनें , दो्पदी कारण साहिब किन्हें ।
संखो चीर पिताम्बर डारे ,दुशासन से योद्धा हारे ।
दु्पद सुता कैं चीर बढ़ाये , संख असंखो पार न पाये ।
नित बुन कपड़ा देते भाई ,जासै नौ लख बालद आईं ।
अवगत केशों नाम कबीर , ताँते टूटै जम ज़ंजीर ।
इसका भाव अर्थ- : किसी समय का किया हुआ कर्म यानि दान पुण कब और कहाँ मिलेगा इसका कुछ पता नहीं। जैसे एक समय की बात है द्रोपती और उनकी सहेलियाँ स्नान करके बाहर निकल रही थी। तो द्रोपती की नज़र बहुत दूर साधु पड़ी जो कि वो भी स्नान कर रहा था ओर द्रोपती ने देखा कि साधु किसी समस्या में हैं ,जो कि वो नदी से बाहर नहीं निकल रहा ,तो द्रोपती ने अपनी साड़ी के कुछ टुकड़े किए ओर पानी में फेंक दिए । जिससे उस साधु की लाज बच गई । वो ही साधु ने भगवान बन कर समय आने पर द्रोपती की लाज बचाई। तो आप सभी अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाये अच्छे विचारों से कर्म करते रहे। किसी भी बसतु का मान ,हकार,गर्व नहीं होना चाहिये ।सब कुछ नाशवान है सदैव कोई भी निर्णय लेना हो प्रभु का डर बना रहे ,ताकि लालच में कोई हम गलतीं न करे ।किया हुआ दान पुण्य व्यर्थ नहीं जाता मालिक स्वयं रक्षा करते हैं ,भक्त की रग रग को जानते हैं ।
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