एक संत ने एक द्वार पर दस्तक दी, और आवाज़ लगाई भिक्षां देहि। एक छोटी-सी बच्ची बाहर आई बोली बाबा हम गरीब हैं, हमारे पास देने को कुछ नहीं है.संत...
एक संत ने एक द्वार पर दस्तक दी, और आवाज़ लगाई भिक्षां देहि। एक छोटी-सी बच्ची बाहर आई बोली बाबा हम गरीब हैं, हमारे पास देने को कुछ नहीं है.संत बोले बेटी मना मत कर अपने आँगन की धूल ही दे दे। लड़की ने एक मुट्ठी धूल उठाई और भिक्षा-पात्र में डाल दी। शिष्य ने पूछा गुरु जी, धूल भी कोई भिक्षा है। आपने धूल देने को क्यों कहा ? संत बोले बेटा अगर वह आज न कह देती तो फिर कभी नहीं दे पाती। धूल दी तो क्या हुआ, देने का संस्कार तो पड़ गया।
आज धूल दी है ,तो उसमें देने की भावना तो जागी ,कल समर्थ होगी तो फल-फूल भी देगी। जितनी छोटी कथा है, निहितार्थ उतना ही विशाल है... .....साथ में आग्रह भी किया दान करते समय दान हमेशा अपने परिवार के छोटे बच्चों के हाथों से ही दिलवाइए ताकि उनमें देने की भावना बचपन से जगे। साथ साथ अच्छे कर्म करते रहिये, न जाने बताये हुये मार्ग पर चलने से सुखों की प्राप्ति होती है। यह सब कुछ मालिक के हाथ मै है। बही देता बही दलबाता है ,बही सुलाता है बही जगाता हैं। बह अपनी मर्ज़ी का मालिक है।उस की मौज बही जाने । हे दाता ,तेरी मौज तू ही जाने हम तेरे निदान बच्चे है।हमारी की हुई हर ग़लती को माफ़ करने की शक्ति रखता है। तेरा ही अंश है। सही मार्ग दर्शन करते रहे। तेरी बनाई हुई कुदरत पर बलिहार जाये मेरी जीवन यात्रा को सफल बनाये पल पल की जानने वाले मन की गहराइयों से नतमस्तक हूँ।
यह संसार कितना सुंदर बनाया है ख़ूबसूरती से रचना की है। हमें कुछ भी माँगने की ज़रूरत नहीं है आप सब कुछ जानते हैं। मुझ नादान पर भक्ति का मार्ग दर्शन करे। हम बहुत भाग्य शाली आप के राज्य में रह रहे हैं। आप की छत्र छाया सदैव हम पर बनी रहे।
शेष कल—:
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