इच्छाएँ दुख का मूल कारण हैं । - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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इच्छाएँ दुख का मूल कारण हैं ।

इच्छाओं का अन्त यानी मोक्ष को हासिल करना है। यह इतना आसान नही है ,विषेश कर सद्गुरू जी के आशीर्वाद के बिना कुछ भी हासिल नही कर सकते। ...




इच्छाओं का अन्त यानी मोक्ष को हासिल करना है। यह इतना आसान नही है ,विषेश कर सद्गुरू जी के आशीर्वाद के बिना कुछ भी हासिल नही कर सकते। सद्गुरू की शरण मे आने से पहले अपनी कोई इच्छा नही होनी चाहिए।

काश कि ऐसा हो पाता।सोने की चार दीवारी से घिरी सोने की सम्पूर्ण लंका थी। रावण के पास सारा वैभव सारी भोग्य वस्तुओं के साथ साथ शक्ति भी ,किन्तु अन्त मे हुआ क्या। ये सारी दुनिया जानती है।नश्वर चीजों का कुछ भरोसा नहीं है ,अभी है और अभी साथ छोड़ देंगी। सबसे बहुमूल्य धन है ,आध्यात्मिक सम्पत्ति। ये जिसके पास है। असल में वही शहंशाह है। किन्तु यदि अपने ध्यान को परमात्मा के प्रति विचारों में लगा देंगे। तो ऐसा कुछ भी ग़लत नही होगा। जिससे कि आपको किसी तरह का कोई दुख या कष्ट हो ।यह सब क्रमों का खेल है जैसे हम कर्म करेंगे वैसा फल मिलेगा , बड़े कहा करते हम निदान है  ,बेसमझ है। हे मालिक आप  राह दिखाये कभी भूल चुक हो जावे  सद्गुरू आपे पर्दा पाई। दुनिया विच ना  ज़्यादा उलझा  भजन सिमरण च लाई ,तू ही मेरा पालन हारा मेरे मन विच बसने वाला है।
                                    मल मल धोये शरीर को,मन का धोये न मैल ।
                                     नहाये  गंगा  गोमती  रहे  बैल का  बैल ।
मन के विचारों को बदलना है। ताकि अपनी जीवन यात्रा को सफल बना सकें, परम पिता परमेश्वर जी के  हम  साक्षी बनना चाहतीं हूँ । विश्व शांति  होगी ,भारत विश्व गुरू वनेगा  एक भाषा होगी,  एक झंडा होगा ,मन के भावों से लिख रही हूँ ।वह पल जल्दी से जल्दी आये  समय की इन्तज़ार में हूँ।
अभी तक तो ऐसा देखने और सुनने मे नही आया ,कि भगवान के विषय मे सोचने वाला शारीरिक और मानसिक रूप से कभी बीमार नही हो सकता। उस की शरण आने से सभी बलाये दूर हो जाती है मन शांत प्रफुल्लित रहता है ।बुद्धि तो सारे जगत  के पास है । सद्गबुद्धि  किसी किसी के पास है। ईश्वर कृपा  हवा की तरह गति करती हैं । जो दिखाई  तो  नहीं देती ,पर सदा हमारे साथ साथ रहती हैं । इन्सान ग़लतियों का पुतला हैं ,पग पग पर निदानियाँ हो ही जाती हैं ,इन्सान की फिदरत ऐसी है देखा देखी भूल हो ही जाती  है । जैसे हम रोज़ाना कपड़े बदलते हैं , नहाते हैं  अपनी सफ़ाई का ध्यान रखते मन को ख़ुशी मिलती हैं । वैसे ही जन्मों जमानतरो की बुराइयों को साफ़ करने  के लिये भक्ति करना  अति आवश्यक है। 84 लाख योगियों के बाद मनुष्य का अनमोल हीरा जन्म मिला है। विरासत से तो अच्छे बिचार ,सभ्यता , बहुत कुछ सीखने को मिलता है । यदि सही सद्गुरू मिल जाये  तो ,ज़िन्दगी में तो चार चाँद लग जाते हैं। आत्मा अलग अलग योगियों से निकल के आई है ।किसी के बहुत ही अच्छे कर्म होते उसे कुछ करना नहीं पड़ता। कितनों के इतने बुरे कर्म होते है। इन्सान समझ नहीं सकता ,नाम मन्त्र से सभी पाप धुल जाते है। प्रत्येक व्यक्ति के अलग अलग कर्म होते हैं। सभी ने अपने आपने  क्रमों का फल  स्वयं भुगतना पड़ता हैं ऐसे ही स्थिति जगत और भगत  की है ।
                           गुरू मूर्ति गति चन्द्रमा,
                            सेवक नैन चकोर आठ पहर निरखता रहूँ, गुरू मूर्ति की ओर ।
                             अन्त समय जब चले अकेला ,आँसू नैन  ढलकी ।
                               कह कबीर गह  शरण मेरी हो ,रक्षा करे जल थल की ।

नौ मन सूत  उलझयाँ ऋषि रहे झख मार ,सतगुरु ऐसा सुलझा दे ,ऊलजे न दूजी बार ।
यहाँ दुनियाँ भर के रिश्ते भी काम नहीं आते ,वहीं एक मालिक प्यारा ज़िन्दगी बना देता हैं ।

मैं शुक्र गुज़ार हूँ ।अपने परम पिता परमेश्वर जी  की जिन्होंने हर पल मेरा साथ दिया ,कभी नराश होने नहीं दिया ,मेरे मालिक 
का साया मेरे साथ है ।कभी फूलों की ख़ुशबू बनकर,तो कभी ठंडी हवा बनकर ,तो कभी सूर्य की किरणें बनकर ,मेरे महबूब   की अपनी  मौज है ।जो चाहें सो कर्सी  हरपल मौजूदगी का साहस करवाया ।मैं सदैव उन की ऋणी हूँ  उन के बचनो मे वाणी में बहुत ताक़त हैं।

मिलने की बड़ी अभिलाषा है ,वो भी अवश्य पूर्ण होगी विश्वास के साथ मेरी ज़िन्दगी का यहीं मक़सद है नाम रूपी 
ज्ञान से सफलता प्राप्त करूँ ,मालिक जी की अपार कृपा ,हर पल  सभी ब्रह्मांडों में बरसतीं हैं ।परिवर्तन का युग शुरू हो चुका हैं ।
                            
शेष कल  —: 

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