सुमरू आठों जाम - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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सुमरू आठों जाम

सुमरू आठो जाम गरीब,भेड़ पूँछ को पंडित पकड़े भादो नदि विहँगा। गरीबदास वो भवजल डूबे नहि "साध सतसँगा"। जे सतगुरु की संगत करते सकल कर...






सुमरू आठो जाम

गरीब,भेड़ पूँछ को पंडित पकड़े भादो नदि विहँगा। गरीबदास वो भवजल डूबे नहि "साध सतसँगा"।

जे सतगुरु की संगत करते सकल कर्म कट जाहि। अमरपुरी पर आसन होते जहाँ धूप ना जाहिँ।

कबीरा वन वन मै फिरा कारण अपने राम। राम सरीखे सँत मिले जिन साये सब काम।

कबीरा सोय दिन निर्मला जा दिन "सँत" मिलाय। अंक भर भर भेँटिये पाप देहि का जाये।

"साधू संगत" अंतर पड़े ये मत कबहू ना होय। कहैं कबीर तीहुँ लोक मेँ सुखी ना देखया कोय।

"सतगुरु" भवसागर के कोली "सतगुरु" पार निबाहें डोली "सतगुरु" माता पिता हमारे ,भवसागर के "तारणहारे

कबीर, सतगुरु (पूर्ण गुरु) के उपदेश का, लाया एक विचार। जै सतगुरु मिलता नहीं, तो जाते यम द्वार।

कबीर, यम द्वार में दूत सब, करते खैंचा तान। उनसे कबहु ना छूटता, फिरता चारों खान।

कबीर, चार खान में भ्रमता, कबहु न लगता पार। सो फेरा (चक्र) सब मिट गया, मेरे सतगुरु के उपकार।

कबीर, राम कृष्ण से कौन बड़ा, तिनहुं भी गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।

सतगुरु_वचन कबीर,सुमिरन स्यों मन लाईये, जैसे पानी मीन प्राण तजै पल बिछुड़ैं,। सार कबीर कह दीन्ह।

सरलार्थ :- स्मरण करने  मे मन को ऐसा लगा कर रखें। जैसे मछली पानी से नेह लगाती है। यदि मछली एक पल भी जल से बाहर निकाल दी जाए। तो तड़फ-तड़फ कर मर जाती है। परमेश्वर जी ने कहा है कि जैसे मछली जल के अभाव में प्राण त्याग देती है। उसके बिना मरना उचित समझती है। साधक को वह दिन तथा समय जिस दिन किसी कारण से स्मरण न कर सकू ,सा लगना चाहिए। जैसे सब कुछ लुट गया हो। तुंरत स्मरण में लगकर क्षति पूर्ति करनी चाहिए। यह सब सद्गुरू की कृपा के बग़ैर असंभव हैं। पूर्ण परमात्मा महाराज की दया से सब कुछ संभव है। अल्फ़ाज़ दिल से-  कृपा कटास (यानि) नज़रें भर कर देखना अबलोकिन दास का दुख  विदारियो तब ही दुख दूर होता है। आँसु  टपक रहे हो विरह के आँसु  निरंतर वह रहे हो। प्रभु को मिलने के लिये शरीर में आत्मा यू छटपटा रही हो परमात्मा को मिलने के लिये अभी निकल कर मिल लूँ। मालिक मैहर करीं सदियों से यह बिछड़ीं आत्मा आप को मिलने के लिये बेचैन हैं। अब और सहन करना मुश्किल हो रहा हैं। समय की इन्तज़ार में हूँ आप तो जानी जान है ,सब कुछ जानते हैं इतनी देरी क्यों,
                            सदियों से थे दिल पर पडदे आ पहुँचे अपनी ही मंज़िल पर आख़िर तेरे सहारे ।
                             सद्गुरू हम है दास तुम्हारे तू मारे या तारे ,मालिक ,दाता हम है बच्चे तुम्हारे ।
वक्त जल्दी जल्दी गुजर रहा है। जाते हुए साल 2020 के आखरी दिन में कुछ बोलना चाहती हूं। कि मुझसे कभी भी कोई भी  जाने अंजाने में भूल हुई हो, बुरा भला ,कहा है, या आपका दिल दुखाया हो या ठेस पहुचाई हो या hurt किया हैं। मैं दिल की गहराइयों से, दिल से अंत करण से, तहे दिल से माफी मांगती हूं। हमारा प्यार विश्वास सब से बना रहें। ज़्यादा से ज़्यादा हम आध्यात्मिक की ओर आगे बड़ती जाऊँ। मालिक की कृपा से सब कुछ सम्भव हो सकता हैं। उन की मर्ज़ी के बग़ैर पता भी नहीं हिल सकता। हम ना समझ तुच्छ जीव हैं सच्चे गुरूजी की शरण में आने से सब समस्य कोसो दूर भाग जाती हैं।
                          
मैं ये भी वादा करती हूं ,आने वाले सालों में सद्गुरू के आशीर्वाद से जब तक जिंदा हूँ कभी भी आप को hurt ना करूँ, मेरे कर्मो से, व्यवहार से, वाणी से, कोई ऐसा काम ना करूँ। जिस से आप दुखी हो या नाराज़ हो। आप सब का साथ बना रहे ,इस से भी मुझे अच्छी प्रेरणा गुरुजी से मिलती रहे बहुत बहुत शुक्र गुज़ार हूँ ( मालिक ) की दया से अपनी जीवन यात्रा को सफल बना पाऊँ उन पर पूर्ण विश्वास है ।





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