कबीर मैं रोवत हूं सृष्टि को सृष्टि रोवै मोहे। कह कबीर इस वियोग को समझ नहीं सकता कोये। मोको रोये रामजना (भगत), जो शब्द स्नेही होय। परमेश्वर ज...

कबीर मैं रोवत हूं सृष्टि को सृष्टि रोवै मोहे।
कह कबीर इस वियोग को समझ नहीं सकता कोये।
मोको रोये रामजना (भगत), जो शब्द स्नेही होय।
परमेश्वर जी कहते है ,कि मै सारे संसार के जीवो के लिए रो रहा हूँ ।जो अपनी गलती के कारण इस काल लोक में दुःख उठा रहे है। मुझ वास्तविक परमात्मा को न पहचान कर अन्य देवी देवताओ की भगति पूजा करते है। और अज्ञानता वश संसार में अपने रिस्ते नाते कुल,धन दौलत, शान शौकत ,में ही उलझ कर उनके लिए ही रोते रहते है ।मुझ को तो केवल वही भगत जन मुझे पाने के लिए मुझ से बिछुड़ने के वियोग में रोते है जो शब्द स्नेही हैं ,यानि परमेश्वर शब्द स्वरूप है ।
परमेश्वर कहते है ,कि हम है शब्द ,शब्द हम माहि। हमसे भिन्न और कुछो नाही।
शब्द रूप मे ही हमें परमेश्वर की भक्ति मिली हुई है ,यानि नाम दीक्षा । जो भगत परमेश्वर कि भगति सच्चे ह्रदय से करते है और परमेश्वर भी अपनी उन प्यारी आत्माओ के लिये तड़फ रहे है रो रहे। एक हम ही हैं इस दुनिया की भूल भुलैया में फँसे हुए हैं। इनसे निकल कर चलते फिरते काम करते हुए उन के ध्यान में लीन रहे। सब काम करते हुए ।
हम भी खुश हमारा वास्तविक में हमारा मालिक (मुरशद ) भी खुश एक समय की बात है। (यानि लम्बे )अरसे की कबीर जी हरि भजन करते एक गली से निकल रहे थे। उनके आगे कुछ इस्तरियाँ जा रही थी। उन में से एक इस्तरी की शादी कहीं तय हुई होगी तो उस के ससुराल वालों ने शगुन में एक नथनी भेजी थी। वह लड़की अपनी सहेलियों को बार बार नथनी के बारे में बता रही थी कि नथनी ऐसी है वैसी है। ये ख़ास उन्होंने मेरे लिए भेजी है ।बार बार बस नथनी की ही बात । उन के पीछे चल रहे कबीर जी के कान में सारी बातें पड़ रही थी। तेज़ी के कदम बढ़ते कबीर उन के पास से निकले और कहा
नथनी देनी यार ने , तो चिंतन बारम्बार ,यानि ( मनन )
नाक दिनी करतार ने , उन को दिया बिसार ।
सोचो यदि नाक ही ना होती तो नथनी कहाँ पहनती ,यही जीवन में हम करते हैं। भौतिक वस्तुए का तो हमें ज्ञान रहता है परन्तु जिस परमात्मा ने यह, दुर्लभ मनुष्य देह दी ,और इस देह से संबंधित सारी वस्तुएँ, सभी रिश्ते-नाते दिय, उसी को याद करने के लिए हमारे पास समय नहीं होता। हे सद्गुरू हमें अच्छी सोच दे , प्रतिदिन एक एक साँस का ऋण हम उतार नहीं सकते आप के बिना ,तो हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है, हम जीवों पर पूर्ण विश्वास बना रहे।पल पल शब्द रूपी नाम,ज्ञान ,को अपने जीवन में उतारने के लिये समर्पित रहे ।यही मेरी विनय हैं ,मन की गहराइयों से धन्यवाद करती हूँ ।मालिक आप से कुछ भी छुपा नहीं सब के अनंतर मन को जानते हैं ।मेरी कोई इच्छा नहीं है सब कुछ तो दिया है ,नाम रूपी भक्ति में लीन रहूँ ,आपका साथ और विश्वास बना रहे ।
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