कैसे जाने परमात्मा का ज्ञान - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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कैसे जाने परमात्मा का ज्ञान

सर्व प्रथम केवल एक स्थान अनामी लोक था। पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् परमेश्वर ...




सर्व प्रथम केवल एक स्थान अनामी लोक था। पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् परमेश्वर है। सभी आत्माऐं उस पूर्ण धनी के शरीर में समाई हुई थी। जगतगुरु महाराज जी कविर्देव का उपमात्मक नाम अनामी पुरुष है। प्रभु ने मनुष्य को अपने ही स्वरूप में बनाया है, इसलिए मानव का नाम भी पुरुष ही पड़ा है। अनामी पुरूष के एक रोम कूप का प्रकाश शंख सूर्यों की रोशनी से भी अधिक है।

मानुष जन्म पाकर जो नही रटे हरि नाम जैसे कुआ जल बिना बनवाया क्या काम, प्रसन्नता कोई तुम्हें नहीं दे सकता, ना ही बाजार में किसी दुकान पर जाकर पैसे देकर आप खरीद सकते हैं। अगर पैसे से प्रसन्नता मिलती तो दुनिया के सारे अमीर लोग खरीद लेते।

प्रसन्नता जीवन जीने के ढंग से आती है। जिंदगी भले ही खूबसूरत हो लेकिन जीने का अंदाज खूबसूरत ना हो तो जिंदगी को बदसूरत होते देर नहीं लगती। झोंपड़ी में भी कोई आदमी आनन्द से लबालब मिल सकता हैं । और कोठियों में भी दुखी, अशांत, परेशान आदमी मिल जायेगे । आज से ही सोचने का ढंग बदल लो जिंदगी उत्सव बन जायेगी। स्मरण रखना संसार जुड़ता है त्याग से और बिखरता है स्वार्थ से। त्याग के मार्ग पर चलोगे तो सबका अनुराग बिना माँगे ही मिलेगा ।और जीवन बाग़ बाग बनता चला जायेगा ।

भावार्थ: यह संसार उलटे लटके हुए व्रक्ष के सामान है जो संत इसके सभी विभाग बता देगा बह वेद के तातपर्य को जानने वाला होगा ।

कबीर, अक्षर पुरुष एक पेड़ है, निरंजन वाकी डार। ब्रह्मा विष्णु शिव शाखा है,पात रूप संसार।

भावार्थ: उस संसार वृक्ष की तीनों गुणो रूप शाखा ब्रह्मा विष्णु शिव हैं । इस संसार वृक्ष का स्वरूप जैसा कहा है। वैसा यहाँ विचार काल में नहीं पाया जाता ,क्योंकि न तो इसका आदि है ,और न ही अन्त है। उसके पश्चात उस परम-पदरूप परमेश्वर को भली भाँति खोजना चाहिए, जिसमें गए हुए पुरुष फिर लौटकर संसार में नहीं आते ,और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार वृक्ष की प्रवृत्ति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदिपुरुष नारायण के मैं शरण में हूँ-।इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके उस परमेश्वर का मनन और निदिध्यासन करना,चाहिए । इस ज्ञान को ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भलीभाँति दण्डवत्‌ प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलता पूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मा तत्व को भलीभाँति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश देंग़े. हज़ारों में लाखों में बिरला एक ही सतगुरु होता हैं ।अपनी ज़िन्दगी के मक़सद को
पहचाने क्यों दुनिया में इस काल लोक में रह रहे हैं 

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