मैं इस संसार के प्रत्येक कण कण में उपस्थित हूं। तुम संसार में रहकर जो कुछ भी करते हो वह मेरी दृष्टि से बचता नहीं है। चाहे तुम कहीं भी रहो या...

मैं इस संसार के प्रत्येक कण कण में उपस्थित हूं। तुम संसार में रहकर जो कुछ भी करते हो वह मेरी दृष्टि से बचता नहीं है। चाहे तुम कहीं भी रहो या कुछ भी करो। यह हमेशा स्मरण रखो ,कि तुम्हारे प्रत्येक क्रिया कलाप का ज्ञान मुझे रहता है। मासूमियत की चादर ओढ़कर कोई भी मेरे दरबार से कुछ नहीं ले जा सकता है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मो का फल अवश्य मिलता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा, इसलिए सदैव सत्कर्म करने का प्रयत्न करते रहो। यह प्रयास करो कि तुम्हारे हाथो किसी का अहित ना हो, किसी का मन ना दुखे। तब तो यह निश्चित है कि ईश्वर की कृपा तुम पर अवश्य होगी. और तुम सदा सदा के लिए उस परम पिता परमात्मा के निकट रहोगे।
परोपकार बहुत विश्वासनीय कार्य है। जिसका ईश्वर के अतिरिक्त कोई साक्षी नही। सुलझा हुआ मनुष्य वह हैं ,जो अपने निर्णय स्वयं करता है, और उन निर्णयों के परिणाम के लिए किसी दूसरे को दोष नहीं देता ,प्रेरणा के सब से बड़े स्तोत्र आप के अपने विचार है। इसलिए बड़ा सोचो और सफल होने के लिए स्वयं को प्रेरित करो। वो काग़ज़ की दौलत ही क्या जो पानी से गल जाये ,और आग से जल जाये ,दौलत तो ( दुआओं ) की होती हैं। न पानी से गलती है न आग से जलती। ख़ुशीयो के लिए क्यों किसी का इंतज़ार करे।
हम ही तो अपने जीवन के शिल्प कार बन कर चलो ,सद्गुरू की कृपा सदैव बनी रहती हैं। सभी मुश्किलों को दूर करते हैं ।और ज़िन्दगी को संवारते है ।किसी को परेशान देख कर हमें बहुत तकलीफ़ होती हैं । यक़ीन मानिए ऐसा लगता है यह दुख हमारा है उस की ( यानि ) परमात्मा की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हम कुछ नहीं कर सकते ।हाँ एक बात हंमेशा याद रखो ,मज़बूत होने का मज़ा ही तब है ,जब हम अपने गुरू जी की ( सतगुरु ) की आज्ञा अनुसार चले । वर्तमान में एक मात्र पूर्ण संत है ।कोई कितना भी बोले अपने आप में शांत रहें क्योंकि धूप कितनी भी तेज हो समुद्र को सुखा नहीं सकती। हर व्यक्ति से ,प्यार से मिले अच्छी बात चीत करे।
अच्छे से बोले ,ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत है ख़ुशी से जीय। लेकिन उसका जैसा प्रारब्ध और जैसे कर्म होते हैं। उस हिसाब से , निरन्तर अच्छे क्रमों के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। भजन ,सिमरण,सत्संग, ओर सेवा में लगे रहना चाहिए । वो भी हम ख़ुद नही कर सकते। यदि मालिक की मर्ज़ी ना हो ,हमारे हाथ मे कुछ नही है। वो अपनी मर्ज़ी का मालिक है ,उस की मौज वही जाने वह सारी दुनिया का मालिक है। वही सुलाता है वही जगाता हैं जो चाहे वह कर सकता है। सिर्फ़ अपने करमों पर ध्यान दे ।
हम ही तो अपने जीवन के शिल्प कार बन कर चलो ,सद्गुरू की कृपा सदैव बनी रहती हैं। सभी मुश्किलों को दूर करते हैं ।और ज़िन्दगी को संवारते है ।किसी को परेशान देख कर हमें बहुत तकलीफ़ होती हैं । यक़ीन मानिए ऐसा लगता है यह दुख हमारा है उस की ( यानि ) परमात्मा की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हम कुछ नहीं कर सकते ।हाँ एक बात हंमेशा याद रखो ,मज़बूत होने का मज़ा ही तब है ,जब हम अपने गुरू जी की ( सतगुरु ) की आज्ञा अनुसार चले । वर्तमान में एक मात्र पूर्ण संत है ।कोई कितना भी बोले अपने आप में शांत रहें क्योंकि धूप कितनी भी तेज हो समुद्र को सुखा नहीं सकती। हर व्यक्ति से ,प्यार से मिले अच्छी बात चीत करे।
अच्छे से बोले ,ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत है ख़ुशी से जीय। लेकिन उसका जैसा प्रारब्ध और जैसे कर्म होते हैं। उस हिसाब से , निरन्तर अच्छे क्रमों के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। भजन ,सिमरण,सत्संग, ओर सेवा में लगे रहना चाहिए । वो भी हम ख़ुद नही कर सकते। यदि मालिक की मर्ज़ी ना हो ,हमारे हाथ मे कुछ नही है। वो अपनी मर्ज़ी का मालिक है ,उस की मौज वही जाने वह सारी दुनिया का मालिक है। वही सुलाता है वही जगाता हैं जो चाहे वह कर सकता है। सिर्फ़ अपने करमों पर ध्यान दे ।
कौन कहता है ,कि ख़ाली हाँथ आये थे ,ख़ाली हाँथ जाएँगे , पूर्व जन्म के कर्म लेकर आये थे। इस जन्म के कर्म साथ लेकर जायेगे ।भाग्य का विधाता हमारे क्रमों का हिसाब रखता है ,हर पल मालिक का सदैव डर बना रहे ताकि हम सही मार्ग चुने सके।
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