प्रभु की याद में - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

Page Nav

HIDE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Breaking News:

latest

प्रभु की याद में

कबीर इस संसार में ,धनवता ना कोय, धनवता सोई जानिये,जाके राम नाम धन होय। साँचा शब्द कबीर का ,सुन सुन ला...







कबीर इस संसार में ,धनवता ना कोय, धनवता सोई जानिये,जाके राम नाम धन होय।
साँचा शब्द कबीर का ,सुन सुन लागे आग ,अज्ञानी सौ जल जल मरै, ज्ञानी जाये जाग ।
इतनी शक्ति देना दाता की हमेशा भक्ति कर पाऊँ। ऐसे भक्ति करूँ मालिक की मुक्ति को प्राप्त हो जाऊँ।
और ऐसे मुक्ति करना प्रभु ,की इस धरती  पे कभी लौटकर ना आऊ।

पृथ्वी लोक में अपना किया ही जीव भोगता है। सत लोक में कोई अभाव नहीं है। सब परमात्मा के कोटे से मिलता है, और इसी वजह से वहाँ राग द्वेष नही है। सब मिलकर प्रेम से रहते हैं। और परमात्मा का गुण गान करते हैं।
कबीर जी का निजधाम तीसरा मुक्ति धाम ( सतलोक ) में है। जहां जाने के बाद मनुष्य का जन्म मरण नहीं होता।
परमात्मा जी कहते है- पृथ्वी ऊपर पग जो धारे , करोड़ जीव एक दिन में मारे ,

यह काल का लोक है यहाँ पल भर में ना जाने कितने पाप कराता है। यह काल जबकि सतलोक में कोई पाप ,जीव , हिसा नही होती। सतलोक सुख का सागर है। जबकि पृथ्वी लोक जिसको काल लोक भी कहते हैं पर जन्म मरण का चक्र चलता ही रहता है।

कितने उँचे भाग्य हमारे ,ऐसा सद्गुरू पाया। जलती हुई इस दुनिया ,में मिली शीतल छाया।
मन मुवा मया मुिव, संसय मुवा शरीर।अबनासी जो ना मारें क्यों मरे कबीर

यानि भावार्थ- मन मर चुका है। मेरा मोह मर चुका है। मेरे शरीर का भ्रम मर चुका है। जब अविनाशी प्रभु नहीं मरते हैं तो उन के साथ। आत्मिक संबंध के कारण कबीर क्यों मरेगा।

जंगल ढेरी राख की ,उपरि हरी आये। ते भी होते मान वी,करते रंग रलीयाये।

भावर्थ :- संसार रूपी जंगल चिंता के राख के ढेर समान है। उस के उपर हरियाली उग गई हैं। यह सभी राख मनुष्यों के चिंताओं के है जो संसार में आनन्द और मौज लूट कर चले गये हैं। वक्त रहते ही मालिक  भक्ति कर के भवसागर तर जायेगा नाम रूपी धन सतलोक में काम आयेगा।
शेष कल—:

No comments