भोजन बसे आकाश - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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भोजन बसे आकाश

आज मिलन बधाईयां जी संगतें भोग गुरां नू लगया। सुख देना दु:ख मेटना , ताज़ा राखें तन । सुर तैंतीसौ ख़ुश किये नमस्कार तोहे अन्न।अन्...





आज मिलन बधाईयां जी संगतें भोग गुरां नू लगया। सुख देना दु:ख मेटना , ताज़ा राखें तन ।
सुर तैंतीसौ ख़ुश किये नमस्कार तोहे अन्न।अन्न जल साहिब रूप है ,खुधया तृषा जाये ।

चारों युग प्रवान है ,आत्म भोग लगाये। जो अपने सो और के , एकै पीर पिछान ।
भुखया भोजन देत है ,पहुँचेंगे प्रवान। लाख चौरासी जीव का ,भोजन बसै आकाश ।

कर्ता बरषै नीर होये , पूरै सब की आश . देते को हर देत है , जहाँ तहाँ से आन ।
अण देवा माँगता फिरे , साहिब सुने ना कान। धर्म तो धँसके नहीं , धसके तीनों लोक ।

खैरायत में ख़ैर है , किजै आत्म पोष। एक है जग धर्म की , दूजी यज्ञ है ध्यान ।
तीजी यज्ञ है हवन की , चौथी यज्ञ प्रणाम। खुलया भण्डारा गैव का ,विन चिट्ठी विन नाम ।

गरीब दास मुक्ता तुले ,धन केसों बली जाव। आज लगया साहिब को भोग ,दीन के टुकड़े पानी का ।कोई जग्या पूर्वला भाग ,सफल हुआ दिन ज़िन्दगानी का। व्यंजन छतिसों यह नही चावै,जो मिल जावा रुचि रूचि पावै। प्रसाद अलूना ये खा जावैं, भाव 

ले देख प्राणी का। सम्मन जी ने भोग लगाया ,सिर लड़के का काट कै लाया। मालिक  तुरंत जिवाया,पाया फल संत यजमानि 
का। जिन भक्तों के यह भोग लग जाये ,उन के तीनों  ताप  नसाये। कोटि तीर्थ का फल वो पाये ,लाभ यह संतों की वाणी का। 

संतो की वाणी है अनमोल, इसे न समझ सकें अनबोल। साहेब ने भेद दिया सब खोल ,अपनी सत्य लोक राजधानी का। बली  राजा ने धर्म किया था , हरि ने आ के  दान लिया था। पाताल लोक का राज दिया था ,ऊँचा  है दर्जा  दानी का। धर्म दास ने  

यज्ञ रचाई, बिन दर्शन नही  जीऊँ गुसाई। दर्शन दे कर प्यास बुझाई, भाव देख लिया क़ुर्बानी का रहा क्यों मोह ममता  मे सोय ,जगत मे जीवन है दिन दोय। पता ना आवन हो कै ना होय , तेरे इस स्वाँस सैलानी का। जीव जो ना  सत्संग मे आया ,भेद ना 
 
उसे  भजन का पाया। गरीब दास को भी बावला  बताया ,क्या कर ले इस दुनिया सयानि का  साध संगत से भेद जो पाया सतगुर जी ने राह दिखाया श्री धाम  छुड़ानी का। कोई जग्या पूर्वभाग, सफल हुआ दिन ज़िन्दगानी का।

आप अपनी पवित्र रसना से भोजन स्वीकार  कीजिए। सब  पर उन की कृपा सदैव  बनी रहे। गलती के लिए क्षमा पारथी हूँ। मेरा ध्यान  शब्द रूपी, प्रभु के चरणों मे लगा रहे। मैं  पापी हूँ ,पाप आत्मा लिए ,आप की शरण में हूँ ,कृपा करें। प्रीति बनी रहे  जो सारी दुनिया का मालिक है ,मैं मेहरबानियों का शुक्रिया अदा करती हूँ ।

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