कबीर परमेश्वर की दया ( अर्थ मंगला चरण ) गरीब नमों नमों सत पुरूष कुं , नमस्कार गुरू किन्ही । सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस् दीन ह...
कबीर परमेश्वर की दया ( अर्थ मंगला चरण )
गरीब नमों नमों सत पुरूष कुं , नमस्कार गुरू किन्ही ।
सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस् दीन ही
सतगुरू साहेब संत सब ,डणडौतम प्रणाम ।
आगे पीछे मध्य हुये, तिन कुं जा कुरवान।
निराकार नीरिवष ,काल जाल भय भंजनं ।
नीरलेपं नीज नीरगुणं,अंकल अनूप बेसुनन धुनं ।
सोहम सुरती समापतं ,सकल समाना नीरती ले । उज़ल
हीरंबर हरदमं बे प्रवाह अथाह है, वार पार नहीं मधयंत।
गरीब जो सुमरत सिद्ध होई, गण नाइक गलताना ।
करो अनुग्रह सोई , पारस पद परवाना
आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवन देवा ।
चरण कवंल लयों लाऊँ आदि अंत करहूँ सेवा ।
परम शक्ती संगीतं, रिद्धि सिद्ध दाता सोई ।
अबीगत गुणह अतींत, सत पुरूष निर्मोही ।
जगदमबा जग- दीशं, मंगलरूप मुरारी ।
तन मन अरपु शीशं, भक्ति मुक्ति भंडारी ।
सुर नर मुनि जन धयावै, ब्रह्मा विषणु महेशा ।
शेष सहंस मुख गावै, पूजै आदी गणेशा ।
इन्द्र कुबेर सरीखा, वरूण धर्म राय धयावै ।
सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावै।
तैंतीस कोटी अधारा, धयावै संहस अठासी ।
उतरै भव भवजल पारा , कटी है यम की फाँसी ।
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