मन की आवाज़ - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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मन की आवाज़

दुर्बल को ना सताइए, जाकी मोटी हाये। बिना स्वास के जीव की, लोह भसम हो जाए। बिना ज्ञान के जब कोई किसी दुर्बल को सताता है ,तो उसकी आत्मा स...



दुर्बल को ना सताइए, जाकी मोटी हाये। बिना स्वास के जीव की, लोह भसम हो जाए।

बिना ज्ञान के जब कोई किसी दुर्बल को सताता है ,तो उसकी आत्मा से हाय निकलती है। क्योंकि वह कमजोर है , कुछ कर नहीं पाता ,लेकिन जब उसके हाय लगती है। तो अच्छे-अच्छे को भस्म करके रख देती है। इस काल लोक में इस दुष्टकाल ने हम सबको आपस में लड़ा कर हमारी बुद्धि भ्रष्ट कर दी है।और हम सब एक दूसरे के लेन देन में फंसे रह जाते हैं लेकिन परमात्मा को पता है। यह काल हमारी क्या दुर्गति कर रहा है ,जिस माता-पिता के बालक बिगड़ जाते हैं ।उनको सपने में भी चैन नहीं मिलता ऐसे ही परमात्मा भी हमारे लिए बेचैन हैं। कि मेरे बच्चों को समझा-बुझाकर मैं वापस ले आऊ।

इसलिए हमे समझाने को परमात्मा इस गंदे लोक में आए है। ताकि हम अपने भगवान को पहचान जाए ।और अपने निजधाम सतलोक चले जाएं। जहां सुख ही सुख हैं ।मन तू चलरे सुख के सागर जहां शब्द ,यहाँ प्यार की धारा बहे ।
जब भी कोई पूछे- आपके भगवान का नाम क्या है।? आप एक नाम तुरंत ले दो, तब तो आप धन्य हैं। यदि आप निर्णय न ले पाए ,तब आपको बहुत विचार करना चाहिए। कि पूरी दुनिया  में भगवान एक है।

ध्यान दें, सूर्य की कितनी ही प्रचंड किरणें क्यों न हों, सूखी घास तक को नहीं जला पातीं। जबकि कोई उत्तल लेंस, उन किरणों को समेट कर, घास पर केंद्रित कर दे, और घास गीली भी हो, तो भी आग पकड़ जाती है। यों ही आपकी श्रद्धा जब तक किसी एक में न टिके, तब तक आपकी कर्म रूपी घास जले कैसे? हे परमात्मा साधन तो प्रारंभ से ही बना हुआ है। जब आपको मालूम हो कि आप हो किसके ? देखो बुद्धि दो प्रकार की होती है, पतिव्रता और व्याभिचारिणी। जो एक की नहीं हुई, कभी किसी की, कभी किसी की हो जाती है, वह तो वेश्याबुद्धि है।
मीरा जी कहती हैं मेरो तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई इस दूसरो ना कोई को समझो। ( Understand )
मनुष्य की कौन कहे ? पशु भी दो प्रकार का है, जो किसी का है ,वही पालतू है, जो ( 36 )दरवाजे माथा पटकता है ,वह तो फालतू है।

परमात्मा एक है यह निर्विवाद ( सत्य ) है, वह कभी एक से सवा नहीं हुआ, दो की कौन कहे ? वही एक संपूर्ण सृष्टि के कण कण में व्याप्त है, दूसरे परमात्मा के होने के लिए दूसरी सृष्टि चाहिए, वर्ना वह रहेगा कहाँ ? उस एक अखंड अद्वै अनाम अरूप परमात्मा को, एक नाम रूप देकर अपना बना लेना, उसी का बार-बार चिंतन कर, यही तो सत्य साधना का एक मात्र उपाय है ।

अभी निर्णय लो कि मैं किस एक का नाम लू हम आज तक यही नहीं समझ पाये ,कि हमारा वास्तविक इष्ट देव  कौन है।हम  इस माया जाल में फँसे हुए हैं ।किसी की सुनी सुनाई बातों पर अमल न करें। अपने मन की अन्तर् आत्मा की आवाज़ पर ध्यान दे। मालिक बड़ा मेहर बान है पल पल समझा रहे है ।हम इस काल लोक में अपनी ग़लती कारण फँसे हुये है अब बहुत सुनेहरी
मौक़ा मिला है यू ही जाने दे ।

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