बफादार रहीय - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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बफादार रहीय

जिस परमात्मा ने सभी जीवों को बनाया मनुष्यों को बनाया है। उनके कर्जदार और वफादार रहिये जो,आपके लिए अपना वक्त देते हैं ।प्रत्येक प्राणी को अपन...




जिस परमात्मा ने सभी जीवों को बनाया मनुष्यों को बनाया है। उनके कर्जदार और वफादार रहिये जो,आपके लिए अपना वक्त देते हैं ।प्रत्येक प्राणी को अपना कर्म करना चाहिये अंजाम मालिक पर छोड़ दे, दुनिया मे सब को कर्मो का फल भोगना पड़ता है जैसे -ख़बर तो कर्ण को भी थी ,पर बात दोस्ती निभाने की थी ।राख की कई परतों के नीचे तक देखा पर अफ़सोस ,वो गुरुर, वो रूबाब, वो पद और रुतबा ,कहीं नज़र नहीं आया जो सारी उम्र हम ओढ़े बैठे थे।
हमारी ये जिदंगी तमन्नाओं का गुलदस्ता ही तो हैं‌। कभी महकती हैं, कभी मुरझाती हैं ,कभी हंसाती है ,तो कभी रूलाती है ,और कभी“चुप हो जाती है।एक बात हमेशा याद रखना संघर्ष के समय कोई नजदीक नहीं आता।और सफलता के बाद किसी को आमंत्रित नहीं करना पड़ता। सोच की कितनी बिडमबना हैं। अपनी सोच को विशालता की ओर बढ़ाये ।
झूठे इन्सान कि ऊँची आवाज ,सच्चे इन्सान को खामोश करा देती हैं l लेकिन सच्चे इन्सान की ख़ामोशी ,झूठे इन्सान की बुनियाद हिला देती हैं ।हर व्यक्ति अच्छे इंसान को खोजता है। लेकिन स्वयं अच्छा इंसान बनने की कोशिश नहीं करता ,अगर स्वयं अच्छा बन जाए ,तो अच्छे इंसान को खोजनें की आवश्यकता ही ना पड़े। उम्र थका नहीं सकती ,ठोकरें गिरा नहीं सकती ,अगर जिद हो इंसान में जीतनें की तो परिस्थितियां भी हरा नहीं सकतीं। चार दिन बाज के ना उड़ानें से आसमान कबुतरों का नहीं हो जाता। 
                    नशा  तेरी  इवादत का कभी न उतरे सतगुरु, मेरे लिये इस से बड़ी कोई बात नहीं 
                     तेरी मेहर का कोई जवाब नहीं ,तेरे जैसा कहीं कोई दीदार नहीं।

                     वाणी से ही विष झरे ,वाणी से ही रस धार ।मीठी वाणी बोलिए यह ही  जीवन का सार।
                     वंदन है ,मिट्टी का ,साँसें सारी उधार है। घमंड भी तो है ,किस बात का यहाँ हम सब किराये दार।
इस त्रिगुण माया  का नशा हमारे  ऊपर इतना प्रभाव शाली है। कि हमें अपनी  मौत दिखाई नहीं देती। हमारा प्रतिदिन कम होता जा रहा है । हमें परमात्मा को नहीं भूलना चाहिये। तुम्हें पिता कहूँ ,आराध्य कहूँ  ,गुरू कहूँ ,या मालिक ,पालने वाला भी आप ,सँभालने वाला भी आप  ,और सुलाने वाला भी आप  ,जगाने वाला भी आप  ,कितनी तेरी तारीफ़ करु ,हर दिल की दडकन की आवाज़ भी आप , और गुरू बन कर सिखाने वाला भी आप ,इन्सान की संपत्ति ,धन ,दौलत ,कुछ भी नही है ।उस का असली धन तो नाम रूपी शब्द है ।संपत्ति  सिर्फ़ तो सिर्फ़ अच्छे कर्म व नाम रूपी भक्ति रूपी धन हमारे साथ जायेगा। मालिक मेरे अवगुणों को दूर कर मेरे पापों अपराधों को क्षमा कर ,मै अज्ञानी हूँ ,नदान हूँ ,न समझ हूँ, मुझे कुछ नही चाहिए बस तेरा साथ ही काफी है।
                               कबीर, काया तेरी है नही ,माया कहा से होय ।
                                भक्ति कर दिल पाक से ,जीवन हैं दिन दोये ।
  भावार्थ —: जिनको यह विवेक नही कि भक्ति बिना जीव का कही ठिकाना नही हैं। तो वे नर यानि मानव नही है ,वह तो पत्थर है। उन की बुद्धि पर पत्थर गिरे है। कबीर जी कहते है।
                                    कबीर गुरु सब को चहै, गुरू  को चहै न कोये ।
                                    जब लग अंश शरीर की ,तब लग दास ना कोये ।
परमेश्वर कहते हैं कि सब का कल्याण करने के लिये गुरु सब को चाहते है। किन्तु गुरू को अज्ञानी लोग नही चाहते
 क्योंकि जब तक  माया रूपी  शरीर से मोह हैं। तब तक प्राणी दास नही हो सकता। गुरू जी  का ज्ञान मक्खन की तरह है। ज्ञान एक ऐसा पवित्र ज्ञान है, जोकि मन की गहराइयों को छुता है। शुक्रिया है मालिक। 

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