I अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर सीता माँ को मारनेके लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा,कि इसकी तलवार छीन कर, इसका...
अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर सीता माँ को मारनेके लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा,कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सिर काट लेना चाहिए। किन्तु अगले ही क्षण, उन्होंने देखा मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देख कर वो गदगद हो गये, वे सोचने ,लगे यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?
बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है,मैं न होता तो क्या होता? परन्तु ये क्या हुआ ? सीता जी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सोंप दिया। तब हनुमान जी समझ गये,कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं। आगे चलकर जब त्रिज्टा ने कहा कि , लंका में बंदर आया हुआ है ।और वह लंका जलायेगा, तो हनुमान जी बड़ी चिंता में पड़ गये कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं , और त्रिजटा कह रही हैं। कि उन्होंने स्वप्न में देखा हैं , एक बानर ने लंका जलाई हैं। अब उन्हें क्या करना चाहिए ? जो प्रभु इच्छा।
जब रावण के सेनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिए दोडे, तो हनुमान ने अपने आप को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति हैं, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिए प्रभु ने यह उपाए कर दिया।
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जाएगा, पर पूँछ में कपड़ा लपेट कर, घी डालकर , आग लगाई जाये, तो हनुमान जी सोचने लगे ,कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी , वरना लंका को जलाने के लिए मैं कहाँ से घी , तेल , कपड़ा लाता , और कहाँ आग ढूँढता ? पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया। जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात हैं।
इसलिए सदैव याद रखे कि संसार। में जो हो रहा हैं , वह सब ईश्वरीय विधान हैं। हम और आप तो केवल निमित मात्र हैं । इसलिए कभी भी ये भ्रम न पाले कि मैं न होता, तो क्या होता ?
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