कोई समझे सतगुरू का प्यारा - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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कोई समझे सतगुरू का प्यारा

दर्शन साधु का मुख पर बसे सुहाग। दर्श उन्हीं को होत है, जिन के पूर्ण भाग। पहले तो मोहे , ज्ञान नहीं था, प्रेम बना ना तेरे मैं। दीन ज...








दर्शन साधु का मुख पर बसे सुहाग। दर्श उन्हीं को होत है, जिन के पूर्ण भाग।
पहले तो मोहे , ज्ञान नहीं था, प्रेम बना ना तेरे मैं। दीन जान के माफ़ किजीयो ख़ता हुई जिन मेरे मैं।
अवगुण भरे मेरे माफ़ करो ,तकसीर के आ गए शरण तेरी।जब मैं था। तब हरी है मै नाही ,सब अँधियारा मिट गया दीपक देखा माही।
भावार्थ -जब मैं अपने अहंकार मैं डूबा था. तब प्रभु को न देख पाता था। लेकिन जब गुरू ने ज्ञान रूपी दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया। तब अज्ञान का सब अन्धकार मिट गया. ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा। और आलोक में प्रभु को पाया। ब्रह्म भगवान ने कहा है ,कि वह परम अक्षर ब्रह्म है। जो जीवात्मा के साथ सदा रहने वाला है। ज्ञान दाता से अन्य हैं। वह परमात्मा हमारा मालिक हैं। उन को कोटी कोटी दंडवत् प्रणाम करती हूँ। मन की गहराइयों से धन्यवाद।
जब लग जगत का नाता , तब लग भक्ति ना होय। नाता तोड़ हरी भजे ,भक्त कहावे सोई।
कबीर जो जन मेरी शरण है ,या का हूँ मैं दास। गेल गेल लागया फिरूँ जब तक धरती आकाश।
सर्व सुख दाई परमात्मा अपने बच्चों के साथ पल पल रहता है। उस को प्राप्त करने की विधि केवल महाराज ही बता सकते है। साथ ही प्रभु ,ईश्वर,गुरू पर सम्पूर्ण विश्वास रखे .भूख के कारण बच्चा रो रहा है ,माँ के हाथ में बोतल है फिर भी वह उस को दूध नहीं दे रही क्योंकि माँ को पता है ,कि दूध की बोतल में दूध अभी गर्म है। अभी देना ठीक नहीं होगा।यही हमारे जीवन में होता है ,हमने अपने गुरू जी से कुछ ना कुछ माँगा है। पर जब हमें नहीं मिलता ,तो हम निराश होते हैं। हमारे गुरू जी को पता कि कौन सी चीज़ हमें कब देनी है। जिस तरह माँ को पता है ,दूध अभी गर्म है। अभी दूँगी तो मुँह जल जायेगा इसी तरह आप भी अपने गुरू जी पर विश्वास रखें वह आप की हर खवाइश टाईम आने पर ज़रूर पूरी करेंगे। गुरू जी की डोर को मज़बूत बनाये रखना।
निःस्वार्थ भक्ति करते रहे। उन्हें सब कुछ पता होता है बच्चों को क्या चाहिए। बह तो जानी जान है। मन की सब कुछ जानते ,बताने की ज़रूरत नहीं पड़ती। हम सब उन का अंश है। बह हमारे असली माता-पिता है। हमारी जिगर जान है ,हमारी आत्मा ,हमारे प्राण ,हमारा बजुद ,उन से कुछ भी छिपा नहीं है। हमें कुछ ऐसा करना चाहिए ।जिस से हमारा मालिक खुश हो। प्राकृति के भी अटूट नियम है। जिन्हें कभी झुठलाया नहीं जा सकता  प्रकृति अपने आप में विश्वाविधालया ही है। 
    1 . प्राकृति का पहला नियम वो ये कि यदि खेतों में बीज न डाला जाये तो प्रकृति उसे  घास फूस और झाड़ियों से            भर देती है।
   2 . प्रकृति का दूसरा  नियम वो ये कि  जिसके पास जो होता है,वो बही दूसरों को बाँटता है।
   3 . प्रकृति का तीसरा नियम  वो ये कि भोजन न पचने पर रोग  बढ़ जाता है। ठीक उसी प्रकार  से यदि दिमाग़ में अच्छे एवं  सकारात्मक विचार न भरे  जाये। तो बुरे एवं नकारात्मक बिचार उस में अपनी जगह बना लेते है।
 भावार्थ-:
यानि सदैव अपनी  सोच को विशाल बनाये, चिनतन, मनन, ध्यान, में अपना मन लगाये। अच्छी सोच नेक क्रमों कि साक्षी है। प्रत्येक साँस पर मालिक की याद बनी रहे। उस के डर का ख़ौफ़ बना रहे ताकि बुराईयो से बचे रहे।
शेष कल —:


                                         
   






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