गुरुदेव जी का अंग - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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गुरुदेव जी का अंग

गुरुदेव जी का अंग गरीब परपटन वह प्रलोक है ,जहां अदली सत गुरू सार । भक्ति हेत सै उतरे ,पाया हम दीदार । गरीब , ऐसा सतगुरू हम मिल्या अ...





गुरुदेव जी का अंग

गरीब परपटन वह प्रलोक है ,जहां अदली सत गुरू सार ।
भक्ति हेत सै उतरे ,पाया हम दीदार ।
गरीब , ऐसा सतगुरू हम मिल्या अल्ल पंख की जात ।
काया माया ना वहाँ, नहीं पाँच तत् का गात ।
गरीब, ऐसा सतगुरू हम मिल्या, उजल हिरमबर आदि ।
भलका ज्ञान कमान का ,घालत है सर सांघी ।
गरीब ,ऐसा सतगुरू हम मिल्या, सुन विदेशी आप
रोम रोम प्रकाश है ,दीनहा अजपा जाप
गरीब ,ऐसा सतगुरू हम मिल्या,मगन किये मुसताक ।
प्याला प्याया प्रेम का ,गगन मण्डल ग़र गाप
गरीब ऐसा सतगुर हम मिल्या, सिंध सुरती की सैन ।
उर अंतर प्रकासीया, अजब सुनाये बैन ।
गरीब ,ऐसा सद्गुरू हम मिल्या,सुरती सिंधु की सैल
वज्र पोल पट खोल कर , ले गया झिनी गैल ।
गरीब , ऐसा सतगुरू हम मिल्या, सुरती सिंधु के तीर
सब संतन सिर ताज है , सतगुरू अदली कबीर ।
गरीब , ऐसा सतगुरू हम मिल्या, सुरती सिंधु के माही ।
शब्द स्वरूपी अंग हैं, पिंड प्रान् बिन छाहि ।
गरीब,ऐसा सतगुरू हम मिल्या ,गलताना गुलज़ार ।
वार पार क़ीमत नहीं ,नहीं हल्का नहीं भार।
गरीब , ऐसा सतगुरू हम मिल्या, सुरती सिंधु के मझं ।
अंडयो आनन्द पोख है ,बैन सुनाये कुंज ।
गरीब ऐसा सतगुरू हम मिल्या ,सुरती सिंधु के नाल ।
पीताम्बर तीखी धरयो , बानी शब्द रिसाल ।
गरीब , ऐसा सद्गुरू हम मिल्या, सुरती सिंधु के नाल ।
गवन किया परलोक से ,अल्ल पंख की चाल ।
गरीब , ऐसा सद्गुरू हम मिल्या , सुरती सिंधु के नाल ।
ज्ञान जोग और भक्ति सब , दिन्ही नज़र निहाल ।
गरीब, ऐसा सद्गुरू हम मिल्या, बे प्रवाह अबंध ।
परम हंस पूर्ण पुरुष रोम रोम रवी चंद ।
गरीब ऐसा सद्गुरू हम मिल्या ,है ज़िंदा जगदीश ।
सुन्न विदेशी मिल गया , छत्र मुकुट है शीश ।
गरीब , सत गुरू के लक्षण कहूं ,। मधुरे बैन विनोद ।
चार बेद षट् शास्त्र , कह अठारा बोध।
गरीब सतगुरू के लक्षण कहूँ , अंचल विहंगम चाल ।
हम अमरापुर ले गया , ज्ञान शब्द सर घाल ।
गरीब , ऐसा सद्गुरू हम मिल्या ,तुरियाँ केरे तीर ।
भंगल विध्या बानी कहै ,छाने नीर अरु खीर ।
गरीब ,ज़िंदा जोगी जगत गुरू , मालिक मुरशद पीव।
काल कर्म लागै नहीं, शंका नहीं सीव।
गरीब ज़िन्दा जोगी जगत गुरु , मालिक मुराद पीर ।
दहु दीन झगड़ा मँडया, पाया नहीं शरीर ।
गरीब, ज़िंदा जोगी जगत गुरू मालिक मुरशद पीर ।
मारया भलका भेद से ,लगे ज्ञान के तीर ।
गरीब, ऐसा सद्गुरू हम मिल्या,तेज पुंज के अंग ।
झिल मिल नूर जहूर है ,नर रुप सेंत रंग ।
गरीब ऐसा सद्गुरू हम मिल्या तेज पुंज की लोय ।
तन मन अरपू सीस कुं , होनी होय सु होय ।
गरीब, ऐसा सद्गुरू हम मिल्या, खोले वज्र किवार ।
अगम दीप कूं ले गया, जहाँ ब्रह्म दरवार।
गरीब, ऐसा सतगुर हम मिल्या, खोले वज्र कपाट
अगम भूमि कूँ ग़म करी, उतरे औघट घाट
गरीब ऐसा सद्गुरू हम मिल्या,मारी गयासी गैन।
रोम रोम में सालती , पलक नहीं है चैन ।
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