मेरे सद्गुरू जी ने बताया मालिक जी का प्रकट तालाब में कमल के फूल पर हुआ। कुँआरी गाय के दूध से उन का लालन पाल...

मेरे सद्गुरू जी ने बताया मालिक जी का प्रकट तालाब में कमल के फूल पर हुआ। कुँआरी गाय के दूध से उन का लालन पालन हुआ। साक्षात् भगवान के रूप बन कर इस धरा पर आये हैं। हर युग में हम पापी लोगों को ज्ञान बताकर सही मार्ग बता कर सत लोक ले जाने के लिए। शब्द रूपी नाम देकर हमें उन की रजा में रहकर आज्ञा का पालन करते रहना चाहिये। दुनिया के पालन हार परमात्मा को पहचान नहीं पाये . धानक जुलाहे के रूप काम किया करते थे। हर युग में भगवान अपनी पवित्र आत्माओं को मार्ग दर्शन करवाने के लिए आते है। उन की आत्मायें युगों युगों से बिछड़ी हुई। उन को मिलने के लिये तड़पती है ,कब आपने पूर्ण परमात्मा जी को मिल सके। वो ( गोल्डन समय ) आ चुका है। उन्होंने अब हमारी आँखों की परतों को हटा दिया है। सब कुछ ठीक दिखने लगा हैं।आत्मज्ञान दे कर जीने की नई राह दिखलाई ।
जैसे सरिता (नदी ) उबड-खाबड़, पथरीले स्थानों को पार करते हुए ,पूर्ण रूपेण निष्काम भाव से समुद्र में जा मिलती हैं। उसी प्रकार धर्म-रथ पर आसीन मनुष्य के पास उसके न चाहते हुए भी समस्त सुख-सम्पत्ति, रिद्धियाँ-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं।सत्य तो यह है ,कि वे उसकी दासिता ग्रहण करने के लिए लालायित रहती हैं। इतना सकून नई ऊर्जा का मिलने का एहसास महसूस होने लगता हैं। भगवान हंस कहते हे ,ब्राह्मणों ,गौओं ,के शरीर को खुजलाने से उनके शरीर के कीटाणुओं को दूर करने से मनुष्य अपने समस्त पापों को धो डालता हैं। यह सब एक दूसरे के समझने की बात हैं।
हरे हरे तिनकों पर अमृत-घट छलकाती गौ माता,
जब-जब कृष्ण बजाते मुरली लाड़ लड़ाती गौ माता।
तुम्हे धर्म हो, तुम्ही सत्य हो, पृथ्वी-सा सब सहती हो,
मोक्ष न चाहे ऐसे बंधन में बँधकर तुम रहती हो।
प्यासे जग में सदा दूध की नदी बहाती गौ माता,
जब-जब कृष्ण बजाते मुरली लाड़ लड़ाती गौ माता।
गाय गो लोक की एक अमूल्य निधि हैं। जिसकी रचना भगवान ने मनुष्यों के कल्याणार्थ आशीर्वाद रूप से की है। अत: इस पृथ्वी पर गोमाता मनुष्यों के लिए भगवान का प्रसाद है। भगवान के प्रसाद स्वरूप अमृत रूपी गो दुग्ध का पान कर मानव ही नहीं अपितु देवगण भी तृप्त होते हैं। इसीलिए गो दुग्ध को ‘अमृत’ कहा जाता है। गौएं विकार रहित दिव्य अमृत धारण करती हैं और दुहने पर अमृत ही देती हैं। वे अमृत का खजाना हैं। सभी देवता गोमाता के अमृत रूपी गो दुग्ध का पान करने के लिए गोमाता के शरीर में सदैव निवास करते हैं। ऋग्वेद में गौ को ( अदिति ) कहा गया है। दिति’ नाम नाश का है और‘अदिति’ अविनाशी अमृतत्व का नाम हैं। अत: गौ को‘अदिति’ कहकर वेद ने अमृतत्व का प्रतीक बतलाया है। अपने आप को गौरवांवित महसूस करें।
आप भाग्यशाली है। कि परलोक से संबंधित ज्ञान ,पवित्र , रज, ताम, केवल सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथो में लिपिबद्ध है। दुनिया के और किसी धर्म के पास नहीं है। जो ज्ञान को पाकर आप नरक जाने से बच सकते हैं l आवश्यकता है सात्विक आहार खाने की आदत होनी चाहिए। जिसे खा कर अपनी सेहत को अच्छी बना सकते हैं जोकि बहुत ही ज़रूरी हैं।
देवलोक गौशाला एवं २. देवलोक ,अग्निहोत्र , जिस पर आपको शास्त्रों का ज्ञान प्रमाण सहित एवं भावार्थ के साथ गूढ़ार्थ सरल ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता हैं। इसलिए कृपया नेक कर्म को करके पुण्य के भागी बनें ,
देवलोक गौशाला एवं देवलोक अग्निहोत्र,
जीवन का सत्य आत्मिक कल्याण ,है ना की भौतिक सुख ।
एक माटी का दिया सारी रात अंधियारे से लड़ता है,
तू तो प्रभु का दिया है ,फिर किस बात से डरता है ।
हे मानव तू उठ और सागर (प्रभु ) में विलीन होने के लिए पुरुषार्थ कर
सच्चे संतो की वाणी से अमृत बरसता है, आचरण में उतारने की आवश्यकता हैं। सर्वदेवमयी ,यज्ञेश्वरी ,गौमाता को नमन, जय गौमाता की शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार हैं। चाहो तो इससे (पाप ) ( पुण्य ) के परोपकारी बनो प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है। अतः प्राणियों से प्रेम करो ,शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो यही मेरे मालिक की कृपा से लिख पा रही हूँ। उन का साथ मुझ पर सदैव बना रहे।जितनी सेवा निःस्वार्थ हो कर करे ।अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाये ।
शेष कल —:
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