उलटे भजन का सीधा भाव - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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उलटे भजन का सीधा भाव

एक बार एक व्यक्ति श्री धाम वृंदावन में दर्शन करने गया। दर्शन करके लौट रहा था। तभी एक संत अपनी कुटिया के बाहर बैठे बड़ा अच्छा धुन गा रहे थे ,...




एक बार एक व्यक्ति श्री धाम वृंदावन में दर्शन करने गया। दर्शन करके लौट रहा था। तभी एक संत अपनी कुटिया के बाहर बैठे बड़ा अच्छा धुन गा रहे थे ,कि "हो नयन हमारे अटके श्री बिहारी जी के चरण कमल में" बार-बार यही गाये जा रहे थे। तभी उस व्यक्ति ने जब इतना मीठा धुन सुना तो वह आगे न बढ़ सका, और संत के पास बैठ कर ही धुन सुनने लगा ,और संत के साथ-साथ गाने लगा।

कुछ देर बाद वह इस धुन को गाता-गाता अपने घर गया, और सोचता जा रहा था कि वाह  ,संत ने बड़ा प्यारा धुन गाया। जब घर पहुँचा तो धुन भूल गया अब याद करने लगा कि संत क्या गा रहे थे, बहुत देर याद करने पर भी उसे याद नहीं आ रहा था। फिर कुछ देर बाद उसने गाया "हो नयन बिहारी जी के अटके, हमारे चरण कमल में" उलटा गाने लगा। उसे गाना था नयन हमारे अटके बिहारी जी के चरण कमल में अर्थात बिहारी जी के चरण कमल इतने प्यारे हैं । कि नजर उनके चरणों से हटती ही नहीं हैं। । नयन मानो वही अटक के रह गए हैं। पर वो गा रहा था कि बिहारी जी के नयन हमारे चरणों में अटक गए, अब ये पंक्ति उसे इतनी अच्छी लगीं कि वह बार-बार बस यही गाये जाता, आँखे बंद है। बिहारी के चरण हृदय में है और बड़े भाव से गाये जा रहा है। जब बहुत समय तक गाता रहा, तो अचानक क्या देखता है । सामने साक्षात् बिहारी जी खड़े है। झट चरणों में गिर पड़ा। बिहारी जी बोले,"भईया ,एक से बढ़कर एक भक्त हुए। 

पर तुम जैसा भक्त मिलना बड़ा मुश्किल है। लोगो के नयन तो हमारे चरणों के अटक जाते हैं। पर तुमने तो हमारे ही नयन अपने चरणों में अटका दिए। और जब नयन अटक गए तो फिर दर्शन देने ,कैसे नहीं आता" भगवान बड़े प्रसन्न हो गए। वास्तव में बिहारी जी ने उसके शब्दों की भाषा सुनी ही नहीं क्योकि बिहारी जी शब्दों की भाषा जानते ही नहीं  है। वे तो एक ही भाषा जानते है ( वह है भाव की भाषा,) भले ही उस भक्त ने उलटा गाया पर बिहारी जी ने उसके ( भाव ) देखे कि वास्तव में ये गाना तो सही चाहता है। शब्द उलटे हो गए तो क्या ( भाव तो कितना उच्च है ) सही अर्थो में भगवान तो भक्त के हृदय का भाव ही देखते  हैं। ग़रीबी अमीरी नहीं। गरीब के मन में बड़ी सहन शीलता होती हैं। सांसारिक लोगों के अपने 2 बिचार होते हैं।

ठीक ही कहा है ,साहिब  सुनता सब की ,लहर जगत और भगत  ज्ञान के आधार पर  इतना  विश्वास होगा तब कहीं हम सत लोक जाने की तैयारी कर सकते हैं। वक़्त का विषय है,जब तक तर्क वितर्क नही होगा , न ही तो ज्ञान  निखर सकता है। सात जन्मों तक कभी हम  भक्त  नही  बन सकते।  जैसे फसल को वीजने से पहले ज़मीन पर कीट नाशक  का प्रयोग करना पड़ता हैं। परमात्मा की शरण आने  से बहुत बड़ी राहत मिल जाती हैं। जैसे हमारे कपड़े मैले होते हैं धोने के लिए साबुन सै मैल उतारते हैं  साफ़ सुथरा करने के लिये यदि बहुत मैला हो तो डराईकलीन ( Dryclean ) करवाते हैं।

 ताकि कोई दाग  ना रह जाए। हाँ गलती चाहे जगत करे या भगत करे  दोनों के लिए दंड का विधान वराबर हैं। ऐसे ही स्थिति जगत और भगत की है। हल से जितने भी जीब मरते हैं। पाप दोनों को लगता है। कैसी भी परिस्थितियों हो गलती इन्सान ही करता है। इन सब से मुक्त होने के लिये नाम रूपी मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। हम कल्पना नहीं  कर सकते प्रति दिन हम से कितने पाप जाने अनजाने में हो जाते हैं। इसलिए हमें  परम पिता परमेश्वर जी को याद करते रहना चाहिए ।अपने गुनाहों को माफ़ कर सके यानि कम करले  इतना भी  निर्देय मत करना कि प्रकृति हमें क्षमा करना भूल जाये। हे मालिक बस इतना पवित्र रहे आईना ज़िन्दगी जब खुद से नज़र मिले तो हम शर्मिंदा न हो मानसिक स्थिति का अच्छा होना बहुत ज़रूरी हैं। शुद्ध विचार ही सब के मन को जीत सकते हैं।
शेष कल—:

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